Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में यूपी पुलिस और सिविल एडमिनिस्ट्रेशन को लेकर सख्त टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारी न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने में गर्व महसूस करते हैं और ऐसा लगता है कि इससे उन्हें अपराध बोध की बजाय उपलब्धि का अहसास होता है।

जस्टिस जेजे मुनीर ने यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की। जिसमें आरोप लगाया गया था कि अधिकारियों ने हाई कोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद बागपत जिले में एक मकान को ध्वस्त कर दिया।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य के कार्यकारी अधिकारियों, खास तौर पर पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने में एक तरह का गर्व महसूस करने की संस्कृति विकसित हो गई है। ऐसा लगता है कि इससे उन्हें अपराधी होने का अपराध बोध होने के बजाय उपलब्धि का अहसास होता है। इस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि न्यायिक आदेश का उल्लंघन करके की गई कोई भी कार्रवाई, चाहे वह किसी भी तरह की हो, अमान्य है।

सिंगल जज ने कहा कि विध्वंस एक भौतिक कार्य है, जिसके पूरा हो जाने पर न्यायालय के पास केवल दो विकल्प बचते हैं – Award of Damages or Restitution।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्षतिपूर्ति ध्वस्त भवन के पुनर्निर्माण द्वारा की जाएगी। यहां भवन का निर्माण हरिजन आबादी में किया गया था। यह किसी सार्वजनिक उपयोगिता वाली भूमि, जैसे तालाब, खलिहान या पानी के नीचे डूबी हुई भूमि पर निर्माण नहीं था। इसलिए, हमारी राय में, यह एक ऐसा मामला हो सकता है, जहां पुनर्स्थापन का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसके लिए राज्य को पुनर्निर्माण की आवश्यकता होगी।

वर्तमान मामले में, जुलाई 2024 में मकान मालिक छामा (याचिकाकर्ता) के खिलाफ बेदखली का आदेश पारित किया गया था और फरवरी 2025 में उनकी अपील खारिज कर दी गई थी। उन्होंने मार्च 2025 में हाई कोर्ट का रुख किया।

इस बीच, अतिक्रमण हटाने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई। जनहित याचिका में हाईकोर्ट ने 5 मई को बागपत कलेक्टर को आदेश दिया कि वे जवाब दें कि क्या किसी उच्च फोरम ने इस मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित किया है और यदि नहीं, तो बेदखली क्यों नहीं की गई।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने तत्काल राहत के लिए बेदखली के खिलाफ अपना मामला दर्ज कराया। हाई कोर्ट ने बेदखली के आदेश पर रोक लगाते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और कोई वसूली नहीं की जाएगी। इन दोनों मामलों, याचिकाकर्ता की याचिका और जनहित याचिका को बाद में एक ही पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया।

विध्वंस के बाद याचिकाकर्ता ने स्थगन आदेश की अवहेलना करने के लिए अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​की याचिका दायर की। यह देखते हुए कि अदालत की अवमानना ​​के मामलों से निपटने के लिए उसके पास कोई रोस्टर नहीं है। कोर्ट ने याचिका को गलत काम करने वालों के लिए माना ।

प्रथम दृष्टया पाया गया कि स्थगन आदेश का उल्लंघन करते हुए तोड़फोड़ की गई। कोर्ट ने कहा कि तस्वीरों से पता चलता है कि जब अधिकारियों को स्थगन आदेश दिखाया गया तो उन्होंने दूसरी तरफ देखा।

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कोर्ट ने आगे कहा कि अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की उपस्थिति में पारित न्यायालय का आदेश, जैसे ही पारित होता है, उसे तुरंत सूचित कर दिया जाता है। प्रतिवादी राज्य के सभी अधिकारी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व स्थायी वकील करते हैं, और इसलिए, कोर्ट में उनकी उपस्थिति हमेशा बनी रहती है। उन्हें स्थायी वकील के माध्यम से इस न्यायालय द्वारा पारित सभी आदेशों की जानकारी है।

इस दावे पर कि स्थगन आदेश हाई कोर्ट की वेबसाइट पर देर से अपलोड किया गया। सिंगल जज ने कहा कि प्राधिकारियों को याचिकाकर्ता को दी गई अंतरिम राहत के बारे में सूचित किए जाने के बाद उसका सत्यापन करना चाहिए था।

हालांकि, कोर्ट ने अब कलेक्टर, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, तहसील-सदर, जिला बागपत और तहसीलदार, तहसील-सदर, जिला बागपत को नोटिस जारी किया है। साथ ही उनसे कहा है कि वे 7 जुलाई तक या उससे पहले अपना-अपना हलफनामा दाखिल करें, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि क्यों न ध्वस्त भवन का पुनर्निर्माण उनके द्वारा कराया जाए और राज्य द्वारा उसे उसके मूल स्वरूप में बहाल किया जाए। वहीं, सीजेआई ने गवई ने कहा है कि संविधान न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के चार खंभों पर आधारित है। पढ़ें…पूरी खबर।