Chhath Puja 2025 Chhathi Maiya Vrat Katha: हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। छठ पूजा का महापर्व भारतीय संस्कृति का अत्यंत पवित्र और आस्था से जुड़ा उत्सव माना जाता है। इस पर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विशेष विधान है। चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान की शुरुआत इस साल आज यानी 25 अक्टूबर 2025 को नहाय-खाय से हो रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ होगा। कहा जाता है कि छठ व्रत का संबंध प्राचीन काल से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देव की उपासना की थी। वहीं, द्वापर युग में कर्ण और द्रौपदी ने भी सूर्य देव की आराधना की थी। इसके अलावा राजा प्रियंवद द्वारा की गई पूजा से छठ महापर्व का आरंभ माना जाता है। ऐसे में यहां जानें संपूर्ण पौराणिक व्रत कथा…

चार दिनों तक चलने वाला छठ का व्रत

छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें व्रती स्नान कर पवित्र भोजन करते हैं और अगले दिन के व्रत की तैयारी करते हैं। दूसरे दिन यानी 26 अक्टूबर को खरना मनाया जाएगा। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद वे निर्जला उपवास रखते हैं, यानी कुछ भी जल या अन्न ग्रहण नहीं करते। तीसरे दिन 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा, जब व्रती नदी, तालाब या घाट पर सूर्यास्त के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। अगले दिन 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। यही छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है। इस दौरान महिलाएं और पुरुष दोनों सूर्य देव और छठी मैया से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

छठ पूजा की पौराणिक कथा

छठ पूजा की एक पौराणिक कथा राजा प्रियंवद और रानी मालिनी से संबंधित है। कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत के कोई संतान नहीं थी, जिससे वे बहुत दुखी थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन में यज्ञ किया। यज्ञ के बाद रानी ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया और गर्भवती हुईं, लेकिन दुर्भाग्यवश एक मृत पुत्र को जन्म दिया। इस दुख से व्याकुल होकर राजा प्रियव्रत ने अपने जीवन का अंत करने का निश्चय किया। तभी उनके सामने एक दिव्य देवी प्रकट हुईं, जिन्होंने कहा – “मैं ब्रह्मा जी की पुत्री और सृष्टि की छठी शक्ति हूं, इसलिए मुझे षष्ठी देवी या छठी मैया कहा जाता है।” देवी ने राजा से कहा कि यदि वे उनकी आराधना करेंगे और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे, तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलेगा। राजा प्रियव्रत ने कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की विधिवत पूजा की। परिणामस्वरूप उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से इस दिन छठी मैया की पूजा करने की परंपरा शुरू हो गई।

भगावन राम और माता सीता ने भी की थी सूर्य देव की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के बाद छठ व्रत की शुरुआत हुई। लंकापति रावण का वध करने के बाद श्रीराम को ब्रह्महत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों से उपाय पूछा। तब ऋषि मुग्दल ने उन्हें कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की आराधना करने का निर्देश दिया। श्रीराम और माता सीता ने छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर विधि-विधान से सूर्य देव की पूजा की। तभी से यह परंपरा लोक आस्था में छठ पर्व के रूप में मनाई जाने लगी।

द्रोपदी ने रखा था छठ का व्रत

द्वापर युग में भी छठ व्रत का विशेष महत्व रहा है। मान्यता है कि जब पांडव कठिन समय से गुजर रहे थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार के कल्याण की प्रार्थना की थी। उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पांडवों को शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद दिया। दूसरी ओर, दानवीर कर्ण को सूर्य उपासना का प्रथम साधक माना जाता है। वह प्रतिदिन प्रातःकाल नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते थे। उनकी इस दिनचर्या से ही सूर्य पूजा की परंपरा स्थापित हुई, जो आज भी छठ पर्व के रूप में श्रद्धा से निभाई जाती है।

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