सुरेंद्र सिंघल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोकशी पर रोक लगाने में सफल रहे हैं। वे गोवंश को आसरा मुहैया कराने के हरसंभव कदम उठा रहे हैं। मगर गोकशी बंद हो जाने के बाद नई समस्याएं सामने आने लगी हैं। जो विकट स्थिति बनी है उससे साफ है कि सरकार के प्रयास अपर्याप्त हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मेरठ मंडल खेती और पशु पालन दोनों के लिए खास पहचान रखते हैं।

हो यह रहा है कि अनुपयोगी गोवंश को पालक खुला छोड़ दे रहे हैं। पहले ये चोरी-छिपे बेच दिए जाते थे, जिनकी बड़े पैमाने पर तस्करी और कटान होता था। गोवंश कटान और अवैध रूप से चल रहे मीट कारखाने बंद हो जाने से गोवंश पालकों के लिए आर्थिक रूप से उनको खूंटे से बांधकर रखना मुश्किल हो गया है। गाय, बछड़े, बैल आदि पशु खेतों, जंगलों और सड़कों पर खुले फिर रहे हैं। खेतों में फसलों का नुकसान कर रहे हैं। किसानों द्वारा खेतों में लगाई तार की बाड़ को तोड़कर फसलों को चर रहे हैं।

अचानक सड़कों पर गोवंश के आ जाने से स्कूटी, बाइक एवं कार और अन्य वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। बचाव के कोई कारगर उपाय नहीं हुए हैं। 15 जून को देवबंद क्षेत्र में अपर सत्र न्यायाधीश कमर आलम के पिता बाबू अहसान अहमद और उनकी मां अफरोज उस वक्त सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए जब उनकी स्कूटी के सामने अचानक खेतों से निकलकर गाय सड़क पर आ गई।

इस हादसे में 70 वर्षीय अफरोज की मौत हो गई। इस तरह के हादसे आए दिन हो रहे हैं। सहारनपुर और मेरठ मंडल में एक हजार के करीब निराश्रित पशु होंगे। प्रतिदिन 40-50 पशुओं को पकड़कर आश्रय स्थल पर रखा जा रहा है लेकिन उतने ही पशु खुले भी छोड़े जा रहे हैं। इससे समस्या ज्यों की त्यों बनी है।

सहारनपुर के कमिश्नर हृषिकेश भास्कर यशोद ने बताया कि निराश्रित गोवंश को पकड़कर आश्रय स्थलों में रखने की जिम्मेदारी नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम और जिला पंचायत विभाग की है। पूरे सहारनपुर मंडल में 14743 निराश्रित गोवंश को पूरी तरह से संरक्षित कर दिया गया है। इनमें से 4610 गोवंश मुख्यमंत्री की सहभागिता योजना के तहत पशुपालकों की सुपुर्दगी में दे दिए गए हैं।

सहारनपुर के अपर निदेशक पशुपालन डा राजीव सक्सेना के मुताबिक मंडल में नौ बड़े गो संरक्षण केंद्र है, आठ कान्हा गोशाला जिनका प्रबंधन नगर पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम करती है। जिला पंचायत के चार कांजी हाउस हैं और 87 अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल है। इस तरह से गोवंश संरक्षण के मंडल में कुल 108 आश्रय स्थल हैं जिनमें से 10133 गोवंश की ठीक से देखभाल की जा रही है। गंगोह में नई बड़ी गोशाला बनाई जा रही है। जहां 230 पशु रखे जा सकेंगे। मुजफ्फरनगर के पुरकाजी के गांव चंदन में 700 हेक्टेयर भूमि पर 70 करोड़ की लागत से प्रदेश का पहला गो अभ्यारण्य बनाया जा रहा है।

इसकी पहल केंद्रीय राज्यमंत्री डा संजीव बालियान ने की है। इस अभ्यारण्य में 5000 गोवंश रखा जा सकेगा। मेरठ मंडल के अपर निदेशक पशु पालन डा अरुण कुमार जादोन के मुताबिक मंडल में 46 हजार पशु छुट्टा पाए गए। प्रशासन ने उन समेत 48 हजार पशुओं को संरक्षित किया। 9015 निराश्रित गोवंश मुख्यमंत्री सहभोगिता योजना के तहत गांववासियों को दिए गए जबकि बाकी पशुओं को 19 वृहद गोसंरक्षण केंद्रों, 12 कान्हा गोशालाओं, आठ काजी हाउसों और 248 अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों पर संरक्षित किया गया है। मुख्यमंत्री योजना के तहत गो पालकों को प्रतिदिन प्रति गोवंश 30 रुपए की दर से सहायता दी जा रही है।

प्रमुख गो पालक स्वामी शांतनु महाराज कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में खुले छोड़े जा रहे बछड़ों को खूंखार कुत्ते अपना शिकार बना रहे हैं। कसाई जंगलों में चोरी-छिपे खुले जानवरों को काट रहे हैं। मुख्यमंत्री को चाहिए कि हर गो पालक को आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाए। उसमें ज्यादा कानूनी अड़चनें नहीं होनी चाहिए।

कुलपति एवं पूर्व आइपीएस डा अशोक राघव चाहते हैं कि मुख्यमंत्री अलग से इसके लिए विभाग बनाएं जो कारगर तरीके से काम करे। बागपत के बड़े किसान जयप्रकाश तोमर कहते हैं कि गांवों में अब बैल आदि पशुओं की उपयोगिता नहीं रह गई है। शासन इन पशुओं की उपयोगिता और मांग बढ़ाने के उपाय करे। सामाजिक कार्यकर्त्ता अशोक गुप्ता ने गो संरक्षण में लोगों से सहयोग देने की अपील की। उनका कहना है कि इस काम को अकेले सरकार के भरोसे छोड़ देना उचित नहीं होगा।