Uttarakhand News: उत्तराखंड में कांग्रेस ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी अपने कैंपेन को राज्य की पहचान के आसपास ही रखना चाहती है। मई के महीने में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने संस्मरण उत्तराखंडियत मेरा जीवन लक्ष्य को फिर से लॉन्च करने के लिए उत्तराखंड के अलग-अलग शहरों का दौरा किया।

18 मई को रावत ने राज्य के पहाड़ी जिलों में उगाए जाने वाले काफल फल को बढ़ावा देने के लिए एक पार्टी भी आयोजित की। बेबेरी के नाम से भी जाना जाने वाला काफल इस क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं में निहित है और इसे उत्तराखंड के लोगों की पहचान का प्रतीक माना जाता है। इस कार्यक्रम में मीडिया से बातचीत में रावत ने कहा कि काफल अब देहरादून में 600 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है। उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि इन फलों को दिल्ली ले जाया जाए ताकि यह वहां उत्तराखंडी बहनों और भाइयों तक पहुंच सकें। मैं चाहता हूं कि राज्य सरकार इन व्यवसायों का समर्थन करे, जो अस्थायी रूप से ही सही, हजारों लोगों को आजीविका देते हैं।’

वह उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों का भी दौरा करने वाले हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद वह अब सैनिकों के घरों का दौरा कर रहे हैं। राज्य के लोगों का सेना से जुड़ाव का लंबा इतिहास रहा है। रावत ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उत्तराखंडियत या उत्तराखंड की पहचान पर जोर देना राज्य में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का जवाब होगा।

समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

बीजपी सरकार यूपी मॉडल फॉलो कर रही – रावत

रावत ने कहा, ‘इस समय बीजेपी सरकार यूपी मॉडल का पालन कर रही है। बुलडोजर और एनकाउंटर से लेकर यहां की पारिस्थितिकी और जैव विविधता की परवाह किए बिना बड़े उद्योगों को बढ़ावा देने तक, सरकार उत्तराखंड के सांस्कृतिक लोकाचार, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की अनदेखी कर रही है। अगर हम यूपी की फोटोकॉपी बनना चाहते, तो हम एक अलग राज्य के लिए संघर्ष नहीं करते।’

पांचवीं अनुसूची का दर्जा दिलाने की मांग

कांग्रेस राज्य के पहाड़ी क्षेत्र को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लाने की अपनी मांग को और ज्यादा मुखर करने की कोशिश में जुटी है। पांचवीं अनुसूची भारत भर के राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और शासन से संबंधित है। इसमें एक जनजाति सलाहकार परिषद की स्थापना का प्रावधान है। यह एसटी के कल्याण से संबंधित मामलों पर राज्यपाल को सलाह देती है।

कांग्रेस प्रवक्ता धीरेन्द्र प्रताप ने हाल ही में इस मांग का समर्थन किया। प्रताप ने धामी सरकार से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र से राज्य को पांचवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करने का आग्रह किया। अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ उन्होंने तर्क दिया है कि पहाड़ी क्षेत्रों के अधिकारों और संस्थापक मूल्यों का हनन हो रहा है। अगर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों को पांचवीं अनुसूची के तहत लाया जाता है तो इससे वहां के समुदायों को जमीन, वन और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार हासिल होगा।

पहाड़ी जिलों में आती हैं कितनी विधानसभा सीटें

उत्तराखंड का 86% हिस्सा पहाड़ी इलाकों या 4.6 मिलियन हेक्टेयर में फैला है, जबकि मैदानी इलाकों का हिस्सा 14% या 0.7 मिलियन हेक्टेयर है। 70 में से 40 विधानसभा सीटें पहाड़ी जिलों में आती हैं, जबकि मैदानी इलाकों के तीन जिलों देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में बाकी 30 सीटें हैं। कांग्रेस खेमे को उम्मीद है कि यह लामबंदी 2027 के चुनावों में पार्टी की मदद करेगी। 2017 में पार्टी राज्य में सत्ता खो चुकी थी, जब वह 11 सीटों पर सिमट गई थी। 2022 के चुनावों में वह बीजेपी को चुनौती नहीं दे सकी, जबकि पार्टी ने अपनी सीटों की संख्या में सुधार करके 19 सीटें हासिल की हैं।

कांग्रेस मेयर चुनाव में नहीं जीत सकी एक भी सीट

लोकसभा के मोर्चे पर कांग्रेस 2019 और 2024 के चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई है। इस साल की शुरुआत में एक और झटका तब लगा जब कांग्रेस उत्तराखंड मेयर चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई। एक कांग्रेस नेता ने कहा कि पहाड़ी जिलों पर पार्टी का ध्यान बीजेपी के प्रदर्शन पर असर डाल सकता है और पार्टी को बहुत जरूरी बढ़ावा दे सकता है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने कहा कि कांग्रेस का प्रचार-प्रसार सफल नहीं होगा। उत्तराखंड में फिर हिमस्खलन का कहर