शास्त्री कोसलेंद्रदास
मनुष्य के जीवन की तीन अवस्थाएं हैं – जाग्रत, स्वप्न एवं सुषुप्ति। जो चैतन्य अवस्था में है, वह जाग रहा है। जो प्रगाढ़ निद्रावस्था में है, वह सुषुप्ति अवस्था है। जब व्यक्ति सोता हो पर उसका चित्त चल रहा हो तो उसे स्वप्नावस्था कहा जाता है। यजुर्वेद के शिवसंकल्प सूक्त में मन से की गई प्रार्थना में यह महत्त्वपूर्ण है कि वहां जागते और सोते हुए, दोनों अवस्थाओं में मन से कल्याणकारी विचार करने को कहा गया है। जैसे जागते हुए व्यक्ति का मन चारों और घूमकर दूर तक चला जाता है, ठीक वैसे ही सोते हुए व्यक्ति का भी। इस प्रकार दूर तक जाने वाला वह मन ज्योतियों में भी परम ज्योति बताया गया है।
अच्छे-बुरे स्वप्नों का उल्लेख
वैदिक साहित्य में स्वप्नों का सम्बन्ध भाग्य या अभाग्य से लगाया गया है। रामायण-महाभारत, आथर्वण-परिशिष्ट (स्वप्नाध्याय), बृहद्योगयात्रा, पुराणों (वायु, मत्स्य, विष्णुधर्मोत्तर, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त आदि) में अच्छे-बुरे स्वप्नों का उल्लेख है। जगद्गुरु शंकराचार्य ने वेदान्त दर्शन में ब्रह्मसूत्र (3/4/2) पर अपने भाष्य में कहा है कि स्वप्न अध्याय के पाठक यह घोषित करते हैं कि हाथी पर चढ़े हुए अपने को देखना शुभ है और गधों से खींचते हुए वाहन पर अपने को बैठा देखना अशुभ है। पाणिनि ने स्वप्न शब्द की व्याकरणपरक व्युत्पत्ति की है।
ब्रह्मसूत्र के संध्या-अधिकरण में स्वप्न में हुए ज्ञान की सत्यता पर विचार हुआ है। जगद्गुरु रामानुजाचार्य का मानना है कि स्वप्न काल में भी चेतन के द्वारा सुख-दुख का अनुभव होने के कारण उसके हेतुभूत स्वाप्निक पदार्थ सत्य हैं। उन पदार्थों की सृष्टि ईश्वर स्वयं करते हैं। ऐसा प्रकट होता है कि प्राचीन लेखकों में अंगिरा जैसे विरले लोग ही ऐसा कहते हैं-ग्रहों की गतियां, स्वप्न, निमित्त (आंख फड़कना आदि), उत्पात संयोग से ही कुछ फल उत्पन्न करते हैं; समझदार लोग उनसे डरते नहीं हैं।
रामायण में स्वप्न
महर्षि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण के सुंदरकांड में त्रिजटा राक्षसी ने बहुत-से स्वप्नों का उल्लेख किया है, जिनसे राक्षसों के नाश एवं श्रीराम के लिए शुभ संकेत मिलता है। वे दु:स्वप्न ऐसे थे -रावण का सिर घुटा हुआ है; उसने उस तेल को पी लिया, जिससे वह नहाया हुआ था। वह लाल वसन पहने था, मदोन्मत्त था, करवीर पुष्पों की माला पहने था। वह पुष्पक विमान से पृथ्वी पर गिर पड़ा और गधों द्वारा खींचे जाते हुए रथ में बैठा था। इसके बाद जब माता सीता अशोक वृक्ष पर रामदूत हनुमान को देखती हैं तो वे वानर को देख भयभीत होती हैं और मन ही मन दुर्घटना की आशंका करने लगती हैं। वे कहती हैं – मैंने आज यह विकृत स्वप्न देखा है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार स्वप्न में वानर नहीं दिखना चाहिए पर मुझे यह वानर दिखाई दे रहा है अत: श्रीराम, लक्ष्मण और मेरे पिता महाराज जनक का कोई अहित न हो, उनका मंगल हो।
अच्छे और बुरे स्वप्न
अनेक ग्रंथों में बुरे स्वप्न आने पर शांति पाठ करने का विधान है। वहीं महाभारत के अनुसार यदि व्यक्ति को बुरे सपने आते ही रहते हैं तो उसे नियमित रूप से विष्णु-सहस्रनाम-स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह ध्यान देने की बात है कि बुरे स्वप्न आने पर व्यक्ति को प्रात: शीघ्र स्नान कर लेना चाहिए क्योंकि स्वप्न भी व्यक्ति से दुष्कृत्य करा डालता है।
कालांंतर में फलित ज्योतिष के विद्वानों ने स्वप्न को लेकर अनेक अनुसंधान किए। उन्होंने स्वप्नशास्त्र जैसे स्वतंत्र ग्रंथों का निर्माण किया और उससे कई परिणाम निकाले। सारे अनुसंधान को परिणाम यही निकला है कि सात्त्विक विचारों से मनुष्य केवल जागृत अवस्था में ही नहीं बल्कि स्वप्नावस्था में भी सुख प्राप्त करता है। अनैतिक विचारों के चिंतन और उनके प्रयोग से मानव निद्रा में भी स्वप्नदोष जैसी समस्याओं से पीड़ित होता है, जिसे आयुर्वेद ने व्याधि स्वीकार किया है।
अच्छे स्वप्न के लिए अच्छा जीवन
सभी शास्त्रों ने यह सार प्रकट किया है कि जब आचरण और विचार परिष्कृत होते हैं तो उससे जीवनचर्या शुद्ध तथा पवित्र बनती है। पवित्र तीर्थों की यात्रा, ग्रंथों का पारायण एवं अच्छे लोगों के समूह में रहने से व्यक्ति का जीवन सुधरता है और वह अच्छे स्वप्न प्राप्त करता है।
सभी संस्कृतियों में स्वप्न
सभी प्राचीन देशों एवं लोगों में स्वप्नों के विषय में विश्वास रहा है और उनके विश्लेषण के विषय में उत्सुकता पाई गई है। बेबिलोन एवं असीरिया के दरबारों में चाल्डिया के ज्योतिषियों एवं स्वप्न-विश्लेषकों को बड़े आदर के साथ रखा जाता था। यूनान के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक प्लेटो ने स्वप्नों को महत्त्वपूर्ण दैहिक एवं मानसिक लक्षण माना है, उसने कुछ स्वप्नों को अलौकिक आधार भी दिया है और अपनी पुस्तक टाइमियस (अध्याय 46 एवं 47) में व्याख्या की है कि स्वप्न ऐसे भावी दृश्य हैं, जिन्हें निम्न श्रेणी की आत्माएं ग्रहण करती हैं। भारत की भक्ति परंपरा में सुदूर दक्षिण में गोदांबा और मेवाड़ में मीरा का विवाह स्वप्न में भगवान कृष्ण के साथ हुआ है, जिससे उनकी भक्ति आज भी श्रद्धा एवं भक्ति के केंद्र बनी हुई है।
