उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ योगी सरकार को उखाड़ फेंकने और राज्य में फिर से समाजवादी पार्टी का परचम लहराने का दावा कर कई छोटे दलों ने अखिलेश यादव पर भरोसा जताते हुए भगवा दल से अलग हो गए थे। उस समय ऐसा लगा कि योगी सरकार का दोबारा सत्ता में आ पाना मुमकिन नहीं होगा। कई मंत्रियों ने भी सरकार से नाता तोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था, लेकिन चुनाव में जनता ने भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर फिर से सरकार बनाने का अवसर दिया। इससे सरकार से अलग होकर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाले छोटे दलों में फूट साफ नजर आ रहा है। बैठक शाम पांच बजे शुरू हुई और करीब सात बजे खत्म हुई। इसमें हार की समीक्षा के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ-साथ रहने पर चर्चा की गई। इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, किसानों की समस्या और महंगाई को लेकर सरकार को घेरने पर भी विचार किया गया।

सहयोगी दलों की मंगलवार को हुई हार की समीक्षा बैठक से वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव नहीं पहुंचे। उन्हें समय पर सूचना ही नहीं दी गई। गठबंधन के कई अन्य नेताओं को भी इस मीटिंग में शामिल होने के लिए न्योता भी नहीं भेजा गया। बैठक में प्रमुख रूप से अखिलेश यादव के अलावा राष्ट्रीय लोकदल के राजपाल बालियान, सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर और अपना दल (कमेरावादी) से राष्ट्रीय महासचिव पंकज पटेल शामिल हुए।

बैठक में गठबंधन में शामिल महान दल और उनके नेता केशव देव मौर्या को भी नहीं बुलाया गया। हालांकि उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है। केशव देव मौर्या ने मीडिया में कहा कि उनकी पार्टी को नहीं बुलाने से उनमें कोई नाराजगी नहीं है। उनकी पार्टी का कोई प्रत्याशी जीत नहीं सका है। उन्होंने कहा कि उनका समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव पर पूरा भरोसा है।

दूसरी तरफ बैठक में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर शामिल हुए। उनको समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की ओर से भेजे गए पत्र में खास तौर पर आमंत्रित किया गया था। बैठक में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव के नहीं पहुंचने को उनकी नाराजगी मानी जा रही है।

दरअसल इस बैठक से दो दिन पहले समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक हुई थी, जिसमें पार्टी का नेता चुना जाना था। उस बैठक में शिवपाल को नहीं बुलाया गया। शिवपाल सिंह यादव का कहना था कि वे समाजवादी पार्टी के चिह्न पर चुनाव लड़े और विजयी हुए हैं, लिहाजा उन्हें बुलाया जाना चाहिए था, लेकिन पार्टी ने उन्हें नहीं पूछा। इससे वे खफा हो गए हैं। यह भी आशंका जताई जा रही है कि अब वे समाजवादी पार्टी से फिर से अलग हो सकते हैं और नई राह पकड़ सकते हैं।