उत्तराखंड के चार धामों और 51 मंदिरों का संचालन करने वाले सरकारी देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर राज्य के पंडे पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत समिति ने पूरे देश में 18 अगस्त से राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ने का फैसला करके राज्य सरकार के खिलाफ आर पार की लड़ाई लड़ने का एलान किया है। इससे पहले दो साल से लगातार पंडे-पुरोहित उत्तराखंड के तीर्थ स्थानों में विरोध प्रदर्शन करते आए हैं और राज्य सरकार के खिलाफ उनका आंदोलन लगातार जारी है जब तक राज्य सरकार बोर्ड को भंग नहीं करती तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा पंडे पुरोहितों की संघर्ष समिति का आरोप है कि राज्य सरकार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने को लेकर कतई गंभीर नहीं है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी बोर्ड को भंग करने की मांग कर चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ने एक उच्चाधिकार कमेटी बनाकर इसके समाधान करने की बात कही है। जो पंडा पुरोहितों को मंजूर नहीं है। पंडा पुरोहित समाज इस बार आक्रमक आंदोलन चलाने की तैयारी में है। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून में भी आंदोलन शुरू किया जाएगा। पंडे पुरोहितों का यह आंदोलन तीन चरणों में होगा। पहले चरण में तीर्थ पुरोहित समाज के लोग धरना देंगे। दूसरे चरण में तीर्थ पुरोहित समाज के लोग क्रमिक अनशन करेंगे। फिर आमरण अनशन करेंगे।
ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी देवस्थानम बोर्ड को हिंदू धर्म के खिलाफ बताया है और इसे तुरंत भंग करने की मांग की है चारधाम तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोटियाल का कहना है कि देवस्थानाम बोर्ड एक वर्ग विशेष को परेशान करने के लिए बनाया गया है। तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी दो साल से इस मामले में सरकार से बातचीत का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आखिर हिंदुओं के मंदिर ही क्यों सरकारी नियंत्रण में लिए जा रहे हैं। देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के दायरे में राज्य के चार जिले ही क्यों शामिल किए गए और बाकी जिले क्यों छोड़ दिए गए हैं?
गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल कहते हैं कि राज्य सरकार ने उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के बारे में पुनर्विचार करते हुए इस साल अप्रैल महीने में मुख्यमंत्री रहते हुए तीरथ सिंह रावत ने विश्व हिंदू परिषद की हरिद्वार में आयोजित मार्गदर्शक मंडल की बैठक में 51 मंदिरों को उसके दायरे से बाहर करने की घोषणा की थी, लेकिन उस पर अब तक अमल नहीं हुआ। बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर तीर्थ पुरोहित इस वक्त बांह पर काली पट्टी बांधकर पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड के बारे में एक समिति का गठन किया है जबकि पर्यटन और संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने बोर्ड पर पुनर्विचार करने से इनकार किया है। इस तरह इस मुद्दे को लेकर सरकार में भी मतभेद हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी राज्य सरकार से देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने को कहा है। भले ही वे अपने शासनकाल में इस संबंध में अपनी घोषणा पर अमल नहीं कर पाए हों। तीर्थ पुरोहित शुरू से ही विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इसकी वजह से उनके पारंपरिक पारिवारिक अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
विरोध के बावजूद बोर्ड का गठन
उत्तराखंड की तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने दिसंबर 2019 में विधानसभा के भीतर और बाहर विरोध के बीच उत्तराखंड चार धाम तीर्थ प्रबंधन विधेयक, 2019 पेश किया था। इस विधेयक का उद्देश्य चार धामों- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के चार धामों और 51 अन्य मंदिरों को प्रस्तावित तीर्थ मंडल के दायरे में लाना था। विधेयक विधानसभा में पारित हुआ और उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 बन गया। इसी अधिनियम के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 15 जनवरी, 2020 को उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया। मुख्यमंत्री इस बोर्ड का अध्यक्ष होता है, जबकि धार्मिक मामलों के मंत्री बोर्ड के उपाध्यक्ष होते हैं।
गंगोत्री और यमुनोत्री के दो विधायक मुख्य सचिव के साथ बोर्ड में सदस्य हैं। एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है। जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बोर्ड पर पुनर्विचार करने के लिए एक उच्याधिकार समिति बनाई है जिसका विरोध धार्मिक मामलों के मंत्री सतपाल महाराज ने तो यह कहकर किया है कि बोर्ड के बारे में अब कोई विचार नहीं किया जाएगा। इस मुद्दे पर भाजपा सरकार में गहरे मतभेद हैं जबकि कांग्रेस ने इस मुद्दे को चुनावी बना दिया है। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि कांग्रेस 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में आते ही सबसे पहले इस काले कानून को समाप्त करेगी और तीर्थ पुरोहितों के पारंपरिक अधिकारों को बहाल किया जाएगा। भाजपा तीर्थ की मयार्दाओं को तार-तार कर रही है।