Kalashtami Vrat 2025: सनातन धर्म में कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वैदिक पंंचांग के अनुसार यह व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह दिन काल भैरव को समर्पित होता है। काल भैरव भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। दरअसल भैरव के तीन रूप हैं काल भैरव, बटुक भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। कालाष्टमी  के दिन इनमें से काल भैरव की पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस दिन भगवान शंकर के काल भैरव स्वरूप की उपासना करने से जीवन की सारी परेशानियां दूर होती है। साथ ही काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। इस बार साल का अंतिम कालाष्टमी व्रत 11 दिसंबर को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं पूजा विधि और भैरव स्तुति…

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कालाष्टमी तिथि 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार दिसंबर में अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 दिसंबर 2025, गुरुवार दोपहर 01:58 बजे होगी। वहीं इसका अंत  12 दिसंबर 2025, शुक्रवार सुबह 02:57 बजे होगा। इसलिए 2025 की आखिरी कालाष्टमी और कालभैरव जयंती 11 दिसंबर 2025, गुरुवार को मनाई जाएगी। 

कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2025

ज्योतिष पंचांग के मुताबिक कालाष्टमी पर अभिजीत का मुहूर्त बन रहा है। यह मुहूर्त 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर खत्म होगा। इस बीच में आप पूजा- अर्चना कर सकते हैं।

कालाष्टमी पर जरूर करें इन मंत्रों का जाप

1. ओम शिवगणाय विद्महे गौरीसुताय धीमहि तन्नो भैरव प्रचोदयात।।
2. ओम कालभैरवाय नम:
3. ओम भ्रां कालभैरवाय फट्
4. धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्। द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।

भैरव स्तुति

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं। सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं। पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं। घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।।
कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं। तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं। धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं। नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं। खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।

टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं। भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो। निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।
नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं। सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।।
भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।। स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।

कालाष्टमी धार्मिक महत्व

शास्त्रों के मुताबिक जो भी व्यक्ति पूरे दिन व्रत रखकर काल भैरव की पूजा- अर्चना करता है। उसके कष्ट बाबा काल भैरव हर लेते हैं। साथ ही काल भैरव की पूजा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही अज्ञात भय खत्म होता है और गुप्त शत्रुओं का नाश होता है। वहीं काल भैरव की कृपा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, भय मिटता है और साधक को शक्ति, साहस व सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत शनि और राहु के बुरे प्रभावों को कम करने में भी सहायक माना जाता है।

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