Krishna Chhati 2023: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उसके 6 दिन बाद छठी के रूप में मनाते हैं। इसी तरह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कान्हा का जन्म होता है। इसके 6 दिन बाद धूमधाम से उनकी छठी भी मनाई जाती है। जानिए श्रीकृष्ण की कब है छठी, साथ ही जानें मुहूर्त, पूजा विधि।

कब है श्री कृष्ण की छठी 2023?

बता दें कि देशभर में जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर को मनाई गई है। ऐसे में छठी छह दिन बाद मनाई जाती है। इस कारण इस साल श्री कृष्ण की छठी 12 सितंबर को मनाई जाएगी। वहीं जिन लोगों ने जन्माष्टमी 6 सितंबर को मनाई है, वह लोग 11 सितंबर को मनाएं।

श्री कृष्ण की छठी पर बना रहा शुभ योग

रवि पुष्य नक्षत्र- 11 सितंबर को रात 8 बजकर 1 मिनट तक पुष्य नक्षत्र रहेगा।
अश्लेषा नक्षत्र- 11 सितंबर को रात 8 बजकर 1 मिनट से 12 सितंबर को रात 11 बजकर 1 मिनट तक
शिव योग- 12 सितंबर को सुबह 12 बजकर 13 मिनट से 13 सितंबर को सुबह 1 बजकर 11 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग – सूर्योदय से 11 सितंबर को रात 8 बजकर 1 मिनट तक, 12 सितंबर को सुबह 6 बजकर 16 मिनट से रात 11 बजकर 1 मिनट तक

क्यों मनाई जाती है श्री कृष्ण की छठी?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, किसी घर में बच्चे के जन्म के 6 दिन बाद छठी मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन षष्ठी देवी की पूजा करने से बच्चा का अच्छा स्वस्थ रहता है। षष्ठी देवी को बच्चों की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनकी कृपा से राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र को पुनर्जीवित किया गया था। इसी के कारण बच्चे के जन्म के छह दिन बाद छठ पूजा की जाती है।  दिन कढ़ी चावल बनाने का प्रावधान है। इसलिए श्री कृष्ण की छठी के दिन भी कढ़ी-चावल बनाए जाते हैं।

कैसे करें कान्हा की पूजा

छठी के दिन सुबह स्नान आदि करने के साथ साफ-सुथरे वस्त्र धारण  कर लें। इसके बाद कान्हा को पंचामृत  (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से स्नान कराएं। इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर अभिषेक करें। इसके बाद साफ वस्त्र से पोंछ कर पीले रंग के वस्त्र पहनाएं। इसके साथ ही मुकुट, आभूषण  भी पहनाएं। फिर पीला चंदन का टीका लगाएं और फूल , माला चढ़ाएं। इसके बाद भोग में माखन-मिश्री या फिर कोई अन्य मिठाई खिलाएं। थोड़ा सा जल चढ़ाने के बाद घी का दीपक और धूप जला दें। इसके बाद श्री कृष्ण को उनके नाम जैसे लड्डू गोपाल, ठाकुर जी, कान्हा नंदलाला जैसे नामों से पुकारे। अंत में आरती कर लें।

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