उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के रूप में सबसे युवा पुष्कर सिंह धामी ने कमान संभाली है। वे 45 साल के हैं। सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे जो राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री थे और तिवारी पहली निर्वाचित विधानसभा के 2002 में मुख्यमंत्री बने।तीरथ सिंह रावत तो जिस दिन से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे उसी दिन से उन्हें हटाए जाने की चर्चा शुरू हो गई थी और मई के महीने में उत्तराखंड के दौरे पर आए भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने पाया कि भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी।

10 मार्च को जब तीरथ सिंह ने शपथ ली थी उसके बाद उन्हें विधानसभा का उपचुनाव करवा कर विधायक बनवा दिया जाता तो संवैधानिक संकट पैदा ना होता। माना जा रहा था कि इस बार भाजपा कुमाऊं के राजपूत बिरादरी के विधायक को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा कर उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के क्षेत्रवाद और जातिवाद को साधने का काम करेगी इसलिए भाजपा ने इस बार क्षेत्रवाद को साधने के लिए कुमाऊं से युवा मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह को मौका दिया। वे राज्य के पहले ऐसे विधायक हैं जो किसी सरकार में मंत्री नहीं रहे। वे केवल संगठन के ही व्यक्ति रहे। युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे तथा विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं। वे 2011 में भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री बनने पर उनके विशेष कार्य अधिकारी थे।

धामी को युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में संगठन का अनुभव तो है परंतु उन्हें सरकार का अनुभव नहीं है। इस तरह वे पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो विधायक से सीधे मुख्यमंत्री बने। दरअसल भाजपा के लिए इस बार मुख्यमंत्री आठवीं बार बदलते हुए क्षेत्रवाद का विशेष ध्यान रखना था क्योंकि भाजपा ने भाजपा 11 सालों में गढ़वाल से चार मुख्यमंत्री दिए और कुमाऊं से केवल भगत सिंह कोश्यारी एकमात्र राजनेता थे जिन्हें भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया। उसके बाद भाजपा नेताओं के नेताओं घोर उपेक्षा की जिससे कुमाऊं में भाजपा को लेकर गहरा असंतोष पनप रहा था। असंतोष शांत करने के लिए पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया कांग्रेस ने 10 सालों में कुमाऊं से दो मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और हरीश रावत बनाए जबकि विजय बहुगुणा को गढ़वाल के प्रतिनिधि के तौर पर कांग्रेस ने 2012 में मुख्यमंत्री बनाया था।

21 साल पहले 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई थी तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह राज्य राजनीतिक उठापटक का सबसे बड़ा केंद्र बन जाएगा। भाजपा ने पहला मुख्यमंत्री मैदानी मूल के नित्यानंद स्वामी को बनाया था और पर्वतीय मूल के नेताओं भगत सिंह कोश्यारी, भुवन चंद खंडूरी और रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। तब पर्वतीय मूल के लोगों ने एक मैदानी मूल के व्यक्ति को उत्तराखंड का पहला मुख्यमंत्री बनाने का जबरदस्त विरोध किया था जिस कारण 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने भाजपा को नकार दिया और राज्य में कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार बनी। उसके बाद भाजपा ने किसी मैदानी मूल के नेता को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाने की भूल नहीं की। भाजपा ने पहली बार मैदानी मूल के मदन कौशिक को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जबकि कांग्रेस ने कभी भी मैदानी मूल के राजनेता को सरकार और पार्टी की कमान नहीं सौंपी।

वैसे तो भाजपा में उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री को बनाने की पटकथा 10 वें मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत के शपथ लेने के साथ ही 10 मार्च को ही लिख दी गई थी। मुख्यमंत्री बनने के दो दिन बाद ही तीरथ सिंह रावत अपने विवादित बयानों के कारण चर्चित हो गए। भाजपा हाईकमान ने उन्हें कभी भी गंभीर मुख्यमंत्री के रूप में नहीं लिया। लिहाजा उन्हें विधानसभा के चुनाव लड़ाने के लिए किसी भी विधायक को सीट खाली करने के लिए निर्देश नहीं दिए।

संगठन की सियासत से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक
पुष्कर सिंह धामी पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो किसी मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी पद पर रहते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। वे 2012 में पहली बार कुमाऊं मंडल की खटीमा विधानसभा से विधायक बने। वे दूसरी बार 2017 में फिर से इस सीट पर विधायक निर्वाचित हुए। पुष्कर सिंह पिथौरागढ़ के कनालीछीना के रहने वाले हैं। उनके पिता सैनिक थे और वे साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वे प्रदेश युवा मोर्चा के अध्यक्ष के अलावा 10 साल तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे।