उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परोक्ष रूप से राज्य की समाजवादी पार्टी पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाया था। पीएम मोदी ने कहा था कि अगर दिवाली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी मिलनी चाहिए। तो क्या सचमुच प्रदेश में बिजली वितरण में धार्मिक भेदभाव होता है? आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडेरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने एक वेबसाइट में जो आंकड़े बताए उससे कुछ और ही तस्वीर सामने आती है।

दुबे के अनुसार प्रदेश में हर त्योहार पर अधिकतम बिजली देने की कोशिश की जाती है। दुबे के अनुसार चूंकि दिवाली आम तौर पर अक्टूबर-नवंबर में पड़ती है इसलिए उस दौरान बिजली की मांग कम होती जिससे ज्यादा बिजली उपलब्ध कराना आसान होता है। दुबे ने बताया कि साल 2016 में यूपी में ईद के दिन 13500 मेगावाट बिजली आपूर्ति की गयी थी। वहीं 28 अक्टूबर से एक नवंबर के बीच दिवाली पर पूरे प्रदेश में चौबीसों घंटे बिजली दी गयी थी जो करीब 15600 मेगावाट थी। दुबे ने साफ किया कि दिवाली पर ज्यादा बिजली देना संभव होता है क्योंकि उस दौरान बिजली की मांग कम होती है।

यूपी में गर्मी के दौरान औसतन 16000 मेगावाट बिजली की जरूरत होती है। वहीं ठंड में औसतन 13000 मेगावाट बिजली चाहिए होती है। ईद के दौरान करीब 15,000 मेगावाट बिजली की मांग होती है लेकिन सरकार बिजली किल्लत के कारण 13,000 मेगावाट बिजली ही उपलब्ध करा पाती है। दुबे ने वेबसाइट को बताया कि सरकार होली, बकरीद, नवरात्रि समेत हर त्योहार पर अधिक से अधिक बिजली देने की कोशिश करती है।

पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण का वो हिस्सा जिस पर विवाद हुआ-

https://www.youtube.com/watch?v=-NIExVdPh68

त्योहार के मौके पर बिजली आपूर्ति में राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार की भी अहम भूमिका होती है। केंद्र सरकार के बिजली संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली में हर राज्य का कोटा होता है। जब किसी राज्य को ज्यादा बिजली चाहिए होती है तो केंद्र उसे अतिरिक्त बिजली दे सकता है। दुबे ने दावा किया कि उनके पास पिछले 20 साल के बिजली आपूर्ति के आंकड़े हैं जिससे पता चलता है कि दिवाली पर ज्यादा बिजली आपूर्ति होती रही है लेकिन इसकी वजह खुशनुमा मौसम है। दुबे ने पीएम मोदी के बायन को पूर्णतः राजनीतिक बताते हुए कहा कि वो सच सामने लाने के लिए आंकड़े सार्वजनिक कर रहे हैं।

पीएम मोदी ने रविवार (19 फरवरी) को एक चुनावी रैली में परोक्ष रूप से राज्य की अखिलेश यादव सरकार पर बिजली वितरण में धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था। पीएम मोदी ने अपने भाषण के दौरान कहा था, “….भाइयों बहनों गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए। अगर रमजान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए। अगर होली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी बिजली मिलनी चाहिए। भेदभाव नहीं होना चाहिए। सरकार का काम है भेदभाव मुक्त शासन चलाना। किसी के संग अन्याय नहीं होना चाहिए। धर्म के आधार पर तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। जाति के आधार पर बिल्कुल नहीं होना चाहिए। ऊंच-नीच के आधार पर नहीं होना चाहिए…”  पीएम मोदी के बयान पर सोशल मीडिया पर विवाद हो गया। वहीं विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की।

दुबे ने दावा किया कि भारत में जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा होती है। दुबे के अनुसार भारत में सालाना तीन लाख मेगावाट बिजली पैदा होती है जबकि उसे केवल डेढ़ लाख मेगावाट बिजली की जरूरत होती है। यूपी में गर्मी के मौसम में अधिकतम 18,000 मेगावाट बिजली तक की जरूरत होती है। यूपी सरकार 5000 मेगावाट बिजली पैदा करती है। यूपी को 6000 मेगावाट बिजली केंद्र सरकार से मिलती है और 5000 मेगावाट बिजली यूपी सरकार निजी कंपनियों से खरीदती है। इस तरह प्रदेश को कुल 16000 मेगावाट बिजली मिलती है। बाकी 2000 मेगावाट बिजली भी सरकार अन्य निजी कंपनियों से खरीदती है।