जीवन में सुख-समृद्धि के लिए पितरों के आशीर्वाद का बहुत महत्व होता है। अमावस्या तिथि पर उनका श्राद्ध और तर्पण करने से विशेष रूप से फल मिलता है। जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष हो उनके लिए अमावस्या तिथि को इसकी पूजा अवश्य करानी चाहिए। साथ ही पितराें का श्राद्ध और तर्पण कराने से सभी समस्याओं और दुखों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि भाद्रपद मास की अमावस्या को ऐसा करने से बहुत पुण्य मिलता है। कालसर्प दोष का निवारण के लिए अमावस्या की तिथि सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
क्यों होता है कालसर्प दोष: जब किसी की कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु ग्रहों के बीच आ जाते हैं तो उस पर कालसर्प दोष लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राहु और केतु ग्रहों के कारण दूसरे ग्रहों का प्रभाव और फल खत्म हो जाता है। इससे जीवन में तमाम प्रकार की बाधाएं और समस्याएं आने लगती हैं। पारिवारिक विघटन होता है। गृहस्थ जीवन में तनाव आने लगता है। विवाह और रोजगार में बिघ्न आ जाते हैं। कोई काम पूरा नहीं हो पाता है।
किनसे कराएं कालसर्प दोष निवारण पूजा: कालसर्प दोष निवारण पूजा योग्य आचार्य और कर्मकांडीय पुरोहित से ही करवाना चाहिए। पूजा में मंत्रों की शुद्धता और पवित्रता बहुत आवश्यक है। कालसर्प दोष निवारण की पूजा में चांदी के नाग-नागिन की पूजा की जाती है। पूजा के बाद इन्हें नदी में प्रवाहित कर देने का विधान है।
घास और कुश का महत्व: मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में प्रयोग की जाने वाली घास और कुश इस दिन अवश्य एकत्रित की जानी चाहिए। इससे वर्षभर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है।
कालसर्प दोष दूर करने के अन्य उपाय: शिवलिंग पर प्रतिदिन जल चढ़ाएं और शिव भगवान का रुद्राभिषेक करें। नागपंचमी का व्रत रखें। अपने आवास पर सदैव मोर का पंख रखें। कुल देवता की उपासना करें। प्रतिदिन महा मृत्युंजय मन्त्र का जाप करें। हनुमान चालीसा का प्रतिदिन 108 बार जप करें। मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।