UP News: बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने गुरुवार को कांशीराम की पुण्यतिथि पर अपनी जनसभा में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की तारीफ की। इसके बाद विपक्षी दलों में नाराजगी है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ कभी-कभी रिश्ते बदलने वाली मायावती ने ऐसा किया हो।

मायावती के विरोधी लंबे समय से बसपा पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाते रहे हैं और यह भी कहा है कि अपने और अपने परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज कई मामलों के कारण वह बीजेपी के प्रति नरम रुख अपना रही हैं। गुरुवार को उनके भाषण के बाद, सपा और कांग्रेस ने मायावती को बीजेपी की सच्ची सदस्य और आरएसएस की समर्थक बताया।

गौरतलब है कि बीजेपी भी बहुजन समाज पार्टी, खासकर मायावती पर निशाना साधने से बचती है। कई लोगों द्वारा बसपा को अभी भी एक ऊंची जाति-आधारित पार्टी माना जाता है, लेकिन बीजेपी को इस बात का डर है कि मायावती पर कोई भी टिप्पणी दलितों को अलग-थलग कर देगी। रिकार्ड के लिए, मायावती ने गुरुवार को दोहराया कि वह आगामी बिहार चुनाव या 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी।

मायावती के द्वारा योगी आदित्यनाथ की तारीफ करने के बारे में पूछे जाने पर बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को कहा, “बीजेपी सरकार इसकी हकदार थी, क्योंकि उसने मायावती जी द्वारा उठाए गए मुद्दों का संज्ञान लिया और अपनी सरकार के कार्यकाल (2007-12) में लखनऊ में विकसित सभी स्मारकों और पार्कों की मरम्मत और जीर्णोद्धार का काम शुरू कर दिया।”

सपा की आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता- बसपा के वरिष्ठ नेता

नेता ने कहा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की आलोचना से बहुजन समाज पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने कहा, “यह अच्छी बात है कि ये पार्टियां हमें निशाना बना रही हैं क्योंकि इससे हमें अपना जाटव-दलित वोट बैंक वापस पाने में मदद मिलेगी, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में कुछ हद तक सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर खिसक गया था।”

इस समय बहुजन समाज पार्टी का राज्यसभा में केवल एक सांसद है और 2024 के लोकसभा चुनावों में उसका कुल वोट शेयर 2.04% है। उत्तर प्रदेश में बसपा को लोकसभा में 9.39% वोट मिले, लेकिन राज्य में भी उसे कोई सीट नहीं मिली। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी के पास सिर्फ एक विधायक बचा है और 2022 के चुनावों में उसे सिर्फ 12.88% वोट मिले हैं। राजस्थान में भी उसके दो विधायक हैं और पंजाब व उत्तराखंड में एक-एक विधायक हैं।

ये भी पढ़ें: मायावती का 2027 में 2007 का फार्मूला, बिहार में नींद उड़ा रहे प्रशांत-ओवैसी

बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी का इन मुद्दों पर किया समर्थन

सितंबर 2023 में जब मोदी सरकार महिला आरक्षण विधेयक लेकर आई, तो मायावती ने आग्रह किया कि महिलाओं के कोटे में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की तरह ओबीसी के लिए भी आरक्षण हो। लेकिन उन्होंने आगे बढ़कर विधेयक का समर्थन किया। उस समय बसपा के लोकसभा में 10 और राज्यसभा में 1 सांसद थे। महिला कोटे के सबसे मुखर विरोधियों में से एक सपा संस्थापक और मायावती के कट्टर प्रतिद्वंद्वी दिवंगत मुलायम सिंह यादव थे।

उसी महीने जब भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रण पर भारत के राष्ट्रपति के बजाय प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के नाम से भेजे जाने पर राजनीतिक विवाद छिड़ा। मायावती ने विपक्ष पर इसे बीजेपी के ‘इंडिया ब्लॉक’ से “डर” से जोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि खुद को भारत कहकर, विपक्ष ने ही भाजपा को इस मुद्दे पर संविधान से छेड़छाड़ करने का मौका दिया है।

मई 2023 में जब 20 से ज्यादा विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने की घोषणा की, क्योंकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थीं, तो बसपा प्रमुख ने इससे अलग हटकर कहा कि सरकार को संरचना का अनावरण करने का अधिकार है। राष्ट्रपति पद के लिए 2022 के चुनावों के दौरान, बसपा के 11 सांसदों ने मुर्मू का समर्थन किया। वह बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की उम्मीदवार थी। उन्हें इस पद पर आसीन होने वाले पहले आदिवासी के रूप में पेश किया गया था।

इसके साथ ही मायावती ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए पूछा कि उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों पर चर्चा करने के लिए बसपा को बैठकों में क्यों नहीं बुलाया, उन्होंने उनका रवैया जातिवादी बताया। कुछ हफ्ते बाद उन्होंने एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का भी समर्थन किया और कहा कि बसपा ऐसा व्यापक जनहित और पार्टी के अपने आंदोलन को ध्यान में रखते हुए कर रही है।

संयोग से धनखड़ के अचानक इस्तीफ़ के कारण जरूरी हुए हालिया उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान बसपा ने यह नहीं बताया कि उसके एकमात्र राज्यसभा सांसद रामजी गौतम ने किसे वोट दिया। गौतम ने खुद बस इतना कहा कि उन्होंने पार्टी के निर्देशों का पालन किया। अगस्त 2019 में बसपा ने जम्मू -कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के कदम पर भी मोदी सरकार का समर्थन किया था। इस कदम का बचाव करते हुए मायावती ने कहा, “जैसा कि सर्वविदित है, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर हमेशा देश की एकता के पक्षधर थे और उन्होंने कभी भी अनुच्छेद 370 का समर्थन नहीं किया।” उस समय लोकसभा में अपने 10 सांसदों के अलावा बीजेपी के राज्यसभा में 6 सांसद थे।

जब-जब बसपा ने की योगी सरकार की तारीफ

इस साल 11 सितंबर को मायावती ने एक्स पर पोस्ट में कांशीराम नगर क्षेत्र के गौतम बुद्ध पार्क में सीनियर केयर सेंटर विकसित करने की मुरादाबाद नगर निगम की परियोजना को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को धन्यवाद दिया था। मायावती ने इस परियोजना का विरोध करते हुए कहा था कि गौतम बुद्ध पार्क बौद्ध धर्म, अंबेडकर, कांशीराम और बहुजन समाज के अनुयायियों की आस्था की जगह है। पिछले महीने की शुरुआत में उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार को धन्यवाद दिया था, जब उसने कानपुर के एक बुद्ध पार्क में शिवालय विकसित करने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया था।

कई मुद्दों पर रहा मतभेद

इस साल अप्रैल में जब संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर मतदान हुआ था, तो बसपा ने केंद्र से इसके प्रावधानों पर पुनर्विचार करने और फिलहाल इस कानून को स्थगित करने को कहा था। अगस्त में बसपा ने संसद में पेश किए गए तीन विधेयकों पर सवाल उठाया था, जिनमें कहा गया था कि किसी भी मंत्री को गंभीर अपराध के लिए 30 दिनों तक जेल में रहने पर अपना पद गंवाना होगा। मायावती ने कहा कि देश के मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए ये विधेयक लोकतंत्र को कमजोर करेंगे। उन्होंने कई नेताओं, जिनमें से ज्यादातर एनडीए खेमे से बाहर के हैं। उनके खिलाफ दर्ज मामलों की ओर इशारा किया। उन्होंने एक्स पर लिखा, “यह उचित होगा यदि सरकार निश्चित रूप से देश के लोकतंत्र और संविधान के हित में पुनर्विचार करे।”

ये भी पढ़ें: बसपा चीफ मायावती की दहाड़ किसके लिए खतरे की घंटी है?