गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने का दंभ भरने वाली केंद्र की भाजपा सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल में तिल भर काम नहीं कर पाई। यह बात अलग है कि नमामि गंगा जैसे कार्यक्रमों के जरिये वह अब तक जनता की सहानुभति बटोरने भर का स्वांग जरूर भरती रही है। यही कारण है कि देश की आस्था से जुड़ी भागीरथी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को हस्तक्षेप करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि एनजीटी पर्यावरणीय मामलों के कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन एवं लोगों को इससे हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति दिलाने जैसे मामलों का निपटारा करता है।  हाल ही में इस संस्था ने गंगा के उद्गम स्थल हरिद्वार से लेकर उन्नाव तक प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सख्त कदम उठाया है। इसके लिए इस लंबी दूरी में गंगा के ईद गिर्द सौ मीटर की परिधि में कूड़ा फेंकने और पांच सौ मीटर की परिधि में किसी भी तरह के निर्माण को प्रतिबंधित किया गया है। इसका सीधा मतलब है कि गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करते ही इसे प्रदूषित करने का काम उन्नाव तक व्यापक पैमाने पर होता रहा है। इससे गंगा की पवित्रता प्रभावित हो रही थी।

गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने जैसे महत्वपूर्ण मामले को जनपयोगी बताते हुए पूर्व सांसद अन्नू टंडन ने कहा कि बीते तीन साल में गंगा सफाई के नाम पर दिखावा करने वाली केंद्र सरकार ने यदि धरातल पर काम किया गया होता तो आज स्थिति में आशातीत बदलाव दिखाई देता। उन्होंने कहा कि जिले में विकासखंड गंजमुरादाबाद से लेकर विकासखंड सुमेरपुर तक तकरीबन 150 किलोमीटर लंबे उन्नाव के भूभाग को पवित्र करने वाली गंगा के प्रति शासन की अनदेखी के कारण सीवर से लेकर औद्योगिक इकाइयों का विषैला रासायनिक कचरा तक इसमें अनवरत प्रवाहित होता रहा है। बात यही पर खत्म नहीं होती..कुछ खुदगर्जों की ओर से औद्योगिक इकाइयों का प्रतिबंधित मलबा डीप बोरिंग के जरिये भूगर्भ में उड़लने का भी काम किया जा रहा है। इसको लेकर उन्होंने अपने कायर्काल में कारोबारी इकाइयों का विरोध किया था जिसका नतीजा सबके सामने है।उल्लेखनीय है कि उन्नाव की सीमा के अंर्तगत बने गंगाघाटों में नानामऊ घाट, बरुवाघाट, राजघाट, परियर घाट, गंगाघाट, बालूघाट, चंदनघाट व बक्सर घाट को प्रसिद्धि प्राप्त है। इनमें से नानामऊ, परियर व बक्सर घाट पर अंत्येष्टि को जनसामान्य में काशी जैसा महत्व दिया जाता है। नानामऊ घाट के बारे में तो समूचे बैसवारा क्षेत्र में देश का मुर्दा नानामऊ घाट जैसी लोकोक्ति प्रचलित है। इसके कारण इस घाट पर उन्नाव के निकटवर्र्ती जिले लखनऊ, बाराबंकी, हरदोई, कन्नौज व फतेहपुर के लोग अपने मृतक परिजनों की आत्मा को मोक्ष दिलाने के मकसद से इन घाटों पर अंत्येष्टि करते हैं।

सामाजिक चिंतक शैलजाशरण शुक्ल ने कहा कि गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के मकसद से दो दशक पहले वर्ष 1994 में गंगाघाट (शुक्लागंज) में विद्युत शवदाह गृह की स्थापना कराई गई थी। मुश्किल से इसमें एक सैकड़ा शवों की अंत्येष्टि हो पाई होगी कि कारोबारियों के हस्तक्षेप के कारण इसे बंद कर दिया गया। इससे गरीब तबके के वह लोग जो शव जलाने के लिए लकड़ियों का बंदोबस्त नहीं कर सकते वे शवों को गंगा में सीधे प्रवाहित करने लगे। इसके कारण वर्ष 2015 में जिले के परियर घाट पर सैकड़ों शव एक साथ उतराते दिखाई पड़ने पर प्रशासन से लेकर शासन तक हलचल मचने से शुक्लागंज के विद्युत शवदाह गृह को ठीक कराया गया लेकिन थोड़े ही दिनों में स्थिति पूर्ववत हो गई।
परियर के निकट स्थित बरभौला ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान मुनेन्द्र सिंह ने कहा कि वर्ष 2015 में गंगा में शव उतराने के बाद हरकत में आए प्रशासन से व्यवस्थाओं में तो कोई तब्दीली नहीं हो सकी, लेकिन अभावग्रस्त लोगों को गंगा में सीधे शव प्रवाहित करने पर पाबंदी लगा दी गई। इससे लोगों को अब गंगा रेती में अपने परिजनों के शवों को बालू में गाड़ने के एवज में ठेकेदारों को मोटी रकम देना पड़ रही है। क्या एनजीटी इस पर रोक लगाने का काम कर सकेगा?