भगवान गणेश का स्वरूप अत्यंत सुंदर और मंगलदायी है। विघ्नहर्ता श्री गणेश अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामना शीघ्र पूरी करते हैं। प्रथम पूज्य गणेश गणों के ईश कहलाते हैं। इसलिए उन्हें गणेश कहा जाता है। सभी विघ्न-बाधाओं को हरने वाले देवताओं में प्रथम स्थान पर विराजित हैं।

साथ ही भगवान गणेश अपने भक्तों की निष्कपटता, अबोधिता और निष्कलंकता प्रदान करने वाले देव माने गए हैं। भगवान विष्णु और शिव के समान भगवान गणेश भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। श्री गणेश के इन अवतारों का वर्णन मुद्गल पुराण और गणेश अंक आदि में किया गया है। आगे भगवान गणेश के लंबोदर आवार की महिमा के बारे में जानते हैं।

मुद्गल पुराण के मुताबिक बात उस समय की है जब एक असुर जिसका नाम अंधकासुर था। उसने अपनी कठिन तपस्या से भगवान सूर्य को प्रसन्न कर लिया था। साथ ही उसने सूर्य देव से यह वरदान भी प्राप्त कर लिया जिससे उसे तीनों लोकों में कोई पराजित न कर सके। सूर्य से वरदान पाकर अंधकासुर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास गया। फिर शुक्राचार्य से आशीर्वाद पाकर तीनों लोकों पर विजय पाने के लिए निकाला।  जिसके बाद अपनी सेना के साथ अंधकासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। फिर सभी देवताओं ने भी उसका मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन वे इस काम में सफल नहीं हो सके।

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अंधकासुर ने समस्त देवताओं को उनके ही साम्राज्य से बाहर कर दिया और स्वर्ग की राजगद्दी अपने वश में कर लिया। यह देखकर इंद्र सहित अन्य सभी देवता गण बहुत दुखी हुए। फिर उन्होंने विघ्नहर्ता गणेश जी की आराधन की। जिसके बाद भगवान गणेश अपने लंबोदर स्वरूप में देवताओं के समक्ष प्रकट हुए और देवताओं की इस व्यथा सुनकर बहुत अधिक गुस्से में आ गए। फिर लंबोदर रूपी भगवान गणेश क्रोधासुर के पास गए और उसे युद्ध के लिए ललकारा। लंबोदर के साथ क्रोधासुर का भीषण युद्ध हुआ।

देवतागण भी असुरों का संहार करने में लगे रहे। देखते ही देखते क्रोधासुर के बड़े-बड़े योद्धा मूर्छित होकर जमीन पर गिरने लगे। यह देखकर क्रोधासुर भी दुखी होकर लंबोदर के चरणों में गिर गया और भक्ति-भाव से उनकी स्तुति करने लगा। जिसके बाद लंबोदर ने उसे अभयदान दे दिया। क्रोधासुर ने भगवान लंबोदर का आशीर्वाद पाकर अपना बचा हुआ जीवन शांत से बिताने के लिए पाताल लोक चला गया। अंत में देवता प्रसन्न होकर भगवान लंबोदर का गुणगान करने लगे। कहते हैं कि इस घटना के बाद भगवान गणेश के लंबोदर अवतार की पूजा होने लगी।