वसीम रिजवी की उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की सदस्यता रद्द कर दी गई है। इसको लेकर गजट भी जारी कर दिया गया है। इससे पहले रिजवी भ्रष्टाचार के आरोप के बाद हुई जांच में दोषी पाये जाने पर मुतवल्ली पद से हटा दिए गए थे। रिजवी अक्सर अपने बयानों के चलते भी चर्चा में रहे हैं।
वसीम रिजवी 2021 में कोर्ट से बोर्ड के सदस्य बने थे। हिंदू धर्म अपनाने के बाद शिया वक्फ बोर्ड की ओर से उनको सदस्य पद से हटाए जाने को लेकर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र भेजा गया था।
6 दिसंबर 2021 को वसीम रिजवी ने इस्लाम धर्म को छोड़कर हिंदू धर्म अपनाया लिया था। उसके बाद उन्होंने अपना नाम जितेंद्र नारायण त्यागी नाम रखा था। गाजियाबाद में डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने उन्हें सनातन धर्म में शामिल कराया था। हिंदू धर्म अपनाने के बाद वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी ने कहा था कि मुझे इस्लाम से बाहर कर दिया गया था। मेरे सिर पर हर शुक्रवार को इनाम बढ़ा दिया जाता है, इसलिए मैं सनातन धर्म अपना रहा हूं।
गाजियाबाद के डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने वसीम रिजवी को हिंदू धर्म की दीक्षा दी थी। रिजवी ने अपनी वसीयत में कहा था कि उनके शव का अंतिम संस्कार पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाज से किया जाना चाहिए, न कि उनकी मृत्यु के बाद दफनाया जाना चाहिए। रिजवी ने यह भी लिखा है कि कि उनकी अंतिम संस्कार की चिता गाजियाबाद के डासना मंदिर के एक हिंदू संत यति नरसिंहानंद सरस्वती द्वारा जलाई जानी चाहिए।
धर्मपरिवर्तन के बाद रिजवी ने कहा था, “धर्मपरिवर्तन की यहां कोई बात नहीं है, जब मुझे इस्लाम से निकाल ही दिया गया, तो ये मेरी मर्जी है कि किस धर्म को स्वीकार करूं। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला मजहब है और जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं। इंसानियत पाई जाती है। हम ये समझते हैं कि किसी और धर्म में ये नहीं है। इस्लाम को हम धर्म समझते ही नहीं है”।