उपासिका सिंघल
यूपी सरकार के एक आदेश से इन दिनों मुस्लिम दुकानदार और अन्य व्यापारी परेशान हैं। उनका कहना है कि यह आदेश बेफिजूल है और सिर्फ उन्हें परेशान किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर में मीनाक्षी चौक के पास जीटी रोड पर अपने फलों के स्टॉल के पीछे बैठे 65 वर्षीय इकबाल अंसारी अपनी दाढ़ी को खींचते हैं और हंसते हुए पूछते हैं, “मैं तो दाढ़ी वाला हूं, मुझे बोर्ड की क्या जरूरत है?”
मुजफ्फरनगर पुलिस ने 16 जुलाई को जारी किया था नोटिस
वे मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा 16 जुलाई को जारी किए गए नोटिस का जिक्र कर रहे थे, जिसमें कांवड़ यात्रा के मार्ग पर सड़क किनारे ठेले समेत खाने-पीने की दुकानदारों से कहा गया था कि वे यात्रियों के बीच “किसी भी तरह की उलझन से बचने” के लिए मालिकों या प्रोपराइटरों के नाम के बोर्ड लगाएं।
फीके सफेद कुर्ता-पायजामा और सिर पर टोपी पहने अंसारी ने कहा कि वे यात्रा के दौरान अपना स्टॉल नहीं लगाएंगे। वे कहते हैं, “मैं अगले 15 दिनों के लिए छुट्टी लूंगा। मैं पिछले 30 सालों से ऐसा करता आ रहा हूं, जब भी यात्रा होती है। मेरी बेटी दिल्ली में इंजीनियर है, मैं शायद उससे और कुछ अन्य रिश्तेदारों से मिलने जाऊंगा।” मंगलवार को मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने मीडिया को बताया कि कांवड़ यात्रा की तैयारी के लिए जिला पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी भोजनालयों को “अपने मालिकों या दुकान चलाने वालों के नाम सामने दिखाने का निर्देश दिया गया है।”
उन्होंने कहा, “यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि कांवड़ियों के बीच कोई भ्रम न हो और भविष्य में कोई आरोप न लगे, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो। हर कोई अपनी मर्जी से इसका पालन कर रहा है।”
अगले दिन मुजफ्फरनगर पुलिस के आधिकारिक एक्स हैंडल ने कहा कि ये उपाय स्वैच्छिक थे और पहले भी ये उपाय किए गए थे। हालांकि, इलाके के दुकानदारों और खाने-पीने की दुकानों के मालिकों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है जब उन्हें इस तरह के निर्देश मिले हैं। “पहले कभी किसी कांवड़िये ने हमारे साथ दुर्व्यवहार नहीं किया। जिन्होंने यह आदेश पारित किया है, वे जानते हैं कि ऐसा क्यों किया गया। पुलिस ने हमसे कहा है कि अगर हम बोर्ड नहीं लगाएंगे, तो हमारी दुकानें हटा दी जाएंगी,”
पिछले 35 सालों से मुजफ्फरनगर के बीचों-बीच अपनी दुकान पर आम बेचते आ रहे मोहम्मद मोबिन (50) कहते हैं, “राजनीति ही ऐसी है, हम क्या करें।”
इलाके में दुकान लगाने वाले कई अन्य मुस्लिम मालिकों ने भी मोबिन की भावनाओं को दोहराया। अंसारी कहते हैं, “आजकल प्रशासन जो भी कहता है, हमें वही करना पड़ता है।” 70 साल पुरानी चाय की दुकान चलाने वाले फतेह मोहम्मद (56) को यह अपने पिता से विरासत में मिली है। वे कहते हैं, “पहले यात्रा से तीन दिन पहले मीट की दुकानें बंद हो जाती थीं, लेकिन अब हम सभी दुकानें बंद कर देते हैं। क्या करें, आदेश मानना पड़ता है।”
हालांकि, छोले-भटूरे के स्टॉल के मालिक विनीत पाल (28) का कहना है कि उन्होंने बोर्ड लगाने के बारे में पुलिस की ओर से किसी निर्देश के बारे में नहीं सुना है। वे कहते हैं, “हमें ऐसे किसी आदेश के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कोई पुलिस भी हमारी जांच करने नहीं आई। हम आम तौर पर यात्रा के दौरान भी अपना स्टॉल खुला रखते हैं क्योंकि कई कांवड़िए यहां आकर खाना खाते हैं। लेकिन इस साल, उन्होंने यहां एक शिविर और भंडारा (भक्तों के लिए भोजन वितरण) लगाने का फैसला किया है, इसलिए मैंने खुद दर्शन करने का फैसला किया है।”