पश्चिम बंगाल विधानसभा ने मंगलवार को भाजपा विधायकों के विरोध के बीच बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव को पारित कर दिया। पंजाब के बाद बंगाल दूसरा राज्य बन गया, जहां इस तरह का प्रस्ताव पेश किया गया और पारित किया गया। राज्य के संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने सदन के कार्य संचालन की प्रक्रिया के नियम 169 के तहत प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में 112 और विरोध में 63 मतों के साथ यह पारित हो गया।
उन्होंने कहा, “हम मांग करते हैं कि इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाए, क्योंकि बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाना देश के संघीय ढांचे पर सीधा हमला है।” टीएमसी विधायक उदयन गुहा की एक टिप्पणी के बाद सदन में माहौल गरम हो गया। गुहा ने कहा, “सीमावर्ती इलाके में रहने वाला बच्चा कभी भी देशभक्त नहीं हो सकता है अगर वह बीएसएफ द्वारा तलाशी की आड़ में अपनी मां को गलत तरीके से छूता हुआ देखता है।”
भाजपा विधायकों ने इस टिप्पणी का विरोध किया और इसे हटाने की मांग की। हालांकि स्पीकर विमान बनर्जी ने गुहा की टिप्पणी को हटाने से परहेज किया। विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि बीएसएफ जैसे बल के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया, वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
उन्होंने कहा, “जब केंद्र सरकार जंगलमहल से केंद्रीय बलों को वापस लेने की कोशिश करती है, तो राज्य सरकार इस कदम का विरोध करती है। अब, वही सरकार बीएसएफ गतिविधियों का विरोध कर रही है। नए नियम (क्षेत्राधिकार विस्तार) के तहत राज्य पुलिस और बीएसएफ के बीच संघर्ष का कोई सवाल ही नहीं है।”
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किमी के बजाय 50 किमी के बड़े हिस्से में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी करने के लिए बल को अधिकृत करने के लिए बीएसएफ अधिनियम में संशोधन किया था।
इससे पहले सीमा सुरक्षा बल (BSF) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने के फैसले की आलोचना करते हुए तृणमूल कांग्रेस ने कहा था कि यह राज्य के अधिकारों का ‘अतिक्रमण’ और देश के संघीय ढांचे पर हमला है।
पार्टी ने दावा किया था कि पश्चिम बंगाल सरकार के साथ विचार-विमर्श किए बगैर यह फैसला लिया गया है। कहा कि सरकार सिर्फ राज्यों को परेशान करने के उद्देश्य से उनके अधिकारों का ‘अतिक्रमण’ करने के लिए ऐसा कर रही है।