वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास एक प्राचीन बाज़ार से होकर गुज़रने वाली सड़क को चौड़ा करने की सरकार की घोषणा के बाद से अनिश्चितता का माहौल है। इस इलाके के परिसरों के मालिक बकाया संपत्ति कर वसूलने की सरकार की पहल का विरोध कर रहे हैं। दालमंडी रोड का चौड़ीकरण, काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद वाराणसी में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से दूसरी सबसे बड़ी विकास परियोजना है। दालमंडी का 650 मीटर लंबा हिस्सा (जिसमें लगभग 500 दुकानें हैं) वाराणसी के सबसे व्यस्त व्यावसायिक केंद्रों में से एक है। योजना इसे चार गुना से ज़्यादा चौड़ा करने की है, जो वर्तमान में 3-4 मीटर है। इसे अब 17.4 मीटर तक बढ़ाया जाएगा। इस पर 215.88 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर समाप्त होगा।

PWD क्या काम कर रहा?

परियोजना की घोषणा के पांच महीने बाद वाराणसी नगर निगम ने हाल ही में कार्यकारी प्राधिकरण लोक निर्माण विभाग (PWD) को निर्देश दिया है कि वह आंशिक या पूर्ण विध्वंस के लिए चिह्नित इमारतों के मालिकों को दिए जाने वाले मुआवज़े से बकाया संपत्ति कर की राशि काट ले। दालमंडी रोड के किनारे ऐसी 187 इमारतें हैं, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम आबादी है। नगर निगम के अनुसार 187 में से 170 इमारतों पर गृह, जल और सीवर कर सहित लगभग 2.28 करोड़ रुपये का बकाया है।

अधिकारियों ने बताया कि पिछले कई वर्षों में कई बार याद दिलाने के बावजूद मालिक बकाया राशि का भुगतान करने में विफल रहे हैं। वाराणसी के नगर आयुक्त अक्षत वर्मा कहते हैं, “हमने ज़िला मजिस्ट्रेट को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है। नगर निकाय ने सिफ़ारिश की है कि बकाया राशि को तोड़फोड़ के लिए दिए जाने वाले मुआवज़े में समायोजित किया जाए।”

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मकान मालिक मांग रहे मुआवजा

सूत्रों के अनुसार, जब से यह बात सामने आई है, कई इमारत मालिक मुआवजा लेने पर दोबारा विचार कर रहे हैं। दालमंडी की एक दुकान के मालिक का कहना है कि बकाया कर वसूलने का यह कदम दोहरा उत्पीड़न है।

लेकिन मालिकों से ज़्यादा, किराएदार आशंकित हैं क्योंकि वे किसी भी मुआवज़े के हकदार नहीं हैं। इलाके की ज़्यादातर दुकानें किराए की संपत्तियाँ हैं, जिनका पट्टा पीढ़ियों से चला आ रहा है। 55 वर्षीय शहाबुद्दीन अहमद, संपत्ति कर कटौती की खबरों की ओर इशारा करते हैं जो उन्हें केवल मीडिया के माध्यम से ही मिल रही हैं। वह कहते हैं कि उन्हें अपनी किस्मत का पता नहीं है।

पीडब्ल्यूडी ने इस रास्ते पर स्थित इमारतों को पहचान संख्याएँ तो दे दी हैं, लेकिन अभी तक तोड़फोड़ के संबंध में कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी है। वितरित किए जाने वाले मुआवजे पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि यह अधिग्रहित भूमि के हिस्से, इमारत की आयु और निर्माण में प्रयुक्त सामग्री जैसे कारकों पर आधारित होगा।

किराएदार भी मुश्किल में

किराए के मकान में खिलौने बेचने वाले तीन बच्चों के पिता 55 वर्षीय सैयद शंशा आबिदी कहते हैं, “यह दुकान ही मेरी आजीविका का एकमात्र स्रोत है। अगर यह दुकान छीन ली गई, तो मुझे नहीं पता कि मैं कैसे गुज़ारा करूँगा।” 62 वर्षीय राजेश गांधी होम लोन और घरेलू खर्चों को लेकर चिंतित हैं। वह कहते हैं, “हमने कभी इस दिन की कल्पना भी नहीं की थी।”

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जुलाई में मंज़ूरी प्राप्त यह परियोजना कॉरिडोर के विकास के बाद से काशी विश्वनाथ मंदिर और आसपास के घाटों पर आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि के कारण महत्वपूर्ण है। पहले प्रतिदिन 7,000 से 12,000 तक की संख्या अब 1 लाख से 1.15 लाख तक पहुंच जाती है, जो वीकेंड में 2.5 लाख तक तथा त्यौहार के दिनों में 7 लाख से अधिक हो जाती है।

अपनी वर्तमान स्थिति में, दालमंडी रोड पर आसानी से ट्रैफिक जाम लग जाता है। चौड़ीकरण के बाद मंदिर तक पहुँचने का एक छोटा और सीधा रास्ता मिलने की उम्मीद है। हालांकि वे मानते हैं कि इस क्षेत्र में भीड़भाड़ का समाधान जरूरी है। दालमंडी के दुकानदारों का कहना है कि सरकार को मंदिर तक पहुचने के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता ढूँढना चाहिए।

दालमंडी मार्ग पर छह मस्जिदें और एक मंदिर होने के कारण मामला और भी कठिन हो गया है। मुफ़्ती-ए-शहर मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और वरिष्ठ विपक्षी नेताओं को खुला पत्र लिखकर वैकल्पिक रास्ता ढूँढने और परियोजना को स्थगित करने का आग्रह किया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा था?

इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक स्थानीय व्यक्ति और एक मस्जिद के रखवाले की याचिकाओं पर इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया था, क्योंकि सरकार ने आश्वासन दिया था कि स्वैच्छिक ट्रांसफर के बिना कोई कब्ज़ा या तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के.के. सिंह का कहना है कि ज़मीन की खरीद और इमारतों को केवल आपसी सहमति से ही ध्वस्त किया जाएगा और मुआवजा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम के अनुसार दिया जाएगा।

अधिकारी प्रारंभिक जांच के आधार पर यह भी बताते हैं कि दालमंडी मार्ग पर स्थित कई इमारतें (जिनमें धार्मिक संरचनाएँ भी शामिल हैं) सड़क से कुछ दूरी पर स्थित हैं और इसलिए चौड़ीकरण से प्रभावित नहीं हो सकती हैं। हालांकि काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना के दौरान हुए विस्थापन की यादें कई लोगों के लिए अभी भी ताज़ा हैं। उस परियोजना के लिए लगभग 450 इमारतों का अधिग्रहण किया गया था, जिनमें से अधिकांश पर किरायेदारों का कब्ज़ा था। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उस समय मालिकों को उनकी ज़मीन और इमारतों के मूल्य के आधार पर भुगतान किया जाता था, लेकिन किरायेदारों को भी कुछ मुआवज़ा मिलता था।

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वाराणसी के पुराने शहर के मध्य में मंदिर के पास स्थित दालमंडी कम से कम 200 साल पुरानी मानी जाती है, और अब यहां घरेलू सजावट, दुल्हन के सामान और कपड़ों से लेकर सौंदर्य प्रसाधन, कृत्रिम आभूषण और रोज़मर्रा के सामान तक, हर चीज़ बेचने वाली दुकानें हैं। थोक और खुदरा दोनों तरह के ग्राहकों को सेवा प्रदान करने वाला यह दालमंडी पूर्वी उत्तर प्रदेश में शादी की खरीदारी का केंद्र माना जाता है।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का बयान

वाराणसी क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि दालमंडी का महत्व कम आय वर्ग के लोगों को किफ़ायती उत्पाद उपलब्ध कराने के साथ-साथ हिंदू और मुसलमानों की मिश्रित आबादी के कारण भी है। अजय राय कहते हैं कि जब काशी विश्वनाथ तक कई रास्तों से पहुँचा जा सकता है और अन्य सड़कों को चौड़ा किया जा सकता है, तो दालमंडी को परेशान करने की क्या जरूरत थी। भाजपा सरकार के इस कदम को कुछ लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इससे लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित होगी।

सपा ने बीजेपी पर साधा निशाना

समाजवादी पार्टी ‘दालमंडी बचाओ अभियान’ चला रही है। इसके तहत सोमवार को वाराणसी में एक बैठक हुई, जिसमें दुकानदारों, राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। वक्ताओं ने कहा कि प्रभावित लोगों के जीवन के अलावा, यह कदम वाराणसी की गंगा-जमुनी संस्कृति और उसकी विरासत को एक और झटका देगा। वाराणसी के सपा ज़िला अध्यक्ष सुजीत यादव कहते हैं, “हम सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार को दुकानदारों के प्रतिष्ठानों को गिराने से पहले उनके लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।”