Sawan Putrada ekadashi 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। आपको बता दें साल में 24 एकादशी आती हैं, मतलब एक कृष्ण पक्ष तो दूसरी शुक्ल पक्ष में। यहां हम बात करने जा रहे हैं पुत्रदा एकादशी के बारे में, जो सावन माह के शुक्ल पक्ष को पड़ती है। इस साल यह एकादशी 5 अगस्त को पड़ रही है। वहीं इस दिन रवि और गजलक्ष्मी राजयोग भी बन रहे हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी व्रत कथा के बारे में…

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Sawan Putrada ekadashi 2025 Vrat Katha (पुत्रदा एकादशी व्रत कथा)

इस एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। अर्जुन ने एकादशी के महत्व के बारे में सुनते हुए श्री कृष्ण से पूछा- हे प्रभु! मुझे अब आप श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें।  इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा- हे धनुर्धर! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनंत यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्त होती है।

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द्वापर युग के आरम्भ में ही महिष्मती नाम की एक नगरी थी। इन नगरी में महीजित नाम का राजा का राज्य था, जो बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन उसको कोई संतान नहीं थी जिसके कारण वह  काफी परेशान रहता था। अपनी वृद्धावस्था आती देख राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और उनके कहा कि हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में किसी भी प्रकार का अन्याय या पाप के द्वारा एकत्र किया हुआ धन नहीं है। न ही मैंने कभी देवी- देवता और ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, मैने हमेशा प्रजा को अपने पुत्र के समान माना है और उनका पाल रहा हूं। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?

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राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था। सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले: हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अतः: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दुखी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दुख से हम भी दुखी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं। यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था।

एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी। राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दुख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दुख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।

लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसव काल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोग कर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

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