सांप्रदायिक सौहार्द का सुंदर संदेश देते हुए पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के एक परिवार ने महाअष्टमी पर कुमारी पूजन के दौरान चार साल की मुसलमान बच्ची की पूजा की। जिले में अर्जुनपुर का रहने वाला दत्त परिवार 2013 से ही अपने घर में माता की पूजा करता है। इस साल उन्होंने पुरानी परंपराओं से हटकर साम्प्रदायकि सौहार्द के लिए कुछ करने की सोचा।

ब्राह्मण कन्याओं के साथ करते थे पूजनः महा अष्टमी के दिन कुमारी कन्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। स्थानीय निकाय में अभियंता तमल दत्त ने बताया कि जातिगत और धार्मिक बाध्यताओं के कारण पहले हम सिर्फ ब्राह्मण कन्याओं के साथ कुमारी पूजन करते थे।
National Hindi News, 7 October 2019 Top Headlines LIVE Updates: देश-दुनिया की हर खबर पढ़ने के लिए यहां करें क्लिक
‘मां दुर्गा इस धरती पर सभी की मां’: स्थानीय निकाय अभियंता तमल दत्त ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि मां दुर्गा इस धरती पर सभी की मां हैं, उनका कोई धर्म, जाति या रंग नहीं है। इसलिए हमने परंपरा तोड़ी। उन्होंने कहा कि इससे पहले हमने गैर-ब्राह्मणों की पूजा की थी, इस बार मुसलमान लड़की की पूजा की है। वहीं मध्यप्रदेश के रतलाम जिले का एक गांव ऐसा है जहां 10 सिरों वाले इस पौराणिक पात्र की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है। दरअसल, इस गांव में शारदीय नवरात्रि के बजाय गर्मियों में पड़ने वाली चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा है। यह अनूठी रिवायत सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी है, क्योंकि इसे निभाने में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर मदद करते हैं।

पुरखों के जमाने से निभा रहे परंपराः इंदौर से करीब 190 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार के राजेश बैरागी ने मीडिया को बताया, ‘चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा मेरे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है। इसके तहत गांव के एक प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से रावण की मूर्ति की नाक पर वार कर इसे सांकेतिक रूप से काट देता है।’ उन्होंने कहा, ‘हिन्दी की प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है-बदनामी होना। लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा में यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिए उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।’