Narsingh Jayanti 2020 Puja Vidhi, Muhurat, Katha: वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। ये तिथि इस बार 06 मई को पड़ रही है। भगवान विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं भगवान नरसिंह। इनका आधा रूप सिंह का और आधा मनुष्य का है। इस रूप में भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोग इन्हें विपत्ति के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं। वैशाख पूर्णिमा (Vaishakha Purnima) के दिन नृसिंह जयंती मनाई जाती है। जानिए नरसिंह अवतार की कथा, पूजा विधि, मुहूर्त…
नरसिंह जयंती पूजा विधि: इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद भगवान नृसिंह और लक्ष्मीजी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। पूजा में फल, फूल, पंचमेवा, केसर, रोली, नारियल, अक्षत, पीतांबर गंगाजल, काला तिल और हवन सामग्री का प्रयोग करें। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं। भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप भी किया जाता है। व्रती को इस दिन सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण के साथ ही वस्त्रादि का दान भी करना चाहिए।
नरसिंह जयंती का मंत्र:
‘नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्। ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु’
नरसिंह जयन्ती मुहूर्त (Narsingh Jayanti Muhurat):
नरसिंह जयन्ती सायंकाल पूजा का समय – 03:50 पी एम से 06:27 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 37 मिनट्स
नरसिंह जयन्ती के लिए अगले दिन का पारण समय – 05:21 ए एम, मई 07 के बाद
नरसिंह जयन्ती मध्याह्न संकल्प का समय – 10:36 ए एम से 01:13 पी एम
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – मई 05, 2020 को 11:21 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – मई 06, 2020 को 07:44 पी एम बजे
नरसिंह जयंती कथा: जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। तप का फल उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने के वरदान के रूप में मिला। वरदान पाकर तो वह मानो अजेय हो गया। हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था। देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया।
उधर दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा। प्रहलाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था। वह भगवान का परम भक्त था। वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था। असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया। प्रहलाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- ‘मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?’
इस पर प्रहलाद ने कहा- ‘पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह भाव छोड़ अपने मनको सबके प्रति उदार बनाइए।’
प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- ‘रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?’ यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा। उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की।