Uttar Pradesh Man Spy Accusation: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए जासूसी के आरोप से बाइज्जत बरी शख्स को अपर जिला जज के तौर पर नियुक्त करने का राज्य सरकार को आदेश दिया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को याचिकाकर्ता को अपर जिला जज के पद पर नियुक्ति पत्र 15 जनवरी 2025 तक जारी करने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार को 2002 में पैसे के बदले सीमा पार अपने कथित आकाओं को खुफिया जानकारी शेयर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन 2014 में कानपुर की अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था। लेकिन इसके लिए एक दशक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के समय कुमार एक बेरोजगार वकील थे।
यूपी ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा पास की
कानपुर कोर्ट से दोषमुक्त होने के बाद कुमार पीसीएसजे (यूपी ज्यूडिशियल सर्विस) की परीक्षा में शामिल हुए और 2016 में एचजेएस के लिए चुने गए। हालांकि, उनकी हिस्ट्री उनका पीछा करती रही क्योंकि राज्य के अधिकारियों ने उनके संदिग्ध अतीत का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति रोक दी थी। कुमार पर जासूसी के आरोप, राजद्रोह समेत दो केस चलाए गए थे। पहला तो साल 2004 में था और दूसरा 2007 में था।
नौकरी के लिए हुई परीक्षा के बाद VVIP के करीबियों को मौका
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट की जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि कुमार के खिलाफ किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने का कोई ठोस सबूत नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक मुकदमे में उनके बरी होने से उन पर लगा कलंक मिट जाना चाहिए था और उन्हें अपने करियर में आगे बढ़ने की इजाजत मिलनी चाहिए थी।
सैन्य अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर किया था अरेस्ट
जुलाई 2019 में कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट को दी गई सैन्य अधिकारी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कुमार को सहयोगी खुफिया एजेंसियों से मिले इनपुट के आधार पर 13 जून 2002 को एसटीएफ और सैन्य खुफिया द्वारा एक जॉइंट ऑपरेशन में अरेस्ट किया गया था। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि कुमार एक फोटोस्टेट दुकान के मालिक फैजान इलाही के संपर्क में आया था और उसने कथित तौर पर उससे पैसे के बदले में टेलीफोन पर कुछ जानकारी देने के लिए कहा था। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि कुमार ने जल्दी पैसे कमाने की चाह में कानपुर छावनी की संवेदनशील जानकारी पैसे के बदले में शेयर की थी। इसके बाद बेंच ने रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि सभी औपचारिकताओं को जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाए और याचिकाकर्ता को 15 जनवरी 2025 तक नियुक्ति पत्र जारी कर दिया जाए।