बिहार में 17.7% आबादी के बावजूद कम हिस्सेदारी से प्रदेश के अल्पसंख्यक समुदाय में विरोध के स्वर उभरने लगे हैं। खासतौर पर विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के प्रमुख मुकेश सहनी (मल्लाह के बेटे) का उपमुख्यमंत्री के तौर पर नाम घोषित होने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है।

हालांकि, महागठबंधन में सीट बंटवारे के वक्त कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने घोषणा की थी कि उपमुख्यमंत्री घोषित किए जाएंगे। इनमें दलित और अल्पसंख्यक प्रत्याशियों के नाम संभावित हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है, सीट बंटवारे की तरह इसमें भी देरी हुई तो महागठबंधन को इसका नुकसान हो सकता है।

विधानसभा चुनाव में इस बार महागबंधन ने 31 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें सर्वाधिक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के हैं, जबकि कांग्रेस के 10 और भाकपा (माले) के दो मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी समर में उतरे हैं। उधर NDA ने कुल पांच उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है। इनमें चार जनता दल यू से हैं जबकि एक लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय लोक मोर्चा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक भी उम्मीदवार को नहीं उतारा है।

मुस्लिम मतदाताओं में नाराजगी

मुस्लिम मतदाताओं और उम्मीदवारों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि उन्हें केवल वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी बराबर हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। करीब 18% आबादी होने के बावजूद काफी कम आबादी वाले को अधिक तवज्जो दी गई। हालांकि महागठबंधन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगले कुछ दिनों में अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के उपमुख्यमंत्री की घोषणा किए जाने की संभावना है।

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हाल ही में चिराग पासवान ने मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल उठाते हुए एक्स पर लिखा-मेरे नेता पिता ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी पार्टी तक कुर्बान कर दी थी, तब भी राजद ने साथ नहीं दिया था। राजद 2005 में भी मुसस्लिम मुख्यमंत्री के लिए तैयार नहीं था। 2025 में भी न मुस्लिम मुख्यमंत्री देने को तैयार है और न उपमुख्यमंत्री, अगर आप बंधुआ वोट बैंक बनकर रहेंगे, तो सम्मान और भागीदारी कैसे मिलेगी। तेजस्वी यादव ने इसका जवाब दिया, भाजपा की इच्छा भी पूरी होगी।

बिहार की 60 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका अहम

उल्लेखनीय है कि बिहार की कुल 243 सीट में करीब 60 ऐसी हैं, जहां के सियासी समीकरण तय करने में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका है। ऐसे में समुदाय की मांग है कि उन्हें भी बराबर हिस्सेदारी मिले।

जदयू ने 2020 चुनाव में 10 मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा था, लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिलने की वजह से शायद इस बार संख्या आधे से भी कम कर दी गई हैं। राजद ने 143 प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा, जिनमें 18 मुस्लिम है और कमाबेश 2020 में भी आंकड़ा यही था। कांग्रेस ने अपने 60 में 10, भाकपा (माले) ने 2 जबकि वीआईपी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार को सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से टिकट दिया है।

बिहार में मुस्लिमों की संख्या 2.3 करोड़

2023 की जातिगत जनगणना के मुताबिक, बिहार में मुसलमानों की संख्या 2.3 करोड़ (17.7%) है। यह समुदाय करीब 60 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। बावजूद इसके 2020 की विधानसभा चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 19 रह गई थी। इनमें राजद के 8, AIMIM के पांच, कांग्रेस के चार, बसपा और भाकपा (माले) के एक-एक थे।

हम केवल वोट बैंक नहीं: इमान

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM नेता अख्तरुल इमान ने कहा कि मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की बात उठाई जा रही है। महागठबंधन पर आरोप लगाए जा रहे है काफी कम आबादी वाले समुदाय को अधिक तवज्जो दी गई और उपमुख्यमंत्री घोषित किया गया। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, क्या 18 फीसद वालों का सिर्फ वोट चाहिए। उन्होंने कहा, जो भूखा है, उसका कोई मजहब नहीं। पहले भी विधानसभा में सीमांचल को ‘विशेष पैकेज’ और पलायन के मुद्दे को उठाते रहे हैं। बकौल इमान ‘हम सिर्फ वोट बैंक नहीं, इंसान हैं’।

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