धीरज चतुर्वेदी

गोवंश गणना के आंकड़ों ने सरकार की गोरक्षा की नियत पर सवाल अंकित कर दिए हैं। विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत संख्यां के अनुसार मध्य प्रदेश में पांच साल में दो करोड़ से अधिक गोवंश लापता हो गए हैं। बुंदेलखंड के सागर संभाग में सात लाख गोवंश का अतापता नहीं है। आंशकाएं जन्म ले रही हैं कि मृत गाय के शरीर से निकलने वाले बेशकीमती गौरोचन के लालच में तो गाय की हत्या करने वाला गिरोह सक्रिय तो नहीं है। गाय के पेट में बनी पथरी को गौरोचन कहा जाता है जिसका बाजार मूल्य 20 हजार रुपए प्रति ग्राम बताया गया है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों, तंत्र क्रियाओं और ज्योतिष में होता है।

हर पांच साल में होने वाली पशुगणना में गोवंश गणना के आंकडेÞ आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं। पांच साल में गोवंश के बढ़ने के बजाय उनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। यह हालात तब है जब भाजपा की सरकार में अलग से गोसंवर्द्धन बोर्ड के माध्यम से प्रतिवर्ष गोशालाओं को करोड़ों रुपए अनुदान दिया जा रहा है। टीकमगढ़ जिले के निवाडी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक अनिल जैन ने गोवंश के संदर्भ में प्रश्न पूछा था। सरकार ने आंकडेÞ प्रस्तुत किए कि मध्य प्रदेश में 2007 की 18वीं पशुगणना में गोवंश की संख्यां 2 करोड़ 19 लाख 15 हजार 438 थी। जो 2012 की गणना में घटकर 1 करोड़ 96 लाख 2 हजार 366 रह गई। मध्य प्रदेश सरकार अनुसार पांच साल में 23 लाख 13 हजार 072 गोवंश लापता हो गए हैं। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य है कि इनमें से 6 लाख 99 हजार 072 गोवंश सागर संभाग से गायब हो गए हैं।

पूरे मध्य प्रदेश के औसत से देखा जाए तो करीब 25 फीसद से अधिक गोवंशों की कमी बुंदेलखंड के सागर संभाग में दर्ज की गई है। विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 2007 की पशुगणना में सागर में 880296, दमोह में 591148, छतरपुर में 567258, टीकमगढ़ में 600140 और पन्ना में 547593 गोवंश था। 19वीं पशुगणना 2012 में इनकी संख्या घटकर सागर में 802820, दमोह 558845, छतरपुर में 343913, टीकमगढ में 366970 व पन्ना जिले में 414815 रह गई। वर्ष 2007 और 2012 की गणना में तुलना की जाए तो 2007 में सागर संभाग में 31 लाख 86 हजार 435 गोवंश था। वर्ष 2012 में 24 लाख 87 हजार 363 ही गोवंश पाए गए। आखिर कहां लापता हो गया गोवंश, इसे लेकर आंशकाएं जन्म ले रही हैं।
कत्लखानों के अलावा बेशकीमती गौरोचन की लालसा में तो कहीं गाय को कत्ल करने का गिरोह तो काम नहीं कर रहा है, यह सोचनीय सवाल है। जानकारों के मुताबिक गौरोचन मरी हुई गाय के शरीर से प्राप्त होता। गाय के पित्ताशय की पथरी को गौरोचन कहते हैं।

इसका रंग सिदूंर जैसा होता है। जानकारों के अनुसार गोवंश की कम उपयोगिता के कारण इन्हे चाराभूसा इत्यादि नहीं मिलता। ज्यादातर गोवंश आवारा और लावारिस हालात में घूम रहा है। जो कचरों के ढेर से पेट भरा करता है। गाय के पेट में यही पथरी बनने का कारण बन जाता है जिसे गौरोचन कहा जाता है। जानकारी के अनुसार गौरोचन का खुले बाजार में भाव 20 हजार रुपए प्रतिग्राम है। तांत्रिक क्रियाओं सहित ज्योतिष में इसकी सबसे अधिक मांग है। साथ ही आयुर्वेदिक औषधियों में इसकी उपयोगिता के कारण इसकी मांग भी अधिक है। सूत्रों का कहना है कि बुंदेलखंड में गोतस्करों सहित गौरोचन के लालची बड़ी मात्रा में गाय की हत्याएं कर रहे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो जांच का विषय है, लेकिन जिस तरह गोवंशो की संख्यां में भारी कमी आई है। उससे इन आरोपों को बल मिलता है कि कहीं न कहीं गाय के नाम पर बड़ा खेल खेला जा रहा है।