आय से अधिक संपत्ति मामले को लेकर अदालती कार्यवाही में उलझे हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अकेले नहीं जो अपनी सरकार के लिए संकट की आशंका से घिरे हैं। कांग्रेस आलाकमान भी उत्तराखंड के अनुभव के बाद हिमाचल को लेकर संशय में है। भले ‘राजा’ के समर्थक यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं और आलाकमान के सामने भी उनके सिपहसालारों ने यही कहा है कि तमाम मंत्री और सूबे का संगठन वीरभद्र सिंह के पीछे खड़ा है, वास्तविकता यह है कि सिंह के नजदीकी ही न केवल जड़ें खोदने में लगे हैं बल्कि मुख्यमंत्री पद के लिए दिल्ली में लॉबिंग में भी जुटे हैं।

माना जा रहा है कि अगर हालात प्रतिकूल हुए तो वीरभद्र सिंह अपने ही किसी समर्थक को मुख्यमंत्री बनाना चाहेंगे। ऐसे में सुधीर शर्मा (जिन्हें राहुल गांधी के निकट माना जाता है) और ताकतवर मंत्री मुकेश अग्निहोत्री में से एक प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष तो दूसरा मुख्यमंत्री बन सकता है। हालांकि ऐसा उसी स्थिति में होगा जब राज्य में किसी तरह का संवैधानिक संकट पैदा होने की आशंका बढ़ जाए।

वीरभद्र समर्थकों में सुधीर शर्मा, मुकेश अग्निहोत्री और विद्या स्टोक्स के नाम प्रमुख हैं जबकि विरोधी खेमे में कौल सिंह ठाकुर और आशा कुमारी का नाम सबसे आगे हैं हालांकि मुख्यमंत्री पद पर नजर जीएस बाली की भी है। हालांकि यह भी सच है कि वीरभद्र सिंह के जो भी समर्थक हैं, वे मुख्यमंत्री पद के लिए अपने-अपने स्तर पर कोशिश कर रहे हैं।

कुछ रोज पहले सूबे में उपमुख्यमंत्री बनाने की चर्चा उठी थी जिसे कांग्रेस के संकट से जोड़ कर ही देखा जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस विधायक दल में वीरभद्र सिंह के विरोधी कम नहीं। समय-समय पर वे सिंह के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। यदि कोई हलचल हुई तो आलाकमान के सामने भी मजबूरी पैदा हो सकती है कि वह वीरभद्र सिंह के विकल्प को लेकर सोचे। पिछले महीनों में वीरभद्र सिंह पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग का शिकंजा कसा है। करीब आठ करोड़ रुपए की संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय जब्त कर चुका है। वीरभद्र सिंह इसे भाजपा की ‘साजिश’ बता रहे हैं।

वैसे भाजपा भी फिलहाल चुनाव नहीं चाहती पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल कह रहे हैं कि यदि कांग्रेस के नौ विधायक वीरभद्र सिंह का साथ छोड़ दें, तो हिमाचल में भी उत्तराखंड जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। कांग्रेस आलाकमान इस स्थिति को टालना चाहता है। यही वजह है कि पार्टी महासचिव और हिमाचल मामलों की प्रभारी अंबिका सोनी ने दिल्ली में हिमाचल के दस प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई थी जिसमें हर नेता से अलग-अलग बात की।

कहा जाता है कि वहां वीरभद्र सिंह की कार्यशैली को लेकर सवाल उठे लेकिन फिर भी कई विधायकों ने वीरभद्र सिंह पर आस्था जताई। आशा कुमारी और कौल सिुंह ठाकुर तो वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में अपनी गहरी नाराजगी जताई है। मगर आलाकमान देखो और इंतजार करो की रणनीति पर चल रहा है। कहा जा रहा है कि आलाकमान एकमत है कि वैकल्पिक फार्मूले पर भी गौर कर लिया जाए। वीरभद्र सिंह को बदलने की नौबत आई तो मुख्यमंत्री कौन हो सकता है, इसे लेकर कयास जारी हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कौल सिंह ठाकुर के नेतृत्व में ही पार्टी चुनाव लड़ने जा रही थी कि अचानक बदली परिस्थितियों में वीरभद्र सिंह सामने आ गए। कहते हैं कौल सिंह को आलाकमान ने मना लिया था। ऐसे में पार्टी नेतृत्व उन्हें भी इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री का जिम्मा सौंप सकता है। वे आठ बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं और इस पद के सबसे मजबूत दावेदार रहे हैं। कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद कौल सिंह ठाकुर कहना था कि मुख्यमंत्री चुने जाते समय सोनिया गांधी भ्रष्टाचार की बात को जरूर ध्यान में रखें।

करीब एक दर्जन से अधिक विधायकों के विरोध के बावजूद वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने विरोधी विधायकों और मंत्रियों को खास तरजीह नहीं दी। यह वजह रही कि अंबिका सोनी से हुई बैठक में भी कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सरकार (वीरभद्र सिंह) की कार्यशैली पर सवाल उठाए। कहा रहा है कि वीरभद्र सिंह विरोधियों ने मुख्यमंत्री बदले जाने की स्थिति में कौल सिंह ठाकुर का नाम आगे किया है। आलाकमान की भी कौल सिंह ठाकुर के प्रति हमदर्दी है कि उन्होंने ऐने मौके पर वीरभद्र सिंह को आगे किए जाने के बावजूद कांग्रेस का झंडा बुलंद रखा था। इस कारण विराधी खेमे में उनका नाम सबसे आगे लिया जा रहा है।

उधर, आशा कुमारी को भी सोनिया गांधी के निकट माना जाता है लेकिन एक मामले में सजा होने के बाद (जिसे कोर्ट ने बाद में स्थगित कर दिया है) आशा कुमारी भी फिलहाल मुख्यमंत्री बनना नहीं चाहेंगी। अलबत्ता, मुख्यमंत्री बनाने में उनकी भूमिका हो सकती है। ऐसी स्थिति में आशा कुमारी को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। जीएस बाली की भी मुख्यमंत्री बनने की चाहत है लेकिन उनके समर्थक बहुत कम हैं। दलित कार्ड पर कुलदीप कुमार, रंगीलाराम राव और धनी राम शांडिल के नाम भी लिए जा रहे हैं पर हिमाचल में इस बात की संभावना इस कारण कम है कि यहां ब्राह्मणों और ठाकुरों का बोलबाला रहा है।