पश्चिम बंगाल की यौनकर्मियों ने पहले के चुनावों में राजनीतिक दलों के उनसे किए वादों को पूरा नहीं करने पर निराशा जताई है और कहा है कि इस बार वे ठोस उपाय चाहती हैं। राज्य में कुछ ही दिनों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। राजनीतिक दलों से निराश राज्य की यौनकर्मी मतदान में ‘नोटा’ का विकल्प चुनने का मन बनाया है। पश्चिम बंगाल में डेढ़ लाख यौनकर्मियों का प्रतिनिधित्व करने वाली दरबार महिला समन्वय समिति ने कहा कि वे ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। किसी भी राजनीतिक दल ने उनकी मांगों को पूरा करना तो दूर बल्कि उनकी मांगों पर विचार करने के अपने वादे को भी नहीं निभाया।
ऑल इंडिया नेटवर्क फॉर सेक्सवर्कर्स (एआइएनएसडब्लू) और दरबार महिला समन्वय समिति की अध्यक्ष भारती डे ने कहा कि जब भी चुनाव आता है, राजनीतिक दल बड़े-बड़े वादे करती हैं, लेकिन किसी ने भी उन्हें पूरा नहीं किया। पिछले कई साल से हमने नियमित रूप से मांगपत्र रखे हैं, लेकिन इनका कुछ भी नतीजा नहीं निकला। डे ने बताया कि एआइएनएसडब्लू के तहत देश की करीब 50 लाख यौनकर्मियों ने इससे निराश होकर चुनाव में अपनी अस्वीकृति जताने के लिए मतदान में नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुनने की इच्छा जताई है।
एआइएनएसडब्लू देशभर के 16 राज्यों में फैले यौनकर्मियों का राष्ट्रीय नेटवर्क है। डे ने कहा कि हम लोग अपनी मांगों और यौनकर्मियों व उनके परिवारों से जुड़े मुद्दों को उठाते हुए राजनीतिक दलों को पत्र लिखेंगे। दरबार महिला समन्वय समिति की रखी गई मांगों में सेवानिवृत्त यौनकर्मियों के लिए पेंशन, अनैतिक तस्करी (रोक) अधिनियम को हटाने, पेशे को वैध करने, श्रम कानून के तहत यौनकर्मियों को शामिल करने और नाबालिगों को जबरन इस पेशे में धकेले जाने से रोकने के लिए स्वनियामक बोर्ड की स्थापना आदि शामिल है। दरबार महिला समन्वय समिति की महाश्वेता मुखर्जी ने कहा कि न तो संबंधित राज्य और न ही केंद्र सरकार ने इनमें से कोई मांग पूरी की है जबकि ये मूलभूत अधिकार हैं, जिन्हें यौनकर्मी को समुचित जीवन जीने के लिए दिए जाने की जरूरत है।
वहीं राज्य की महिला विकास व समाज कल्याण मंत्री शशि पांजा ने बताया कि तृणमूल सरकार ने यौनकर्मियों व उनके बच्चों के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पसंदीदा परियोजना ‘मुक्तिर आलो’ (मुक्ति की ज्योति) ऐसी ही एक योजना है जिसका लक्ष्य यौनकर्मियों और उनके बच्चों को मुख्यधारा में वापस लाना है।