महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों की नज़र विदर्भ क्षेत्र पर है। इस इलाके में प्रदेश की कुल 288 विधानसभा सीटों में से 62 सीटें आती हैं। यानी जो इस सीट के नंबर गेम में आगे रहा, उसे जीत हासिल करने के रास्ते में काफी मदद मिलती है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों की नज़र इस इलाके पर है। गौर करने की बात यह है कि महाराष्ट्र के चार क्षेत्रों-मराठवाड़ा, पश्चिमी और उत्तरी महाराष्ट्र, और कोंकण- से हटकर विदर्भ में गठबंधन सहयोगियों और छोटी पार्टियों की भूमिका बहुत ज़्यादा नहीं है, इसलिए यहां की लड़ाई सीधे तौर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच है।
बीजेपी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह क्षेत्र?
भाजपा विदर्भ क्षेत्र की 62 में से 50 से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और शेष सीटों पर शिवसेना और एनसीपी के हिस्से जा सकती हैं। जबकि कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार विदर्भ में 45 से अधिक सीटों पर जोर दे रहे हैं, जबकि बाकी सीटें सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) के लिए छोड़ रहे हैं।
यह इलाका क्यों महत्वपूर्ण है, इस बात का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी ने लगातार दो दौरे-20 सितंबर और 5 अक्टूबर को वर्धा और वाशिम में किए थे।
विदर्भ के अहम शहर नागपुर में आरएसएस का मुख्यालय है, यह भी वजह है कि बीजेपी खुद को इस इलाके में मजबूत मानती रही है। इसके अलावा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नागपुर दक्षिण पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। पिछले चुनावों में टिकट से वंचित रहे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के कांपती सीट से चुनाव लड़ने की संभावना है।
बल्लारपुर सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार कड़ी टक्कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसके अलावा, नागपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इस क्षेत्र में भाजपा के स्टार प्रचारकों में शामिल होंगे।
कांग्रेस की क्या तैयारी है?
केंद्रीय नेतृत्व के साथ लगातार बैठकों में राहुल गांधी ने विदर्भ क्षेत्र पर जोर दिया है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे विदर्भ में पिछले दो दशकों में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत की है।
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2014 और 2019 के पिछले दो चुनावों में, विदर्भ के लिए अलग राज्य का मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच अपनी अपील खोता हुआ दिखाई दिया। इसके बजाय, भाजपा विकास के मुद्दे के माध्यम से क्षेत्र के पिछड़ेपन से निपट रही है।
ओबीसी कार्ड खेलने की कोशिश
विदर्भ में दो प्रमुख समुदाय – कुनबी और तेली – दोनों ही ओबीसी के अंतर्गत आते हैं, जो चुनाव परिणाम निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली एमवीए कुनबी/दलित/मुस्लिमों पर बढ़त हासिल करने के लिए आगे बढ़ रही है वहीं भाजपा तेली/बंजारों के साथ-साथ अन्य छोटे समूहों के बीच अपना आधार मजबूत कर रही है, जिससे क्षेत्र में ओबीसी बनाम ओबीसी की स्थिति बन गई है।