सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव गुरुवार ( 1 जून, 2022) को आजम खान से मिलने दिल्ली पहुंचे। अखिलेश यादव के दिल्ली जाने पर केंद्रीय मंत्री और आगरा से सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल ने तंज कसते हुए कहा, ‘हुजूर बहुत देर हो गई है आते आते’। इसके बाद उन्होंने दूसरा तंज कसा, ‘का वर्षा जब कृषि सुखाने’। मुझे नहीं पता कि अभी खेती सूखी है कि उस में जान पड़ जाएगी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आजम खान समाजवादी पार्टी के सबसे पुराने साथी हैं। एक बार बीच में उनको अमर सिंह की वजह से पार्टी छोड़नी पड़ी थी, लेकिन घर वापसी हो गई थी। उन्होंने कहा कि कोई भी आदमी उम्मीद करता है कि जब वो जेल में हो अथवा बीमार हो या फिर उसकी बेटी की शादी हो ऐसी स्थिति में हाईकमान को साथ रहना चाहिए।
बघेल ने कहा कि पूरी न्यायिक प्रक्रिया में भारत की ज्यूडशरी स्वतंत्र और निष्पक्ष है। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव न तो एफआईआर को कम करा सकते थे, न ही चार्जशीट फाइनल रिपोर्ट को कम करा सकते थे। न ही जमानत में उनका कोई रोल हो सकता था। उन्होंने कहा कि कानून मंत्री होते हुए भी मेरा भी जमानत में कोई रोल नहीं हो सकता था।
पुराने दिनों को याद करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि जब अखिलेश यादव ने मुझे जेल भेजा था, तब जेल में मुझसे साढ़े तीन हजार लोग मिलने आए थे। ऐसे में एक सहानुभूति होती है। उन्होंने कहा कि भले आप एक बार किसी की खुशी में शामिल न हों, लेकिन दुख में जरूर शामिल हों। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव अपने कार्यकर्ताओं से जेल में मिलते रहते थे। कभी फतेहगढ़ की जेल में तो कभी आगरा की जेल में। बघेल ने कहा कि कई बार नाराजगी से ही समझौते होते हैं। अखिलेश यादव मिलने गए हैं तो कहीं न कहीं अखिलेश यादव बैकफुट पर हैं। क्योंकि यूपी की राजनीति में आजम खान का अपना एक रोल है।
रामपुर उपचुनाव में बीएसपी अपना उम्मीदवार नहीं उतार रही है? इस सवाल के जवाब में बघेल ने कहा कि मायावती का उपचुनाव में उम्मीदवार न उतारना कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि मायावती कि जब 2007-2012 में सरकार में थी। उस वक्त से उनकी पार्टी ने उपचुनाव लड़ना बंद कर दिया। अभी भी कई उपचुनाव में उन्होंने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। क्योंकि उपचुनाव में उम्मीदवार के हारने के बाद पार्टी की हालत और खराब हो जाती है।
अखिलेश यादव के गुस्से के सवाल पर उन्होंने कहा कि हताशा और निराशा की वजह से अखिलेश यादव को गुस्सा आ रहा है। 2014 में सांसदों का हारना, 2017 में कुर्सी से उतरना, 2019 में बड़ा गठबंधन करने बाद भी संख्या बल न लाना। फिर 2022 में यूपी विधानसभा का चुनाव में हारना, जिसमें वो फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे।