अशोक बंसल
मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा की उपेक्षित पड़ी जन्मस्थली रावल को संवार दिया है। डेढ़ हजार की आबादी वाले रावल गांव को गोद लेकर हेमा ने देश भर के कृष्ण भक्तों को रावल आकर राधा कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम की रोचक किंवदंतियों का श्रवण करने का न्योता दिया है। कहते हैं ब्रज में प्रत्येक तीन किलोमीटर के फासले पर कृष्ण-राधा के किस्सों से जुड़े तमाम स्थल बिखरे पड़े हैं। इन स्थलों पर भ्रमण करना धार्मिक आस्थाओं से लबरेज लोगों के लिए जितना रोचक हैं, उतना ही आकर्षक किसी साहित्य धर्मी, इतिहास प्रेमी और एक विशुद्ध पर्यटक के लिए भी है। मथुरा जनपद कितना ही प्राचीन क्यों न हो, इसके वर्तमान स्वरूप की नींव चैतन्य महाप्रभु (1486-1534) और बल्लाभाचार्य (संवत 1530-1588) ने डाली थी। महाकवि सूरदास ने अपने पदों से कृष्ण की लीलाओं और सखियों के साथ उनके महारास की अमृत वर्षा घर-घर में की। यदि महाकवि सूरदास मथुरा से 22 किलोमीटर दूर पारसौली (गोवर्धन) में आकर अपने जीवन के 73 साल (सूरदास कुल 105 साल जीये) न रहते और कृष्ण और राधा की भक्ति में हजारों पदों का गुणगान न करते तो जन-जन के हृदय में राधा कृष्ण का वास इतनी गहराई से न होता जितना आज है।
84 कोस (एक कोस में करीब 3 किलोमीटर) की परिधि में सिमटे ब्रज में ऐसे दर्जनों स्थल हैं, ऐसे हैं जिनका भ्रमण कर पर्यटक रसखान की कविता ‘मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गांव के ग्वालन’ की मनभावन पक्तियां गुनगुनाने लगते हैं। इन स्थलों में रावल भी है लेकिन इसका आकर्षण जितना आज है, पहले नहीं था। हेमा ने रावल को गोद लेने की राजनीतिक औपचारिकताएं ही पूरी नहीं की वरन इस गांव का कायाकल्प कर दिया। किसी राजनेता से ऐसी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। घर-घर में आरओ वाटर का प्रबंध कर दिया, पक्की नालियां, चौड़ी सड़कें, एक बारातघर, एक चिकित्सा स्थल भी बनवा दिया। रौशनी से गांव जगमगा उठा है, शौचालय बन गए हैं, शमशान घाट नहीं था वह भी बन गया। वरिष्ठ राजनेता नरेंद्र सिंह का कहना है यदि सांसद हेमा को अपने संसदीय क्षेत्र से लगाव होता तो वह ब्रज के दूसरे गांव भी जातीं।
रावल गांव में राधा का एक प्राचीन मंदिर भी है। इस मंदिर में हेमा मालिनी सांसद बनने से पूर्व कई बार आई थीं। इस मंदिर के पुजारी पंडित ललित मोहन हेमा मालिनी के प्रशंसक हैं। पंडित ललित कहते हैं कि ब्रज में ‘राधे राधे’ की चाहे कितनी ही गूंज क्यों न हो, भीड़ तो मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि और गोवर्धन की तरफ ही उमड़ती है और उनके मंदिर को तो भक्तों की बाट जोहनी पड़ती है, लेकिन हेमा ने जबसे इसे गोद लिया है, खबर दूर-दूर तक पहुंची है और परदेसियों की यहां आमद बढ़ी। भक्तों की आमद देख पुजारी ललित के कंठ में दम आ जाता है और वह मुक्त कंठ से राधा के जन्म की कहानी सुनाते हैं—‘राधा रानी का जन्म नहीं हुआ बल्कि वह कमल के फूल में प्रकट हुई थीं, मंदिर पीछे, कदंब और कुरील के वृक्ष के पास। उन्हें दिखाई नहीं देता था, जब वे साढ़े 11 माह की थीं, तब पड़ोस के गांव गोकुल में नंद बाबा के यहां कृष्ण आगमन हुआ। राधा के पिता बृषभान और माता कीर्ति वहां पहुंचे बधाई देने।
माता की गोद में लाड़ली बिटिया थी। मां की गोदी से उतारकर राधा कृष्ण के पालने की तरफ घुटनों के बल चलकर पहुंची तो उनकी आंखों में रोशनी आ गई। सबसे पहले उन्होंने कृष्ण के दर्शन किए। सात साल तक राधा रावल में ही रहीं फिर अपने पिता बृषभान के साथ बरसाना पहुंच गर्इं। बरसाना के पास के गांव नंदगांव में बालक कृष्ण को लेकर नंदबाबा भी आ गए क्योंकि मथुरा में राजा कंस का भय था।’ राधारानी के मंदिर के प्रांगण में मौजद भक्त पुजारी की रोचक कथा मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं तो हाथ उठाकर ‘राधे राधे’ का उद्घोष तो करते ही हैं, साथ ही सांसद हेमा का भी गुणगान करते हैं।