Lok Sabha Elections Ayodhya: जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संघ परिवार के वैचारिक लक्ष्यों में से एक के पूरा होने का प्रतीक था। शुरू में उम्मीद थी कि इससे लोकसभा चुनावों में भाजपा को बढ़त हासिल होगी, लेकिन जब पार्टी को उत्तर प्रदेश में बड़ा झटका लगा, तो उसकी सीटें लगभग आधी हो गईं, इसका सबसे बड़ा नुकसान फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में हुआ, जिसका हिस्सा भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या भी शामिल है।
प्रतिष्ठा की लड़ाई में भाजपा से सीट छीनने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता वरिष्ठ विधायक अवधेश प्रसाद हैं, जो गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले दलित समुदाय के एकमात्र उम्मीदवार थे। प्रसाद ने भाजपा के दो बार के मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को 54,567 मतों से हराया।
वैसे तो प्रसाद खुद को सिर्फ़ दलित नेता के तौर पर पहचानना पसंद नहीं करते, लेकिन उन्हें “यादव पार्टी” के दलित चेहरे के तौर पर पहचाना जाता है। 77 वर्षीय प्रसाद नौ बार विधायक और अब पहली बार सांसद बने हैं। प्रसाद पासी समुदाय से हैं। वो सपा के संस्थापक सदस्यों में से हैं और 1974 से लगातार पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ रहे हैं।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक प्रसाद ने 21 वर्ष की आयु में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, जिन्हें वह अपना “राजनीतिक गुरु” मानते हैं, उनके नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए और 1974 में अयोध्या जिले के सोहावल से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा।
आपातकाल के दौरान प्रसाद ने इमरजेंसी विरोधी संघर्ष समिति के फैजाबाद जिले के सह-संयोजक के रूप में कार्य किया और गिरफ्तार हुए। जेल में रहते हुए उनकी मां का निधन हो गया और वह उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल पाने में असफल रहे। आपातकाल के बाद उन्होंने पूर्णकालिक राजनेता बनने के लिए वकालत छोड़ दी। 1981 में प्रसाद, जो उस समय लोकदल और जनता पार्टी दोनों के महासचिव थे, वो अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि वे अमेठी में लोकसभा उपचुनाव के लिए वोटों की गिनती करवा रहे थे, जिसमें राजीव गांधी ने अपना पहला चुनाव लड़ते हुए लोकदल के शरद यादव को हराया था।
प्रसाद को चरण सिंह से सख्त निर्देश थे कि वे मतगणना कक्ष न छोड़ें। सात दिनों तक मतगणना के दौरान प्रसाद अपने पिता के निधन की खबर सुनने के बावजूद मतगणना केंद्र पर रहे।
अवधेश प्रसाद का सपा में शामिल होना
जनता पार्टी के बिखराव के बाद अवधेश प्रसाद ने खुद को मुलायम के साथ पाया और 1992 में सपा की स्थापना की। प्रसाद को पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और केंद्रीय संसदीय बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें सपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर पदोन्नत किया गया, जिस पद पर वे अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं।
हालांकि, यह संसदीय चुनाव पहली बार है जब उन्होंने जीत हासिल की है। उन्होंने 1996 में अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र से एक बार पहले भी चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। यह सीट पहले फैजाबाद जिले में हुआ करती थी और यह कानपुर देहात की मौजूदा अकबरपुर संसदीय सीट से अलग है।
हालांकि, प्रसाद को विधानसभा चुनावों में ज़्यादा मौके मिले। अब तक नौ मुकाबलों में से सिर्फ़ दो बार हार का सामना करना पड़ा है। पहला 1991 में, जब वे सोहावल से जनता पार्टी के उम्मीदवार थे और 2017 में, जब वे मिल्कीपुर से सपा के उम्मीदवार के तौर पर लड़े थे।
अब सपा के दलित चेहरे प्रसाद ने मार्च 2023 में कोलकाता में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मंच साझा किया और पीडीए (पिछड़ा,दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति के माध्यम से अपने मुस्लिम-यादव (एमवाई) आधार से आगे विस्तार करने के पार्टी के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अब एक सांसद के रूप में प्रसाद की पार्टी के अंदर और बाहर की प्रोफ़ाइल और भी बढ़ने की उम्मीद है।
