Mahabharat Jarasandh Vadh: जरासंध भगवान कृष्ण के मामा कंस का ससुर था। उसके पिता का नाम बृहद्रथ था। जरासंध भारत के सबसे शक्तिशाली राज्य मगध का सम्राट था। कहते हैं कि जरासंध ने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना लिया था। जरासंध को लेकर ये बात भी प्रचलित है कि वह चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए 100 राजाओं को बंदी बनाकर किसी विशेष दिन उनकी बलि देना चाहता था। वह अत्यंत ही क्रूर और अत्याचारी था। जानिए इसके जन्म की दिलचस्प स्टोरी…
जरासंध जन्म: मगध के सम्राट बृहद्रथ की दो पत्नियां थीं और दोनों की ही कोई भी संतान नहीं थी। बृहद्रथ एक दिन महात्मा चण्डकौशिक के पास गए और उनको अपनी समस्या बताई। महात्मा ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि ये फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे संतान की प्राप्ति हो जायेगी। क्योंकि राजा की दो पत्नियां थीं तो उसने फल को काटकर दोनों पत्नियों को खिला दिया। दोनों पत्नियां गर्भवती हो गईं लेकिन दोनों के गर्भ से शिशु आधा आधा निकला। ये देखकर रानियां घबरा गईं और उन्होंने अपने शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर फिंकवा दिया।
इन टुकड़ों पर एक राक्षसी की नजर पड़ी। उसने अपने माया से दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और वह एक शिशु बन गया। शिशु जोर जोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज उसकी माताओं ने सुन ली और रानियां बाहर निकलीं और शिशु और राक्षसी को देखकर आश्चर्य में पड़ गईं। एक ने उसे गोद में ले लिया तभी राजा बृहद्रथ वहां आ गए। राक्षसी ने राजा को सारा किस्सा बता दिया। इस राक्षसी का नाम जरा था। राजा प्रसन्न हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया, क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने जोड़ा (संधित) था।
जरासंध वध: जरासंध को वध कर पाना लगभग असंभव था। उसे मल्ल युद्ध लड़ने का शौक था। वह भगवान श्रीकृष्ण का शत्रु था। श्रीकृष्ण ने उसे मारने की योजना बनाई। योजना के अनुसार श्रीकृष्ण भीम और अर्जुन के वेष में जरासंध के पास पहुंचे और उसे कुश्ती के लिए ललकारने लगे। हालांकि जरासंध सभी को पहचान गया। लेकिन फिर भी उसने कुश्ती लड़ने का निर्णय लिया। 13 दिनों तक भीम और जरासंध का युद्ध चला। इन 13 दिनों में भीम ने कई बार जरासंध के दो टुकड़े किये। लेकिन जरासंध हर बार जुड़कर फिर युद्ध के लिए सज्ज हो जाता।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने 14वें दिन एक तिनके को बीच में से तोड़कर उसके दोनों भागों को विपरीत दिशा में फेंकने का संकेत भीम को दिया। भीम श्रीकृष्ण के संकेत को समझ गया और उसने जरासंध को बीच में से फाड़कर उसके एक हिस्से को दूसरे फाड़ की दिशा में तो दूसरे हिस्से को पहले फाड़ की दिशा में फेंक दिया। ऐसे जरासंध का वध हुआ। विपरित दिशा में फेंके जाने से दोनों टुकड़े नहीं जुड़ पाए।