हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के चार महीने के कार्यकाल में भी मंडी जिले के नेताओं को कोई भी जिम्मेदारी, ओहदेदारी व फिर कहें कि ताजपोशी न होना अब धीरे-धीरे कांग्रेसियों के लिए असहनीय होने लगा है। कांग्रेसियों की यह पीड़ा अब उनके चेहरों पर साफ दिखने लगी है। देखा जाए तो मंडी जिले में कांग्रेस संगठन के बीच वीरभद्र गुट की ही ज्यादा पकड़ रही है क्योंकि वे कई बार यहां से सांसद भी रहे हैं और अब प्रतिभा सिंह सांसद है।

वीरभद्र सिंह मंडी को अपनी कर्मभूमि भी कहते थे। ऐसे में यहां पर संगठन में अधिकांश उनके ही समर्थकों का बोलबाला रहा है। अब जबकि प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार है, कांग्रेस सत्ता में है तो जाहिर है कि कांग्रेस के लोग इसका जमीनी असर भी देखना चाहते हैं। सारा कुछ उनके हिसाब से चले यह भी कांग्रेसी चाहते हैं। उनके पास प्रशासन के पास जाने की ताकत हो, जो अधिकारी पूर्व सरकार का गुणगान करता नजर आए, उसे हड़काने की ताकत हो या फिर सरकारी समारोहों में भाग लेने का तमगा हो।

ऐसा अभी तक हो नहीं पाया है। मंडी जिले से किसी को भी अभी तक कोई पद सुक्खू सरकार ने नहीं दिया। इससे धीरे-धीरे नेताओं व कार्यकर्ताओं में उपेक्षा का भाव साफ देखा जा रहा है। वीरभद्र समर्थक इसे अपने गुट की उपेक्षा से जोड़ कर देख रहे हैं। जिस तरह से राहुल गांधी के समर्थन में भाग न लेने के नाम पर प्रदेश युवा कांग्रेस के 112 पदाधिकारियों को एक ही झटके में निष्कासित कर दिया गया, इसे भी वीरभद्र समर्थकों को बाहर करने की योजना के तहत किया गया माना जा रहा है। इसमें अधिकांश पदाधिकारी वीरभद्र समर्थक हैं और प्रदेशाध्यक्ष समेत कई नेता मंडी जिले से ही हैं। इन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका दिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

राहुल गांधी के मामले में लोकतंत्र की हत्या का नाम देकर कांग्रेस पूरे देश व प्रदेश में विरोध प्रदर्शन कर रही है मगर जिस तरह से प्रदेश युवा कांग्रेस के 112 पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता बिना उनका पक्ष लिए ही दिखा दिया गया, यह भी तो लोकतंत्र की हत्या ही मानी जा रही है। मंडी जिले के नेताओं के नाम पदों ंके लिए लिए तो जाते रहे हैं मगर चार महीने बाद भी किसी की ताजपोशी न होना इस आरोप को बल देने लगा कि सुखविंदर सिंह सुक्खू किसी पुरानी खुंदक में वीरभद्र समर्थकों को तरजीह नहीं दे रहे हैं।

गाहे बगाहे स्वयं मंडी की सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी इस बात को उठा चुकी हैं मगर कोई असर नहीं हुआ है। एक तो पहले ही मंडी जिले को भाजपा के साथ जाने की सजा मिल रही है, कई परियोजनाएं ठंडे बस्ते में चली गई है तो अधिकांश को धीमा करके कछुआ चाल से चलाया जा रहा है। अब सत्तारूढ़ दल में ही भेदभाव होता साफ नजर आने लगा है।

मंडी जिले में अभी तक भी अधिकांश अधिकारियों की पुरानी फौज ही डटी हुई है। सरकार बदलने से बहुत कम ही अधिकारी इधर से उधर किए गए हैं जबकि कांग्रेसजनों का मानना है कि सरकार को शुरूआत में भी अपनी ताकत दिखाते हुए तथा अफसरशाही पर दबाव बनाते हुए प्रशासन में आमूल चूल परिवर्तन कर देना चाहिए था। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। मंडी जिले को लेकर जो सुक्खू सरकार की सोच है उसे लेकर कांग्रेसजन सकते में हैं। यहां तक भी भाजपाई भी हैरान है कि आखिर जिले के कांग्रेस नेताओं को पद क्यों नहीं दिए जा रहे हैं। कम से कम समारोहों में भाग लेने लायक ओहदे तो दिए ही जा सकते हैं।

वीरभद्र समर्थकों को तो अब यह चिंता सताने लगी है कि लोकसभा चुनाव में महज एक साल बाकी रह गया है। ऐसे में यदि जिले को खाली ही रखा गया तो बात कैसे बनेगी। ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस प्रतिभा सिंह को ही उम्मीदवार बनाएगी।प्रतिभा सिंह के लिए भी अब चुनाव का अंतिम साल लोगों के बीच जाकर संगठन और सरकार की बात रखने का समय आ गया है। कांग्रेस के पास तो प्रदेश की ही सरकार है जिसकी उपलब्धियों के बल पर लोगों के बीच जाया जा सकता है। केंद्र सरकार को कोस कर कितना काम चल सकेगा। प्रदेश सरकार के कामों का लेखा जोखा तो लोगों के सामने रखना ही होगा।

अब मंडी जिले को इतना उपेक्षित रखेंगे तो बात कैसे बनेगी क्योंकि लोकसभा के लिए तो मोदी के नाम पर ही चुनाव होगा और उनके नाम पर भी भाजपा मैदान में उतरेगी। फर्क केवल इतना होगा कि तब तक प्रदेश की कांग्रेस सरकार का भी डेढ साल पूरा हो जाएगा।और उसे भी अपना हिसाब किताब लोगों को देना होगा। ऐसे में यदि अब भी सुक्खू सरकार का मंडी को लेकर यही रवैया रहा, वीरभद्र समर्थकों को समय पर नहीं साधा गया तो दिक्कत ज्यादा बढ़ सकती है।