सपा के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार सुबह निधन हो गया। मुलायम सिंह यादव से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो काफी रोचक है और बताते हैं कि वह किस प्रकार के नेता थे। वर्ष 1990 का एक किस्सा है जब मुलायम सिंह यादव ने दलित नेता और बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर बीजेपी के विजय रथ को रोका था। मुलायम सिंह यादव और कांशीराम का एक होना इतना आसान नहीं था। लेकिन उस समय जाने-माने उद्योगपति जयंत मल्होत्रा ने दोनों नेताओं को एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई थी।

दरअसल 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था और प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव और कांशीराम दोनों नेता बीजेपी को सत्ता से हटाना चाहते थे, लेकिन उनके लिए आसान नहीं था। इसी बीच 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिर गई और इसके बाद केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त करने वाली थी। लेकिन कल्याण सिंह ने पहले ही इस्तीफा दे दिया, जिसकी वजह से बीजेपी की सरकार गिर गई।

बीजेपी की सरकार गिरने के बाद दोबारा चुनाव होने वाले थे और जनता के मूड को देखते हुए किसी भी दल को अकेले बीजेपी को रोकना काफी मुश्किल था। उद्योगपति जयंत मल्होत्रा ने मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की ओर अशोका होटल के अपने कमरे में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की मुलाकात करवाई। दोनों की मुलाकात सफल रही और आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों नेता गठबंधन करने के लिए राजी हो गए। फिर इसके बाद समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन हुआ।

हालांकि गठबंधन कभी वैचारिक नहीं था, यह केवल रणनीतिक गठबंधन था, जिसका मकसद बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना था। लेकिन मुलायम सिंह यादव और कांशीराम दोनों नेताओं ने एक दूसरे को आश्वस्त किया कि वोटों का ट्रांसफर होगा। कांशीराम ने इटावा से चुनाव लड़ा जबकि मुलायम सिंह यादव ने जसवंत नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को कुल 176 सीटें हासिल हुई। हालांकि चुनाव में दोनों दलों के गठबंधन को बहुमत नहीं मिला। लेकिन निर्दलीय और छोटे दलों की मदद से प्रदेश में सरकार बन गई और दोनों नेताओं का बीजेपी को रोकने का इरादा पूरा हुआ।

हालांकि इस गठबंधन से मायावती को दूर रखा गया और कांशीराम ही बैठकों में हिस्सा लेते थे। मायावती ने केवल उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में ही प्रचार किया जहां दलितों की संख्या अधिक थी। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार अजय बोस मायावती की जीवनी में लिखते हैं, “लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच की गठबंधन सरकार के मायने कांशीराम, मुलायम सिंह यादव और मायावती के लिए अलग-अलग थे। कांशीराम के लिए दलितों, पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को एक मंच पर लाने के अभियान को पूरा करने की दिशा में यह एक लंबी छलांग थी।”

जब मायावती गठबंधन में हस्तक्षेप करने लगीं उसके बाद मुलायम सिंह असहज महसूस करने लगे। वहीं बीएसपी के नेताओं को लगता था कि समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव उनके विधायकों को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि यह भी कहा जाता है कि कांशीराम भी अटल बिहारी वाजपेई के संपर्क में बने थे ताकि मुलायम सिंह यादव को सत्ता से हटाया जा सके।

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वहीं समाजवादी पार्टी के नेता मानते हैं कि कांशीराम और मायावती ने मुलायम सिंह यादव के सामने कुछ ऐसे प्रस्ताव रखे, जो कि उनके लिए मंजूर करना मुमकिन नहीं था और बाद में यह गठबंधन टूट गया।