नीलगाय, बंदर और जंगली सुअर को हिंसक जानवर घोषित करने वाली तीन अधिसूचनाओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार पशु अधिकार संगठनों को केंद्र के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने के लिए कहा है जबकि बोर्ड ने इन अधिसूचनाओं को एकतरफा फैसला करार दिया है।
पशु कल्याण संबंधी कानूनों पर वैधानिक परामर्शदाता निकाय की भूमिका निभाने वाले पशु कल्याण बोर्ड ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचनाओं पर सवाल उठाया है। इन अधिसूचनाओं के माध्यम से नीलगाय, बंदर और जंगली सुअर को एक साल के लिए बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हिंसक जानवर घोषित किया गया है।
देश में पशु कल्याण को बढ़ावा देने वाले बोर्ड की ओर से न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अवकाश पीठ के समक्ष पेश अधिवक्ता ने कहा, ‘यहां एक पक्ष वाली बात है। हमने वीडियो देखा है। मंत्रालय ऐसा कैसे कर सकता है। पशुओं के प्रति करुणा भाव होना चाहिए।’ बहरहाल, सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि बोर्ड ने इन अधिसूचनाओं को चुनौती नहीं दी है। पीठ ने कहा कि जब मुख्य मामले की सुनवाई होगी तब वह बोर्ड के तर्कों को सुनेगी। याचिकाओं पर नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए पीठ ने केंद्र से अभ्यावेदनों पर दो सप्ताह के अंदर विचार करने तथा जरूरी होने पर समुचित कदम उठाने के लिए कहा है।
पीठ ने सवाल किया, ‘(शिकार पर) रोक वन क्षेत्र में या पशुओं की रिहायश में लागू होगी, उसके बाहर नहीं। पूर्ण रोकथाम केवल पशुओं की रिहायश में लागू होगी। आप उन्हें उनके आवासों में नहीं मार सकते। मान लीजिये कि वह अपनी रिहायश से बाहर पाए जाते हैं तो उनके साथ कैसे निपटा जाए।’
सवाल के जवाब में, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने बिहार में नीलगायों को मारे जाने का संदर्भ देते हुए कहा, ‘ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक तरीके हैं। जंगली पशुआें को इस तरह नहीं मारा जा सकता।’
पहली अधिसूचना मंत्रालय ने एक दिसंबर 2015 को जारी की थी जिसमें नीलगाय और जंगली सुअर को बिहार के कुछ जिलों में एक साल के लिए हिंसक जानवर घोषित किया गया था। इस साल तीन फरवरी को दूसरी अधिसूचना जारी हुई जिसमें जंगली सुअर को उत्तराखंड के कुछ जिलों में एक साल के लिए हिंसक जानवर घोषित किया गया। गत 24 मई को जारी अधिसूचना में रेसस मकाक (बंदर) को हिमाचल प्रदेश के कुछ जिलों में हिंसक जानवर घोषित किया गया।
लूथरा ने पीठ से कहा कि वन्यजीव विभाग ऐसे मामलों से निपटने में समर्थ है। उन्होंने कहा, ‘वह (वन्यजीव विभाग) आ कर पशुओं को पकड़ सकते हैं और अगर पशु नरभक्षी बन गया हो तो उसे मारा जा सकता है।’ सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया, ‘क्या आपने केंद्र सरकार के समक्ष अभ्यावेदन दिया है?’ पीठ ने कहा, ‘आगे की अधिसूचनाएं या अधिसूचनाओं पर शुद्धिपत्र केंद्र सरकार द्वारा जारी किया जाना है। अधिसूचना जारी करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। आप एक अभ्यावेदन दें और हम अपेक्षा करते हैं कि केंद्र सरकार जरूरी कार्रवाई करेगी। मुख्य याचिका को लंबित रखा जा सकता है।’
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि केंद्र ने राज्य सरकारों से पशुओं और मानव के बीच संघर्ष के बारे में जानकारी देने को कहा था। उन्होंने दावा किया कि बिहार और हिमाचल प्रदेश ने केंद्र को न तो कोई रिपोर्ट दी और न ही उन्होंने ऐसा कोई अध्ययन कराया जबकि लोगों ने इस बारे में शिकायतें की थीं।
बिहार की घटना का संदर्भ देते हुए ग्रोवर ने कहा कि पशुओं को मारने के लिए मुंबई के लोगों को भाड़े पर नियुक्त किया गया और वह लोग शूटर (निशानेबाज) थे। इस पर पीठ ने कहा, ‘यह बयान प्रश्न योग्य है।’ ग्रोवर ने हालांकि कहा, ‘मैं धब्बा नहीं लगा रहा हूं। उन्होंने यदाकदा ही पशुओं को मारा।’ उन्होंने कहा कि मानव और पशुओं के बीच संघर्ष की घटनाएं वन क्षेत्र के बाहर हुई हैं।
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि संसद का इरादा हिंसक जानवरों की संख्या घटाना है। उन्होंने कहा, ‘एक वैज्ञानिक अध्ययन करना होगा। एक राज्य ने माना है कि उन्होंने अध्ययन नहीं किया है। सभी सामग्री केंद्र सरकार के समक्ष हैं लेकिन फिर भी उसने ऐसी अधिसूचना जारी की।’
सॉलिसीटर जनरल ने हालांकि इन याचिकाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनकी सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट समुचित फोरम नहीं है। उन्होंने कहा कि ये अधिसूचनाएं वन क्षेत्र के बाहर के इलाकों में लागू होती हैं। इस पर लूथरा ने कहा कि वह बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के संबंध में जारी इन अधिसूचनाओं को चुनौती दे रहे हैं और यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है।
बहरहाल, पीठ ने कहा कि इस अदालत को पहली अदालत के तौर पर देखना मुश्किल है। सुनवाई के आखिर में लूथरा ने पीठ से एक नोटिस जारी करने का आग्रह किया लेकिन शीर्ष अदालत ने सोमवार कोई नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह मामले की सुनवाई स्थगित कर रही है। पीठ ने जब याचिकाकर्ताओं से संबद्ध प्राधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन देने के लिए कहा तो सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि वे इस पर विचार करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को तय की गई है।