Saraswati Puja (Basant Panchami) Vrat Katha in Hindi: वैदिक पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का त्योहार 14 फरवरी को मनाया जाएगा। यह पर्व विद्या की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। यह पर्व बिहार, झारखंड, यूपी और बंगाल में मुख्य रूप से मनाया जाता है। साथ ही इस बार बसंत पंचमी पर रवि योग, रेवती और अश्वनी नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इसलिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानते हैं पूजा- विधि, सामग्री और व्रत कथा…
Saraswati Puja 2024 Puja Vidhi, Mantra, Timings LIVE: Check Here
बसंत पंचमी 2024 शुभ योग (Basant Panchami 2024 Shubh Yog)
वैदिक पंचांग के अनुसार इस दिन रवि योग सुबह 10 बजकर 42 मिनट से लेकर 15 फरवरी को सुबह 7 बजे तक रहेगा। वहीं रेवती नक्षत्र 13 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से आरंभ होगा और अंत 14 फरवरी को सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। साथ ही इसके बाद तुरंत बाद अश्वनी नक्षत्र शुरू होगा। जो सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू होगा और समापन 15 फरवरी को सुबह 9 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा।
बसंत पंचमी पूजा सामग्री
सफेद तिल के लड्डू सफेद,अक्षत, घी का दीपक, अगरबत्ती और बाती, एक पान और सुपारी, साथ ही मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर जरूर रखें, लौंग और। वहीं सुपारी, हल्दी या कुमकुम तुलसी दल भी रखें। साथ ही एक जल के लिए एक लोटा या कलश रोली, लकड़ी की चौकी, आम के पत्ते। वहीं पहनने के लिए पीले वस्त्र, साथ ही मौसमी फल, इसके साथ ही मीठे पीले चावल और बूंदी के लड्डू आदि।
बसंत पंचमी व्रत कथा
वैसे तो बसंत पंचमी की कथा का उल्लेख अनेक ग्रंथों में मिलता है। लेकिन सबसे अच्छी कथा का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है। वह इस प्रकार है। सृष्टि के प्रारंभ में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मनुष्य जाति का आवरण किया। लेकिन त्रिदेव अपनी इस सृजन से संतुष्ट नहीं हुए। त्रिदेव को लगता था की इसमें कुछ कमी रह गई है जिसके कारण पूरे ब्रह्माण्ड में शांति थी। भगवान विष्णु और शिव से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल के साथ वेदों का उच्चारण करते हुए पृथ्वी पर छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उस स्थान पर कंपन होने लगा।
फिर उस स्थान पर स्थित वृक्ष से एक अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह प्रादुर्भाव एक चतुर्भुजी सुंदर सी स्त्री की थी, जिनकी एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ से तथास्तु मुद्रा को संबोधित कर रही थी। जबकि अन्य दोनों हाथो में पुस्तक और माला थी। त्रिदेव ने उनका अभिवादन किया और उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने त्रिदेव का अभिवादन स्वीकार करते हुए जैसे ही वीणा का मधुरनाद किया, तीनों लोको के सभी जीव-जंतु और प्राणियों को वीणा की मधुरनाद प्राप्त हो गई। समस्त लोक वीणा के मधुरता में भाव-विभोर हो गए। मां की वीणा की मधुरता से समस्त लोक में चंचलता व्याप्त हो गई। इस कारण त्रिदेव ने मां को सरस्वती के नाम से संबोधित किया। इसी दिन से ही सरस्वती पूजा शुरू हुई।