उत्तर प्रदेश में नौकरशाहों के सामने ना ही मंत्रियों की कोई अहमियत है और ना ही विधयकों की। पार्टी की निचली पायदान पर खड़े पदाधिकारियों की ऐसे में भला क्या बिसात। प्रदेश में जब से भाजपा सरकार आई है तब से कई विधायक और मंत्री यह शिकायत कर चुके हैं कि उनकी बात को नौकरशाह सिरे से खारिज कर देते हैं। सभी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर और उनसे व्यक्तिगत रूप से मिल कर अपना दुखड़ा रोया। लेकिन नौकरशाहों के सामने किसी की एक ना सुनी गई। बेचारे मन मसोस कर रह गए। ताजा मामला औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल नंदी का है।
प्रयागराज में बीती जनवरी में आयोजित महाकुंभ में स्रान करने वाली देश व विदेश की सभी नामचीन हस्तियों के साथ संगम में डुबकी लगाने वाले नंद गोपाल गुप्ता नंदी का दुख यह है कि उनकी बात उन्हीं के औद्योगिक विकास विभाग के अधिकारी नहीं सुन रहे हैं। मुख्यमंत्री का खुद को बेहद करीब बताने और जताने वाले नंदी अपने ही विभाग के नौकरशाहों की इस बेरुखी को पचा नहीं पा रहे। इसी लिए उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर अफसरशाही पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में औद्योगिक विकास मंत्री ने अपना दुखड़ा योगी आदित्यनाथ से कुछ इस प्रकार रोया है। उन्होंने कहा है, अधिकारी विभाग के काम में अड़ंगा डाल रहे हैं। अपने स्तर पर नौकरशाह फाइल मंगाकर डंप कर रहे हैं। इतना ही नहीं, कई पत्रावलियों में ऐसे प्रस्ताव हैं जो नियम विरुद्ध हैं। इतने के बावजूद अधिकारी उन आदेशों को पारित करने में तनिक भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। नंदी के दिल की भड़ास यहीं खत्म नहीं होती। योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में वे कहते हैं, कुछ लोगों को अनुचित लाभ देने के लिए अधिकारियों ने नीतियों के विरुद्ध जाकर प्रस्ताव पारित किए हैं।
पिछले दो साल से अपमान का घूट पर रहे हैं नंदी
मंत्री ने पत्र में खुद इस बात को स्वीकार किया है कि दो साल से वे अपने ही विभाग में अपने ही अधिकारियों के हाथों मंत्री रहते हुए अपमान का घूंट पीते आ रहे हैं। उन्होंने कहा, विभागीय अधिकारी दो बरस से उनका आदेश नहीं मान रहे हैं। नंदी ने पत्र में कुछ मामलों में बरती गई अनियमितताओं का जिक्र किया है। इसकी उच्चस्तरीय जांच के निर्देश दिए गए हैं। नंदी के लगाए गए आरोपों की जांच के निर्देश के साथ मामले की पूरी रिपोर्ट तलब की गई है।
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मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में नंदी लिखते हैं, दो साल से तमाम फाइलें बार-बार मांगने के बाद भी अफसरों ने नहीं दी। मंत्री ने पिछले वर्ष सात अक्तूबर को ऐसे मामलों की एक सूची बनाकर योगी आदित्यनाथ के कार्यालय भेजी। 29 अक्तूबर को एक हफ्ते के अंदर सभी फाइल को पेश करने के निर्देश दिए गए। लेकिन छह महीने बाद भी फाइलें मंत्री को नहीं उपलब्ध हो सकीं। तीन साल पहले मंत्री ने खुद विभाग में कामकाज का बंटवारा सक्षम स्तर से कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन मामले की फाइल ही कही गुम हो गई।
उत्तर प्रदेश के एक और मंत्री संजय निषाद भी कह चुके हैं कि अधिकारी उनकी बात नहीं मानते हैं। वहीं लोनी से भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर ने अधिकारियों पर मनमानी करने का आरोप तक लगाया। उन्होंने बाकायदा मीडिया को बुला कर मुख्यमंत्री से शिकायत करने और उनके आश्वासन देने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर उनके हाथ सिफर लगा।
इस मसले पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद सदस्य राजेंद्र चौधरी कहते हैं, योगी सरकार में मंत्रियों और विधायकों को नौकरशाही ने हाशियों पर डाल रखा है। ऐसे में छोटे पदाधिकारियों की तो पूछिये मत। उन्हें थाने गे गेट के भीतर घुसने की अनुमति नहीं है। होमगार्ड तक उनकी सुनता नहीं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में कितना अमन चैन होगा? इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।