भोले के भक्त अपने ईष्ट महादेव को प्रसन्न करने के लिए उत्तराखंड के गोमुख, गंगोत्री और हरिद्वार से अपनी कांवड़ में गंगा जल भरकर मीलों लंबी पैदल यात्रा सावन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को शुरू करते है और चौदह दिन की कठिन पैदल तीर्थयात्रा शिवरात्रि को पूर्ण होती है।
शिवरात्रि के दिन कांवड़िये अपने-अपने गांवों, कस्बों और शहरों में स्थित शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से जलाभिषेक करते हैं। अमृत तुल्य गंगा जल भोले के भक्त कांवड़ियों के लिए सबसे अमूल्य, पवित्र और अनोखी धरोहर होता है। कांवड़िये अपनी इस चौदह दिन की पैदल तीर्थयात्रा को अपने जीवन का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं। सावन के कृष्ण पक्ष के इन चौदह दिनों में कांवड़िये संयमित जीवन जीते हैं।
कांवड यात्रा महादेव को प्रसन्न करने की सबसे कठिन साधना है। भगवान शिव के भक्त कांवड़िये बांस के डंडों पर दोनों और लगी हुई टोकरियों के साथ गंगा तट पर पहुंचते है और इनमें गंगाजल भरकर अपने-अपने गंतव्य स्थानों पर पैदल जाते हैं। अपनी-अपनी कांवड़ों को कांवड़िये तल्लीनता से सजाते हैं।
भोलेनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए कांवड़ियों में आजकल बड़ी और सुंदर कांवड़ बनाने की प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है। कई कांवड़िये कांवड़ के रूप में केदारनाथ तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों की सुंदर और भव्य अनुकृति बनाकर शोभायात्रा के रूप में हरिद्वार हरकी पैड़ी से पैदल अपने गंतव्य स्थानों की ओर जाते हैं।
कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्त्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले त्रेतायुग में भगवान शिव के अनन्य भक्त दशानन रावण और भगवान परशुराम ने की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन से जो विष निकला था, उससे सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने वह विष पी लिया था और उसे अपने कंठ में धारण किया।
तब भगवान शिव उत्तराखंड में हिमालय की शरण में आए और उन्होंने पौड़ी गढ़वाल की पर्वत शृंखलाओं में झरने के नीचे बैठकर अपने विष के प्रकोप को शांत किया। उससे पहले भगवान शिव ने हरिद्वार में चंड़ी पर्वत के नीचे बह रही गंगा नदी में स्रान किया तो गंगा का जल विष के प्रभाव से नीला पड़ गया और यहां पर गंगा नील धारा के रूप में प्रवाहित होने लगी।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव के द्वारा पीये गए विष की नाकारात्मक ऊर्जा को शांत करने के लिए रावण ने कठोर साधना की थी और रावण ने अपनी कांवड़ में पवित्र गंगा जल भरकर उस गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक किया था, ताकि विष के प्रकोप को शांत किया जा सके। दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा निकाली और वे गढ़मुक्तेश्वर में स्थित गढ़ गंगा से पैदल कांवड़ में गंगा जल भरकर यूपी के मेरठ मंडल के बागपत के पास बने पुरा महादेव ले गए और वहां उन्होंने शिवलिंग का अभिषेक किया।
बड़ा धार्मिक आयोजन
कांवड यात्रा आज एक बहुत बड़ा धार्मिक आयोजन बन चुकी है। जिसमें साल दर साल कांवडियों की तादाद बढ़ती जा रही है। कांवड यात्रा को सकुशल संपन्न कराने के लिए उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान की सरकारों को विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।
हरिद्वार का जिला और पुलिस प्रशासन कांवड़ मेले के चैदह दिनों में यात्रा को सकुशल संपन्न कराने के लिए रात-दिन एक करता है। हरिद्वार के जिलाधिकारी धिराज सिंह गर्ब्याल का कहना है कि कांवड़ यात्रा गंगा मईया के आर्शीवाद से ही सकुशल संपन्न होती है, प्रशासन तो केवल एक माध्यम होता है।