Mahalakshmi Strota Path: हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन प्रदायक देवी माना जाता है। मान्यता है जिस व्यक्ति पर मांं लक्ष्मी की कृपा हो जाती है। उस व्यक्ति को जीवन में सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ वह धनवान होता है और समाज में उसको खूब मान- सम्मान की प्राप्ति होती है। इसलिए हर व्यक्ति अपने- अपने तरीके से मां लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। ऐसे में यहां हम आपको ऐसे एक स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका हर शुक्रवार पाठ करने से आपको धन, वैभव, यश, बुद्धि, ऐश्वर्य, सुख, संपदा, समृद्धि आदि की प्राप्ति हो सकती है। इस स्त्रोत का नाम है महालक्ष्मी स्त्रोत, आपको बता दें कि इस स्त्रोत की रचना भगवान इंद्र ने की थी। इसलिए जो व्यक्ति इसका पाठ कर लेता है उस पर हमेशा महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे में…

इस विधि से करें स्त्रोत का पाठ

शुक्रवार को सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर लें। इसके बाद साफ- सुथरे वस्त्र पहन लें। इसके बाद मां लक्ष्मी की मूर्ति या प्रतिमा को पूजा चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद दीपक और धूप जलाएंं। साथ ही मांं लक्ष्मी के पास खीर का भोग रखें। इसके बाद स्त्रोत का पाठ करें और फिर स्त्रोत का जाप करने के बाद खीर का भोग घर के सदस्यों में बांट दें। 

महालक्ष्मी स्तोत्र

शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।

सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।

मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।

योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।

महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।

परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।

द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।

महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

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