सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का नया लोकायुक्त नियुक्त कर दिया क्योंकि राज्य सरकार उसके निर्देशों का पालन करने में विफल रही थी। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार के लिए यह बहुत ही शर्मसार करने वाला घटनाक्रम था क्योंकि अदालत ने अपने आदेशों का पालन करने में संवैधानिक व्यवस्था की विफलता पर अपनी अस्वीकृति भी जाहिर की।

उत्तर प्रदेश सरकार दो दौर की वार्ता के बाद भी लोकायुक्त नियुक्त करने के लिए शीर्ष अदालत की तय समय-सीमा का पालन नहीं कर सकी क्योंकि किसी एक नाम पर सहमति ही नहीं हो सकी। तीन सदस्यीय चयन समिति की पांच घंटे चली बैठक मंगलवार आधी रात किसी नतीजे पर पहुंचे बिना ही खत्म हो गई। लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आवास पर बुधवार सुबह फिर बैठक शुरू हुई। लेकिन करीब दो घंटे की बैठक में एक बार फिर किसी नाम पर सहमति नहीं हो सकी। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बुधवार को अनुपालन रिपोर्ट पेश की जानी चाहिए।

आखिरकार शीर्ष अदालत ने लोकायुक्त पद के लिए चयनित पांच लोगों की सूची में से इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह को इस पद पर नियुक्त कर दिया। साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया कि उसके आदेश के अनुपालन की जानकारी देते हुए 20 दिसंबर को रिपोर्ट पेश की जाए। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पीठ ने अपने आदेश में कहा कि देश की शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन करने में संवैधानिक व्यवस्था का विफल रहना बहुत ही दुखद और विस्मित करने वाला है। हम इसलिए इस स्थिति के समाधान हेतु संविधान के अनुच्छेद 142 में दिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उचित आदेश दे रहे हैं।

पीठ ने दुख जताया कि उसके अनेक आदेशों पर भी सांवैधानिक व्यवस्था मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कोई ध्यान नहीं दिया। इससे पहले, पूर्वाह्न में अदालत ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के इस कथन पर कड़ी आपत्ति की कि हालांकि उसने पांच नामों की सूची तैयार की है, लेकिन किसी एक व्यक्ति के बारे में आम सहमति नहीं हो सकी है। इस पर अदालत ने सिबल से कहा कि वे बुधवार हो ही अपराह्न 12.30 बजे तक ये नाम उपलब्ध कराएं। हमें मालूम है कि अपने आदेश का पालन कैसे कराया जाता है।

कानून में प्रावधान है कि मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मिलकर लोकायुक्त की नियुक्ति करेंगे। इससे पहले 14 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लिया था क्योंकि उसके निर्देशों के बादवजूद अभी तक राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई थी। अदालत ने तल्ख लहजे में कहा था कि ऐसा लगता है कि नियुक्ति करने वाले प्राधिकारियों का अपना एजंडा है। अदालत महेंद्र कुमार जैन और वकील राधाकांत त्रिपाठी की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में शीर्ष अदालत के पहले के आदेशों के अनुरूप यथाशीघ्र लोकायुक्त की नियुक्ति करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।