UP Chief Minister: उत्तर प्रदेश भाजपा के ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सूबे में खलबली मची दी है। ब्राह्मण विधायकों की बैठक से सबसे ज्यादा दिक्कत भाजपा को हुई है। यही वजह है कि इस बैठक के बाद यूपी के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को दिल्ली तक दौड़ लगानी पड़ी।वहीं, आनन-फानन में यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी ने ऐसी बैठकों पर चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि इस तरह की बैठकें बीजेपी के संविधान में नहीं हैं।

हालांकि, यूपी बीजेपी अध्यक्ष के इस बयान के बाद सपा-कांग्रेस समेत बीजेपी के कुछ नेताओं ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जब ठाकुर या ओबीसी समाज के नेता बैठक करते हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है, लेकिन जब ब्राह्मण विधायकों की बैठक होती है तो बीजेपी नेतृत्व को दिक्कत क्यों हो रही।

उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ने कहा, ‘चश्मा गलत है, लेकिन उद्देश्य गलत नहीं हैं। लोग मिलते हैं, मिलना भी चाहिए। अगर कोई विधायक किसी के जन्मदिन, सालगिरह या लिट्टी-चोखा खाने चला जाए, तो उसे जातिगत बैठक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।’

पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह ने कहा, “चार क्षत्रिय मिल जाएं या चार ब्राह्मण मिल जाएं। साथ बैठकर चर्चा करें। इसमें मैं कुछ गलत नहीं देख रहा हूं। मैं इस बैठक का स्वागत करता हूं। मैं इसे गलत नहीं मानता, जो मानता है वो माने।”

यूपी सरकार में मंत्री धर्मवीर प्रजापति ने कहा, “जब सत्र चलता है, विधायक इकट्ठा होते हैं तो साथ में बैठक कर लेते हैं। इसे जातिवाद से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।”

मंत्री सुनील शर्मा ने कहा, “जब सदन चलता है तो चार-छह लोग बैठते ही हैं। हम कभी पश्चिम के लोग बैठ जाते हैं, तो कहेंगे पश्चिम के लोग साथ बैठ गए। इसका कोई राजनीतिक मतलब निकालने का उद्देश्य नहीं है। यह बात समझ लो, बैठक में बैठने वाले लोगों ने राष्ट्र, सनातन और पार्टी को मजबूत करने की चर्चा की होगी।”

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा, “ब्राह्मण विधायकों की बैठक किस उद्देश्य से हुई थी, बैठक में शामिल कौन-कौन लोग थे। उनके क्षेत्र में क्या कोई समस्या थी या उन्हें खुद कोई कठिनाई थी। इनका पता लगाए बिना कुछ नहीं कह सकते हैं। यह भी देखना होगा कि किसकी प्रेरणा से ब्राह्मण विधायकों ने बैठक की, मुझे लगता है कि इसके पीछे यह भी वजह रही होगी।”

ब्राह्मण विधायकों की बैठक को लेकर विपक्ष ने क्या कहा?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “अपनों की महफ़िल सजे तो जनाब मेहरबान… और दूसरों को भेज रहे चेतावनी का फरमान।”

शिवपाल यादव ने कहा, “भाजपा के लोग जाति में बांटते हैं। बीजेपी से नाराज ब्राह्मण विधायक सपा में आ जाएं। पूरा सम्मान मिलेगा।”

समाजवादी पार्टी के नेता पवन पांडे ने कहा, “ब्राह्मण विधायकों ने इकट्ठा होकर अपना दुख-दर्द साझा किया। एक-दूसरे से अपना रोना रोया कि दरोगा-कोतवाल सुन नहीं रहे, सरकार में अपमानित हो रहे हैं। तो यह बात ऊपर के लोगों को बहुत बुरी लगी और अब ब्राह्मण विधायकों को डांटा जा रहा है। यही है भाजपा का ब्राह्मणों के प्रति चाल, चरित्र और चेहरा।”

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने ब्राह्मण विधायकों का अपमान किया। बाकी जातियों की बैठक हुई उस पर किसी कार्रवाई की बात नहीं की गई। लेकिन ब्राह्मण समाज को विशेष रूप से टारगेट करके कार्रवाई की बात हो रही है। मुझे लगता है कि ब्राह्मण नेताओं को मजबूत स्टैंड लेना चाहिए।”

यह बैठक क्यों बनी मुद्दा?

पिछले दिनों क्षत्रिय विधायकों ने कुटुंब परिवार की दो बार बैठक की। मीटिंग में प्रदेश सरकार के मंत्री जयवीर सिंह, दयाशंकर सिंह सहित अन्य मंत्री और विधायक भी मौजूद हुए थे। लेकिन उस दौरान भाजपा की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई।

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे और पूर्व सांसद राजबीर सिंह राजू भैया ने लोध समाज के विधायकों, सांसदों और नेताओं का सम्मेलन किया। समाज की आवाज भी बुलंद की। लेकिन उस समय भी पार्टी की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई।

वहीं,कुर्मी बौद्धिक विचार मंच के बैनर तले भाजपा के कुर्मी विधायकों ने भी बैठक की। बैठक में समाज को सरकार और संगठन में पर्याप्त नेतृत्व की बात भी उठी। लेकिन उस समय भी बीजेपी की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई।

ब्राह्मण विरोधी होने के क्यों लग रहे आरोप?

राजधानी लखनऊ में 23 दिसंबर को ब्राह्मण विधायकों ने मीटिंग की थी। यह मीटिंग विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के बीच कुशीनगर के बीजेपी विधायक पीएन पाठक की पत्नी के जन्मदिन के नाम पर उनके लखनऊ आवास पर हुई थी। इस बैठक में पूर्वांचल और बुंदेलखंड के 45 से 50 ब्राह्मण विधायक शामिल हुए। खास बात यह है कि इस बैठक में दूसरी पार्टियों के भी ब्राह्मण विधायक शामिल हुए थे।

ब्राह्मण विधायकों की इस बैठक के योगी सरकार में हलचल पैदा हो गई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री के ओएसडी सरवन बघेल ने भाजपा विधायक पीएन पाठक को कॉल कर मामले की जानकारी ली। पाठक ने उन्हें बताया कि कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी। मैंने सहभोज रखा था। रिपोर्ट के मुताबिक, कहा तो यहां तक जा रहा है कि आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी भी इस मामले को शांत कराने जुटे थे।

मीटिंग की जरूरत क्यों पड़ी?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मीटिंग में कहा गया कि कई जातियां तो ताकतवर हो गईं, लेकिन ब्राह्मण पिछड़ गया है। कास्ट की पॉलिटिक्स में ब्राह्मणों की आवाज गुम होती जा रही है। उनकी आवाज को नहीं सुना जा रहा है। इसी वजह से यह बैठक हुई। विधायकों को कहना था कि उनके समाज से उपमुख्यमंत्री तो हैं, लेकिव उनको वो पावर नहीं है, जो होनी चाहिए।

यूपी बीजेपी अध्यक्ष ने दी चेतावनी

ब्राह्मण विधायकों की बैठक के बाद यूपी से लेकर दिल्ली तक एक्टिव हो गया। यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने इसको लेकर आपत्ति जताई। बीजेपी की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी की गई। जिसमें कहा गया कि विधानसभा सत्र के दौरान कुछ जनप्रतिनिधियों द्वारा विशेष भोज का आयोजन किया गया था। जिसमें अपने समाज को लेकर चर्चा की गई। हमनें विधायकों के साथ बातचीत की है। सभी को स्पष्ट कहा है कि ऐसी कोई भी गतिविधि भाजपा की संवैधानिक परंपराओं के अनुकूल नहीं है। विधायकों से भविष्य में अलर्ट रहने को कहा है। बैठक में शामिल सभी जनप्रतिनिधियों से कहा है कि इस तरह गतिविधियों से समाज में गलत मैसेज जाता है। भविष्य में अगर भाजपा के किसी जनप्रतिनिधि ने इस तरह की गतिविधियों को दोहराया, तब यह अनुशासनहीनता मानी जाएगी।

यूपी में अब तक कितने मुख्यमंत्री हुए, उसमें ब्राह्मण कितने?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों पर नजर डालें तो अब तक कुल 21 मुख्यमंत्री हुए, इसमें सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री (6) ब्राह्मण समाज से रहे। यानी यूपी को 20 साल तक ब्राह्मण मुख्यमंत्री ने चलाया। इसको ब्राह्मण काल भी कह सकते हैं। दूसरा ब्राह्मण शून्य काल- जिसमें पिछले 32 सालों में एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना।

कांग्रेस ने सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए

पार्टीकिस जाति के मुख्यमंत्री बनाए
कांग्रेस6 ब्राह्मण, 3 ठाकुर, 1 बनिया
बीजेपी2 ठाकुर, 1 बनिया, 1 लोधी राजपूत
जनता पार्टी1 यादव, 1 बनिया
समाजवादी पार्टी2 यादव
बहुजन समाज पार्टी1 अनुसूचित जाति
भारतीय क्रांति दल1 जाट
जनता दल1 यादव

यूपी का ब्राह्मण कालः 1946 से 1989, कुल 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री, सब कांग्रेस से, आजादी की लड़ाई आखिरी मुकाम पर थी। नेता वो जो अंग्रेजों को गद्दी हिला दे। 1925 में UP के लड़कों ने काकोरी में अंग्रेजों का खजाना लूटा। तब कोर्ट में उनकी पैरवी के कोई तैयार नहीं था। यहीं पर सामने आया UP का पहला ब्राह्मण नेता- गोविंद बल्लभ पंत।

गोविंद बल्लभ पंत अलावा सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्रा ब्राह्मण थे जो मुख्यमंत्री बने, जबकि नारायण दत्त तिवारी UP के आखिरी ब्राह्मण CM थे।

यूपी में अब तक मुख्यमंत्री?

यूपी का ब्राह्मण शून्य कालः 32 साल से एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं है। साल 1980, मंडल कमीशन ने तब के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने पिछड़े वर्ग की 3743 जातियों की पहचान की। उन्हें 27% आरक्षण देने को कहा। खूब बवाल हुआ, लेकिन UP की OBC और अनुसूचित जाति के नेता जान गए थे कि उनका समय आने वाला है।

जातिकितने मुख्यमंत्रीप्रतिशत (%)कितने साल रहे
ब्राह्मण628.5%20
ठाकुर523.5%12
यादव314%15
बनिया314%6
अनुसूचित जाति14.5%7
कायस्थ14.5%6
जाट14.5%1.5
लोधी14.5%3.5

ब्राह्मणों के दम पर 2007 में मायावती सीएम की कुर्सी पर बैठीं

फिलहाल उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं है, जो CM की दौड़ में दिखाई दे रहा हो। कहते हैं कि 2007 चुनाव में बहुत हद तक ब्राह्मण बसपा के साथ हो गए थे, तब मायावती की सरकार बनी थी।

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2009 में बसपा सरकार में तमाम ब्राह्मणों पर SC-ST एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हुए। इससे ब्राह्मण नाराज हो गए और 2012 विधानसभा चुनाव में सपा के साथ जा मिले, लेकिन यादववाद के विरोध में 2017 में ब्राह्मणों ने भाजपा को समर्थन दिया, 2017 में एक बार ऐसा लगा था कि शायद फिर से ब्राह्मण चेहरा आगे करके कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। तब शीला दीक्षित को नेता मानकर कांग्रेस ने 27 साल यूपी बेहाल के पोस्टर भी लगवाए थे। लेकिन बाद में सपा से गठबंधन होने के बाद ब्राह्मण सीएम का रास्ता बंद हो गया।

मंडल कमीशन लागू होने से लगा झटका

मंडल कमीशन लागू होने से ब्राह्मणों को सबसे तगड़ा झटका लगा 13 अगस्त 1990 को वो दिन आ ही गया, जिसने ब्राह्मणों को 32 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर रखा हुआ है। हुआ ये था कि वीपी सिंह PM की कुर्सी पर थे। वो खुद तो ठाकुर जाति से आते थे, लेकिन उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। तब से अब तक सिर्फ ठाकुर, यादव या अनुसूचित जा‌ति के ही मुख्यमंत्री बने हैं।

1989 के बाद 7 मुख्यमंत्री बने

1989 के बाद अब तक कुल सात मुख्यमंत्री बने, चार भाजपा, दो समाजवादी पार्टी और एक बहुजन समाज पार्टी से भारतीय जनता पार्टी, यानी भाजपा ने 1989 के बाद से अब तक प्रदेश में चार बार सरकार बनाई है। इसमें उसने दो ठाकुर और एक बनिया और एक लोधी राजपूत को मौका दिया। सपा ने दोनों यादव और बसपा ने इकलौती अनुसूचित जाति से मुख्यमंत्री चुना।

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