पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की “दुआरे राशन” योजना को हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया है। ममता सरकार की यह योजना तृणमूल कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा थी। हालांकि, कोर्ट के फैसले से टीएमसी परेशान नजर नहीं आ रही है। पार्टी इसके चुनावी प्रभाव से बिल्कुल भी चिंतित नजर नहीं आ रही है जबकि कोर्ट का यह फैसला अगले साल होने जा रहे पंचायती चुनावों से कुछ महीने पहले आया है।

टीएमसी का मानना है कि यह योजना हिट रही थी और लोगों को इस योजना का लाभ मिला था। ऐसे में अगर स्कीम को बंद कर दिया गया है तो लोग इसे याद करेंगे, जिसका फायदा टीएमसी को पंचायती चुनावों में मिलेगा। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “दुआरे योजना की तरह दुआरे राशन योजना भी हिट रहा थी इसलिए अगर यह योजना बंद हो जाती है, तो लोग इस योजना को याद करेंगे। इससे हमें फायदा होगा।”

उधर, विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसे “टीएमसी की चालबाजी” करार दिया है। भाजपा प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा, “यह एक नौटंकी के अलावा और कुछ नहीं था। टीएमसी ने इसका इस्तेमाल खेल खेलने के लिए किया। इसने न केवल लोगों और राशन डीलरों के बीच संबंधों को बिगाड़ा, बल्कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी गंभीर रूप से बाधित किया।”

बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार की दुआरे राशन योजना को कलकत्ता हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के खिलाफ और काननी रूप से अवैध है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि लाभार्थियों के घरों तक राशन पहुंचाने की इस योजना को लागू करने के लिए नियमों का उल्लंघन किया गया है।

यह योजना टीएमसी के चुनावी वादों का हिस्सा थी। इसके तहत सरकार ने जरूरतमंद परिवारों को मुफ्त में 5 किलो राशन उपलब्ध कराने का वादा किया था। इसके शुभारंभ के समय सीएम ने राशन डीलरों को घर-घर खाद्य सामग्री पहुंचाने के लिए वाहन खरीदने के लिए 1 लाख रुपये का अनुदान देने का आश्वासन भी दिया था। उन्होंने कहा कि राशन पहुंचाने वाले वाहन इलाके के किसी एक पॉइंट पर तैनात किए जाएंगे और डीलर जरूरतमंदों के घर तक राशन पहुंचाएंगे। इस काम के लिए दो कर्मचारी रख सकते हैं। घरों तक राशन की डिलीवरी करने वालों को 10,000 रुपये मासिक वेतन मिलेगा, जिसमें से 5,000 रुपये सरकर और बाकी राशन डीलरों को देना होगा।

हालांकि, डीलरों की तरफ से सरकार की इस योजना पर ठंडी प्रतिक्रिया मिली और उन्होंने इसे चुनौती देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के न्यायाधीश की एकल पीठ ने कहा कि योजना में कोई अवैधता नहीं है और उन्होंने सरकार को योजना को जारी रखने की अनुमति दे दी। राशन डीलरों ने इस फैसले को चुनौती दी और खंडपीठ का रुख किया। इसके बाद न्यायमूर्ति चित्तरंजन दास और अनिरुद्ध रॉय की खंडपीठ ने कहा कि राशन योजना की कोई कानूनी वैधता नहीं है।