उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अब अपनी नई पार्टी का गठन करने जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजा भैया नवरात्र के दौरान अपनी नवगठित पार्टी का एलान कर सकते हैं। माना जा रहा है कि राजा भैया एससी-एसटी एक्ट पर आए अध्यादेश के बाद सवर्णों को लामबंद करने में जुटे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने नई पार्टी गठित करने का फैसला किया है। बता दें कि राजा भैया के रिश्ते अब समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव से बेहतर नहीं रहे। राज्य सभा चुनाव के वक्त उन्होंने एक और निर्दलीय विधायक के साथ भाजपा उम्मीदवार का समर्थन किया था। इससे सपा समर्थित बसपा उम्मीदवार की हार हो गई थी। वैसे राजा भैया पूर्व की सपा और बीजेपी सरकारों में मंत्री रह चुके हैं लेकिन इस बार उन्हें योगी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी। राज्यसभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ की लाज बचाने के बावजूद राजा भैया खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

राजा भैया आठवीं बार विधायक चुने गए हैं। वह 1993 से लगातार कुंडा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतते आ रहे हैं। प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में राजा भैया का सियासी दबदबा है। इस इलाके में राजपूतों की भी अच्छी आबादी है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और सीएम योगी आदित्यनाथ के बाद राजपूत समुदाय में राजा भैया की अच्छी लोकप्रियता है। माना जा रहा है कि राजा भैया राजपूतों के अलावा नाराज सवर्णों और अन्य पिछड़ा वर्ग को भी साथ लेकर चलने की कोशिश करेंगे। राजनीतिक पार्टी बनाने से पहले प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में सर्वे वाला पोस्टर चिपकाया गया था जिसमें पूछा गया था कि क्या राजा भैया को अब राजनीतिक पार्टी बना लेनी चाहिए? ये पोस्टर प्रतापगढ़ ग्राम प्रधान संघ ने चिपकवाए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समर्थकों से सकारात्मक जवाब मिलने के बाद राजा भैया ने इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया है। सूत्रों के मुताबिक राजा भैया 30 नवंबर को लखनऊ में अपना शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं।

सूत्रों का कहना है कि राजा भैया की पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों में अपने कई उम्मीदवार उतारेगी। इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजेपी जिन क्षत्रिय सांसदों का टिकट काटेगी वो राजा भैया के साथ हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा का वोट बैंक खिसक सकता है और लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ सकता है। बता दें कि राजा भैया 1997 में बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार में पहली बार मंत्री बने थे। साल 2002 में जब राज्य में मायावती की सरकार थी तब विधायक पूरन सिंह बुंदेला को धमकी देने के मामले में राजा भैया को जेल जाना पड़ा था। बाद में उनके ऊपर पोटा लगा दिया गया था। 2003 में जब मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तब उन्होंने राजा भैया के ऊपर से पोटा हटवा दिया था। बाद में वो मुलायम सरकार में मंत्री बनाए गए। अखिलेश यादव की सरकार में भी राजा भैया मंत्री रह चुके हैं लेकिन कुंडा के सीओ जियाउल हक मर्डर केस में नाम आने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।