Chandra Grahan 2025 Mantra Jaap: हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण का विशेष महत्व है। आपको बता दें कि चंद्र ग्रहण हर साल पूर्णिमा के दिन लगता है। वहीं आपको बता दें कि साल का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण आज 7 सितंबर, रविवार को लगने जा रहे है। यह ग्रहण रविवार की रात 9 बजकर 57 मिनट से शुरू होगा और इसकी कुल अवधि 3 घंटे 30 मिनट रहने वाली है। शास्त्रों में ग्रहण को लेकर बताया गया है कि इस दौरान मानसिक तौर पर पूजा पाठ करना बेहद उत्तम रहता है। साथ ही हम आपको ऐसे मंत्रों और स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनका पाठ चंद्र ग्रहण के दौरन करना बेहद लाभकारी रहता है। साथ ही ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचाव होता है। आइए जानते हैं इन मंत्रों और स्तोत के बारे में…

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चंद्र ग्रहण पर करें इन मंत्रों का जाप

1-ग्रहण के दौरान “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः” मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से मन में शांति बनी रहती है। साथ ही धन- समृद्धि की प्राप्ति होती है।

2- चंद्र ग्रहण के दौरान “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” इस मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। साथ ही जीवनसाथी के साथ अच्छा तालमेल रहेगा।

3-  आप लोग चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा का मंत्र “ऊं श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः” का 108-108 बार जप करें। ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां सकारात्मक रूप में बदल जाती हैं। साथ ही जीवन में संपन्नता बनी रहेगी।

4- चंद्र ग्रहण के दौरान महामृत्युंजय मंत्र ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्ध॑नम्। उर्वारुकमि॑व बंध॑नान्मृत्योर्मु॑क्षीय माऽमृता॑॑त्॥ का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही सेहत अच्छी रहती है।

शिव चन्द्रशेखर अष्टक स्तोत्र

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम ।

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम ॥१॥

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं

सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम ।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥

पञ्चपादपपुष्पगन्धपदांबुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम ।

भस्मदिग्धकलेबरं भव नाशनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥

मत्तवारणमुख्यचर्मकॄतोत्तरीयमनोहरं

पङ्कजासनपद्मलोचनपूजितांघ्रिसरोरुहम ।

देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥

यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेबरम ।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥

कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वर कुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम ।

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम ।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं सकलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥

भक्तवत्सलमर्चितं निधिक्षयं हरिदंबरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम ।

सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम ।

कीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥९॥

मृत्युभीतमृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ

यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत ।

पूर्णमायुररोगतामखिलार्थसंपदमादरात

चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥१०॥

॥ इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रं संपूर्णम ॥

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