लोकसभा चुनाव होने में चार महीने बाकी है। साथ ही झारखंड विधानसभा चुनाव होने में थोड़ा समय बाकी है। झारखंड में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है। लेकिन अब वहां ये आमने-सामने खड़े नजर आ रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेता और खूंटी सात बार सांसद रहे पद्म भूषण करिया मुंडा ने 24 दिसंबर को आरएसएस की इकाई जनजातीय सुरक्षा मंच के बैनर तले आयोजित ‘आदिवासी डी-लिस्टिंग रैली’ को संबोधित किया।
रैली में तर्क दिया गया कि जो आदिवासी ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, उनसे एसटी दर्जे का अधिकार ले लेना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि परिवर्तित आदिवासी आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यक दोनों होने का लाभ उठाते हैं। दरअसल जो आदिवासी कन्वर्ट हो रहे हैं और जो नहीं, उनके बीच विवाद बढ़ रहा है।
जनजातीय सुरक्षा मंच के संयोजक गणेश राम भगत ने तर्क दिया, “आदिवासी वास्तव में ‘हिंदू’ हैं। आदिवासी जो रूढ़िवादी है, वह हिंदू है। वो धरती की पूजा करता है, प्रकृति की पूजा करता है, मंदिर भी जाता है। जब तक केंद्र हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देता, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा।”
करिया मुंडा ने कहा, “दिवंगत कार्तिक ओरांव (लोहरदगा से तीन बार के सांसद) ने 1970 के आसपास डीलिस्टिंग के विचार का समर्थन किया था, लेकिन दुर्भाग्य से यह फलीभूत नहीं हो सका। हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि धर्मांतरित आदिवासियों को तिगुना लाभ मिल रहा है। अल्पसंख्यकों को अपने समुदाय के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए भारत और विदेशों से धन मिलता है।”
झारखंड में 28 एसटी-आरक्षित सीटें चुनाव को किसी भी पार्टी को फायदा पहुंचा सकती हैं। 2014 में भाजपा ने अपनी कुल 37 सीटों में से ST आरक्षित 12 सीटें जीती थीं और सरकार बनाने के लिए ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के साथ गठबंधन किया था। हालांकि 2019 के विधानसभा चुनावों में एसटी-आरक्षित सीटों में भाजपा की संख्या घटकर सिर्फ 2 रह गई वहीं जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 25 सीटें जीतीं और निर्दलीय ने 1 सीट जीती।
सरना जाति को लेकर फंसा है पेंच
जेएमएम-कांग्रेस सरकार ने भी इस मुद्दे पर अपना झुकाव स्पष्ट कर दिया है। पिछले साल झारखंड विधानसभा ने आगामी जनगणना में ‘सरना’ के एक अलग धार्मिक कोड की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसे उसने केंद्र को भेज दिया था। इस साल की शुरुआत में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि 1951 की जनगणना में आदिवासियों के लिए एक अलग कोड का प्रावधान था, जिसे बाद में समाप्त कर दिया गया था। उन्होंने कहा था, “आदिवासी समुदाय के समुचित विकास के लिए आदिवासी/सरना कोड बहुत महत्वपूर्ण है। इस संबंध में झारखंड विधानसभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव वर्तमान में केंद्र सरकार के स्तर पर निर्णय के लिए लंबित है।”
अधिकारी इस बात से सावधान हैं कि धर्मांतरित आदिवासियों के खिलाफ राजनीतिक दबाव से कलह हो सकती है। जनजातीय कल्याण विभाग के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “एक गाँव के भीतर, कई टोले होते हैं और धर्मांतरित आदिवासियों और सरना धर्म का पालन करने वालों के बीच पहले से ही विभाजन हैं। ऐसा लगता है कि चुनाव नजदीक आते-आते विभाजन अब तनाव की ओर धकेल दिया जाएगा।”
नागरिक समाज समूह झारखंड जनाधिकार महासभा का कहना है कि धर्मांतरित आदिवासियों को सूची से हटाने की मांग पूरी तरह से असंवैधानिक है। उन्होंने बताया कि समुदाय के लिए आरक्षित सरकारी और शिक्षा क्षेत्र में कई पद खाली हैं। उन्होंने कहा, “संविधान के तहत स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी आदिवासी समूह को अनुसूचित जनजाति माना जाएगा। इन धाराओं में कहीं भी धर्म का जिक्र नहीं है। महासभा ने हाल ही में सरकार को लिखे एक पत्र में कहा कि धर्म और आरक्षण से संबंधित आधारहीन तथ्यों के आधार पर आदिवासी समाज में सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने का एक प्रयास किया जा रहा है।”