Makar Sankranti 2020, Date and Time, Snan Muhurt: परंपरा में मकर संक्रांति अत्यंत प्रशस्त धार्मिक कृत्य व उत्सव है। शास्त्रों में तीर्थ स्नान, जप, पूजा, पाठ, दान, तर्पण व श्राद्ध तथा यज्ञ करने के लिए मकर संक्रांति सबसे उत्तम दिन कहा गया है। यहां तक कि गोदान, भूदान व स्वर्णदान करने के लिए भी मकर संक्रांति ही सर्वोत्तम दिन के रूप में स्वीकृत है। श्रद्धा, उल्लास और उमंग के साथ मनाए जाने वाले मकर संक्रांति का त्योहार हमारी शास्त्र परंपरा और सुदृढ़ सभ्यता को प्रकट करता है। ज्योतिषीय आधार व धमर्शास्त्र की मान्यतानुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं, अत: मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इस कारण अनेक अंचलों में मकर संक्रांति को ‘उदय पर्व’ या ‘उत्तरायणी’ भी कहा जाता है।

15 जनवरी को है संक्रांति (Makar Sankranti Date)

इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी को मध्यरात्रि बाद 2:08 बजे होगी, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मकर संक्रांति में दान-पुण्य करने का समय संपूर्ण दिन रहेगा। अत: मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाना शास्त्र सम्मत है। सारे तीर्थों का स्मरण करके घर पर भी पुण्य स्नान किया जा सकता है, जो तीर्थ स्नान के समान ही पुण्यदायी है। मकर संक्रांति को गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिए। देवीपुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति मकर संक्रांति के पवित्र दिन तीर्थ स्नान नहीं करता, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन ही बना रहता है। मकर संक्रांति के दिन देवताओं के निमित्त तीर्थ में जाकर द्रव्य-सामग्री और पितरों के लिए जो भी पदार्थ दान दिए जाते हैं, उसे देवता और पितर हर्षित होकर स्वीकार कर लेते हैं।ह्ण देवीपुराण में तो अकाल मृत्यु से बचने के लिेए मकर संक्रांति को ‘दुर्गासप्तशतीह्ण पाठ करने या विलान ब्राह्मण से करवाने का भी विधान है।

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

शिशिर ऋतु में भगवान सूर्य के दर्शन-पूजन व वंदन करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है-मकर संक्रांति। भारतीय परंपरा में मकर संक्रांति अत्यंत प्रशस्त धार्मिक कृत्य व उत्सव है। शास्त्रों में तीर्थ स्नान, जप, पूजा, पाठ, दान, तर्पण व श्राद्ध तथा यज्ञ करने के लिए मकर संक्रांति सबसे उत्तम दिन कहा गया है। यहां तक कि गोदान, भूदान व स्वर्णदान करने के लिए भी मकर संक्रांति ही सर्वोत्तम दिन के रूप में स्वीकृत है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।। यानी माघ मास में रवि जब मकर राशि में आता है, तब तीथर्राज प्रयाग में स्नान करना अत्यंत प्रशस्त है।

देवताओं के दिन की शुरुआत: पौराणिक मान्यतानुसार मकर संक्रांति से ही दिव्य लोकों में विराजमान देवताओं के दिन का प्रारंभ होता है। उत्तरायण के काल को देवताओं का दिन माना जाता है और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि। शास्त्रीय मान्यतानुसार देवताओं का एक दिन हमारे छह महीनों के बराबर होता है, इसलिए मकर संक्रांति को देवताओं के दिन का ‘प्रभात काले’ माना गया है।

अनेक शास्त्रीय विलान इसे सौम्यायन व देव मार्ग के नाम से भी जानते हैं। देवताओं का प्रभात काल होने से ही मकर संक्रांति को सुबह-सुबह स्नान कर देवताओं को ‘पुष्प-अर्घ्य-धूप’ आदि प्रदान किए जाते हैं। यह भी प्रबल पौराणिक मान्यता है कि देवताओं का प्रभात काल होने से ही मकर संक्रांति किया जाने वाले ‘दान’ सौ गुना हो जाता है।

संक्रांति का महत्त्व (Importance of Makar Sankranti)

भारतरत्न आचार्य पांडुरंग वामन काणे ने अपनी ‘धर्मशास्त्र का इतिहास’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक में लिखा है कि वर्ष भर में पड़ने वाली 12 संक्रांतियां 4 श्रेणियों में विभक्त हैं। दो अयन संक्रांतियां (मकर संक्रांति, जब उत्तरायण प्रारंभ होता है एवं कर्क संक्रांति, जब दक्षिणायन शुरू होता है।), दो विषुव संक्रांति (मेष एवं तुला संक्रांति, जब दिन-रात बराबर होते हैं।) षडशीति मुख एवं विष्णुपदी नामक संक्रांति। इन सारी संक्रांतियों में सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश कराने वाली मकर संक्रांति सर्वप्रमुख एवं प्रशस्त है।

संक्रांति के भेद: एक वर्ष में पड़ने वाली संक्रांतियां सात प्रकार की होती हैं जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन से शुभ-अशुभ फलदायी होती है। ये सात संक्रांतियां हैं-मंदा, मंदाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी तथा मिश्रिता। ये सातों संक्रांतियां एक-एक वार के हिसाब से सात वारों की मानी जाती हैं। ऐसे ही 27 नक्षत्रों के योग से संक्रांतियां सात दलों में भी विभक्त हैं। ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर और मिश्रित। आचार्य वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में ऐसा उल्लिखित है कि मकर संक्रांति अत्यंत शुभ फलदायी व श्रेयस्कर है।

मकर संक्रांति पर करें दान (Makar Sankranti Dan)

अनेक विलानों के मत में मकर संक्रांति पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए तथा ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन करवाना चाहिए। इससे पितरों को अक्षय संतोष प्राप्त होता है। इसके साथ ही घृत, कंबले और ऊन का दान सबसे अधिक फलदायी है। साथ ही इस दिन तिलों का उपयोग अवश्य ही करना चाहिए। शास्त्रों में तिल की महत्ता यों प्रदर्शित है कि मकर संक्रांति के दिन जो व्यक्ति तिल का प्रयोग छह प्रकार से करता है, वह अनंत सुख पा लेता है।  तिल मिश्रित जल से नहाना, तिल का तेल शरीर पर लगाना, पितरों के लिए तिलयुक्त जल से तर्पण करना, अग्नि में तिलों का हवन करना, ब्राह्मण या बहन-बेटी को तिलों से बने पदार्थों का दान देना और तिल खाना।

सूर्य का मकर में संक्रमण: ‘संक्रांति’ का शाब्दिक अर्थ है, सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना। अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रांति के नाम से जानी जाती है। इसी तरह सूर्य जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तो ‘मकर संक्रांति’ होती है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर संक्रांति’ कहलाती है। यह भी जानने की बात है कि एक वर्ष में 12 संक्रांतियां ही होती हैं, चाहे उस वर्ष में अधिक मास या मल मास ही क्यों न हो।