वो तेरा सदन तो ये मेरा सदन! जी हां, बीते दिनों विधानसभा कार्यवाही से पूरे दिन के लिए सदन से बाहर किए गए भाजपा के सभी विधायक अपने निष्कासन को सह न सके और बात रखने के लिए ‘छद्म विधानसभा’ के सत्र का आयोजन कर दिया। साज-सज्जा भी वही और नियम कानून भी कमोबेश वही! मार्शल भी तैनात थे। फर्क सिर्फ इतना था कि सत्र विपक्ष को समर्पित रहा।

वहां सत्ता के लोग बोलते थे, यहां लगभग पूरे समय केवल विपक्ष ही बोला। नियम 55 के तहत मुद्दे उठाने का समय मिलने पर भाजपा के एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि बीते छह-सात सालों में पहली बार मुझे नियम 55 के तहत मुद्दे उठाने का मौका मिला है। विपक्षी सदस्यों ने खूब भडास निकाली। कई लोग तो पानी पी-पी कर बोले। लगा, मानो आखिरी बार मौका मिला रहा हो! जो तैयारी उन्होंने सदन के लिए कर रखी थी उसे यहां रखा। साफ दिखा कि अगर वो सदन ‘आप’ का है तो यह सदन ‘विपक्षी भाजपा’ का है! हास्य का पात्र तो यहां मुख्यमंत्री का मुखौटा पहने भाजपा का कार्यकर्ता बना। जब केजरीवाल बन वह सत्ता पक्ष का बचाव करते समय हाथ में कमल का चित्र छपा कागज लहरा बैठा।

और लदे दिन

निगम में सीना ठोंककर वेतन लेने वालों के दिन लद गए। धरना, प्रदर्शन और काम रोको मांग पर पहले निगम में अधिकारियों के कान पर जूं रेंग जाता था लेकिन जब से एकीकरण हुआ है तब से इन धमकियों का कोई प्रभाव नहीं दिखता। बेदिल को वेतन नहीं मिलने से परेशान एक अधिकारी ने बताया कि इस समय निगम अनाथ है। कारण, भंग निगम का जिम्मा विशेष अधिकारी और निगम आयुक्त को सौंप तो दिया गया है लेकिन समस्याओं के मकड़जाल में दोनों अधिकारी उपाय खोजने में सफल नहीं हो रहे। दूसरी तरफ अब कोई संगठन या चुने हुए पदाधिकारी रहे नहीं जिससे मांगों के लिए दबाव बनाया जाए।

डर की परेड

दूसरे राज्यों में विधायकों की परेड सत्ता पक्ष इसलिए कर रहा है क्योंकि वहां जोड़तोड़ की सरकार में कब विधायक कहां चले जाएं पता नहीं। ऊपर से दो-तीन विधायकों के कम होने से भी सत्ता पक्ष की पार्टी को भारी नुकसान हो जा रहा है। लेकिन दिल्ली में सत्ता पक्ष की पार्टी अपने विधायकों की परेड पर परेड करा रही है। हालांकि उनका डर भी अन्य राज्यों की पार्टियों की तरह ही लेकिन यहां हालात दूसरे हैं। यहां सत्ता में पूर्ण बहुमत है और विपक्ष में मात्र आठ विधायक। यानी अगर एक-दो से तो फर्क ही नहीं पड़ने वाला। लेकिन पहले मुख्यमंत्री आवास और फिर सदन के अंदर भी बहुमत साबित करने की तैयारी बता रही है कि यह डर वाली परेड भी संकट खड़ा सकती है।

संकट दर संकट

दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी की पार्टी अपने झाडूÞ से कितना ही भ्रष्टाचार का सफाया करने की बात कहे लेकिन कोने-कोने में पड़ा कचरा सामने आ ही जा रहा है। यह कचरा पार्टी के लिए संकट के समान ही है। पहले सेहत के मंत्री को जेल की हवा खानी पड़ी, फिर शिक्षा और शराब के मामले देखने वाले मंत्री को छापेमारी के मानसिक दबाव से गुजरना पड़ा। इसके बाद राजनिवास फाइलों पर दिल्ली के मुखिया के हस्ताक्षर चाह रहे हैं। मुखिया हस्ताक्षरÞ क्यों नहीं करते यह आम आदमी के नेता कहे जाने वाले मुखिया ही बता सकते हैं लेकिन बेदिल ने सुना है कि यह हस्ताक्षरÞ न करने का दौर भी लगभग खत्म होने को है। हालांकि यह संकट सेहत से शुरू होकर बस तक पहुंच गया है। देखिए कितना सफर तय करता है।
-बेदिल