शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 सालों तक दिल्ली पर एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने पूर्व विधायकों, पार्षदों, पूर्व पार्षदों और ब्लाक और जिला अध्यक्षों सहित पुराने कार्यकर्ताओं को समेटकर रखने में विफल साबित होती नजर आ रही है।
आम आदमी पार्टी (आप) का जलवा और दिल्ली नगर निगम के आगामी चुनाव को देखते हुए एक के बाद एक पिछले छह महीने में करीब 30 से 40 नेता कांग्रेस छोड़ ‘आप’ में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस के इन पुराने नेताओं का मानना है कि पार्टी में वर्चस्व और पुराने नेताओं की अवहेलना के कारण उन्हें दूसरी पार्टियों का रूख करना पड़ रहा है।
दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व इस समय समाप्त होने के कगार पर आ गया है। शीला दीक्षित के देहांत के बाद प्रदेश अध्यक्षों की धड़ाधड़ अदला-बदली और फिर पार्टी का अपने वरिष्ठ नेताओं की अवहेलना ने कईयों को ‘आप’ और भाजपा में जाने को विवश कर दिया है। दिल्ली के तीनों निगमों में इस समय 31 कांग्रेस पार्षद हैं जिनमें नौ पार्षद पार्टी छोड़ चुके हैं।
इसी प्रकार करीब 40 पूर्व निगम पार्षद पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। पुराने विधायकों में भी यही हाल है। शीला दीक्षित शासन में लगातार मंत्री रहे डा योगानंद शास्त्री तक कांग्रेस छोड़ एनसीपी में जा चुके हैं। इस फेरबदल पर कांग्रेस पार्टी के एक पुराने नेता का कहना था कि दरअसल पार्टी में अब पुराने कार्यकर्ताओं की कद्र नहीं है। नए नेताओं को भले ही दिल्ली की कमान दी जा रही है लेकिन दिल्ली में जिस तरह ‘आप’ से जनता का लगाव और जुड़ाव हो रहा है उसमें सेंध लगाने की हैसियत नेताओं में नहीं।