यूपी में वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में वीडियोग्राफी (वीडियो सर्वे) का आदेश देने वाले दीवानी जज (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर को मंगलवार (सात जून, 2022) को एक धमकी भरा खत मिला है। शहर के पुलिस आयुक्त ने बताया कि जज की सुरक्षा में नौ पुलिसकर्मी लगा दिए गए हैं। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।

जज दिवाकर ने इस बाबत अपर मुख्य सचिव (गृह), पुलिस महानिदेशक और पुलिस आयुक्त वाराणसी को चिट्ठी लिखकर धमकी मिलने की जानकारी दी। उन्होंने अफसरों को भेजे पत्र में लिखा कि उन्हें यह पत्र ‘इस्लामिक आगाज़ मूवमेंट’ की ओर से काशिफ अहमद सिद्दीकी ने भेजा है। पुलिस आयुक्त ए सतीश गणेश ने बताया कि जज को रजिस्टर्ड डाक की ओर से एक पत्र मिला, जिसमें कुछ और कागज हैं। इसकी जानकारी उन्हें अभी दी गई है। वाराणसी के पुलिस उपायुक्त वरुणा को इस प्रकरण की जांच सौंपी गई है।

गणेश के मुताबिक, जज कुमार की सुरक्षा में कुल नौ पुलिसकर्मी लगाए गए हैं। समय समय पर उनकी सुरक्षा की समीक्षा की जा रही है। जज को भेजा गया पत्र सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ है। खत में लिखा गया है, “अब जज भी भगवा रंग में सराबोर हो चुके हैं। फैसला उग्रवादी हिंदुओं और उनके तमाम संगठनों को खुश करने के लिए सुनाते हैं। इसके बाद ठीकरा विभाजित भारत के मुसलमानों पर फोड़ते हैं। आप न्यायिक कार्य कर रहे हैं। आपको सरकारी मशीनरी का संरक्षण मिला है। फिर आपकी पत्नी और माता श्री को डर कैसा है…?”

खत में आगे लिखा है, “आज कल न्यायिक अधिकारी हवा का रुख देख कर चालबाजी दिखा रहे हैं। आपने वक्तव्य दिया था कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का निरीक्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। आप भी तो बुतपरस्त (मूर्तिपूजक) हैं। आप मस्जिद को मंदिर घोषित कर देंगे।”

दरअसल, जज दिवाकर के कोर्ट ने 26 अप्रैल को ज्ञानवापी परिसर की वीडियो सर्वे कराने के आदेश दिए थे। इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट 19 मई को अदालत में पेश की गई। सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया था, जिसे मुस्लिम पक्ष ने खारिज कर दिया था। साथ ही कहा था कि वह”शिवलिंग’ नहीं, बल्कि ‘फव्वारा’ है।

इस बीच, उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की एक याचिका पर मामले को जिला न्यायाधीश की अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में अर्जी दायर कर कहा था कि यह मामला उपासना स्थल कानून के प्रावधानों के खिलाफ है लिहाजा यह सुनवाई किए जाने योग्य ही नहीं है।