गाजियाबाद जिले में वाहनों की फिटनेस की जांच का ठेका एक निजी कंपनी को देने से इलाके के ट्रांसपोर्टर बेहद परेशान हैं। आरोप है कि जिस कंपनी के पास यह ठेका है, वह फिटनेस के लिए आने वाले वाहन स्वामियों को परेशान कर रही है। जांच की सरकार द्वारा निर्धारित फीस से ज्यादा वसूलने के लिए ऐसा किया जा रहा है। ट्रांसपोर्टरों का आरोप है कि राज्य सरकार ने इस निजी कंपनी को ठेका देने में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है।
दरअसल फिटनेस की जांच का ठेका 2004 में झारखंड सरकार ने भी एक निजी कंपनी को दिया था।
नाग आटो टेस्टिंग स्टेशन व अन्य के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञानसुधा मिश्र की पीठ ने नौ मार्च 2011 को ठेका निजी कंपनी को देने के फैसले को तो सही ठहराया था पर यह आदेश दिया था कि फिटनेस प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर का अधिकार मोटर वाहन कानून के तहत किसी निजी एजंसी को नहीं दिया जा सकता। परिवहन विभाग के निरीक्षक को ही ऐसा प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है। जहां तक गाजियाबाद की निजी एजंसी का सवाल है, कुड़ियागढ़ी (डासना) की कंपनी मैसर्स साईं धाम सुपर सर्विसेज सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड को यह ठेका 19 जनवरी 2021 को दिया गया था। ठेका भी एक या दो वर्ष की अवधि के बजाए शुरू में ही पांच वर्ष के लिए दे दिया गया। इसके लिए अपनाई गई चयन प्रक्रिया में भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई।
पचहत्तर जिलों वाले राज्य में यह प्रयोग गाजियाबाद से शुरू हुआ था। तब अशोक कटारिया राज्य के परिवहन मंत्री थे। हालांकि इस कंपनी को ठेका देने की कवायद दो साल पहले तभी शुरू हो गई थी जब स्वतंत्र देव सिंह परिवहन मंत्री थे। लोकसभा चुनाव से पहले वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए थे और उनकी जगह कटारिया परिवहन मंत्री बनाए गए थे। निजी कंपनी को ठेका देना बेशक गलत नहीं है पर फिटनेस प्रमाण पत्र जारी करने का कंपनी को अधिकार देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है।
मजे की बात यह है कि अब राज्य सरकार कुछ और जिलों में भी यही प्रयोग करने की योजना बना रही है। परिवहन विभाग के पास स्टाफ की कमी होना इसकी वजह बताया जा रहा है। यों विदेश मंत्रालय भी पासपोर्ट जारी करने का काम अब निजी क्षेत्र की आइटी कंपनियों से करा रहा है पर हर पासपोर्ट सेवा केंद्र पर मंत्रालय का एक अधिकारी जरूर तैनात होता है। दस्तावेजों की जांच पड़ताल और पासपोर्ट जारी करने के बारे में निर्णय का अधिकार उसी को होता है। उत्तर प्रदेश ट्रांसपोर्ट्स एसोसिएशन के नेता पिंकी चिन्योटी का कहना है कि उन्हें निजी कंपनी को फिटनेस की जांच कराने का अधिकार देने पर कोई एतराज नहीं है। लेकिन ऐसे फिटनेस जांच केंद्रों पर परिवहन विभाग के निरीक्षक की तैनाती की जानी चाहिए।
वाहन सड़क पर चलने लायक है या नहीं, नियमानुसार इसका फैसला परिवहन विभाग का अधिकारी ही कर सकता है। चिन्योटी को हैरानी है कि एक तरफ तो सूबे के मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टोलरेंस की नीति की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ निजी कंपनी को ठेका देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। गौरतलब है कि मोटर वाहन कानून के तहत सभी वाणिज्यिक वाहनों और सात सीट से ज्यादा क्षमता वाले सभी निजी वाहनों को हर साल अपनी जांच करानी अनिवार्य है। इसे फिटनेस की जांच कहा जाता है। इस जांच की एवज में राज्य सरकार वाहन स्वामी से बाकायदा शुल्क लेती है। फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना वाहन को उपयोग में लाना गैर कानूनी और दंडनीय है।